कोरोना के अंधकार में आशा का दीप-केरल मॉडल

मुझे अक्सर ही अस्सी के दशक का गाना याद आता है जिसमें अमिताभ बच्चन कहते हैं-
तेरे गिरने में भी तेरी हार नहीं 
कि तू आदमी है अवतार नहीं |
कोरोना ने हमारी कमर तोड़ दी है लेकिन हम हार मानने को तैयार नहीं है |दूर केरल में हमें उम्मीद का चिराग टिमटिमाता हुआ दिखाई दे रहा है | 30  जनवरी 2020 को भारत का पहला कोरोना रोगी केरल  में मिला था |केरल में जनसँख्या 3 .48 करोड़ है|जनसँख्या का घनत्व भी  ज्यादा है |केरल में प्रति किलोमीटर 859 लोगों की आबादी है जबकि पडोसी राज्य तमिलनाडु में यह संख्या 555  है  केरल के आठ प्रतिशत लोग अलग अलग देशों में कर्यरत हैं |उनका आना-जाना भी लगा रहता है,इसके बावजूद केरल ने कोरोना पर काबू पाने में सफलता प्राप्त की है |
यहाँ की राजनीतिक जागरूकता भी प्रशंसनीय   है |ये लोग धर्म की दीवारों में बंटकर वोट नहीं देते बल्कि अपनी शिक्षा की ऐनक से सरकार के कामकाज को देखकर स्वतंत्रतापूर्वक वोट देते हैं | 
 आइये दिल्ली से केरल मॉडल की तुलना करके देखते हैं |
दिल्ली में दो सरकारें हैं लेकिन दोनों ही सरकारें एक स्वर में कह रही हैं कि यह बीमारी ख़त्म होने वाली नहीं है और हमें कोरोना के साथ जीने की आदत डालनी होगी |
इसका अर्थ है कि दोनों सरकारें केरल मॉडल से कोई सार्थक  उम्मीद नहीं करती हैं |इनके अपने कारण हैं |पहला कारण तो राजनैतिक लगता है चूंकि दोनों सरकारों की राजनीतिक धारणा परस्पर विरोधी है |
केरल में राजनीतिक वातावरण दिल्ली से काफी हटकर है |दिल्ली में धर्म एक राजनीतिक कारक बन चुका है जबकि केरल में मिश्रित आबादी है और बहुत वर्षों से यहाँ राजनैतिक चेतना शेष भारत से ज्यादा है |यहाँ के लोगों ने अपने लोकतान्त्रिक अधिकारों पर हमेशा जोर दिया है |उन्होंने राजनीतिक वर्ग को अपनी प्रगतिशील सोच पर हावी नहीं होने दिया है |  
एक पत्रकार ने केरल सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव डॉ. विश्वास मेहता से बात करके उनसे यह जानना चाहा कि भारत में कोरोना का पहला रोगी केरल में मिला था |इसके बावजूद केरल ने इसे नियंत्रित करने में काफी हद तक सफलता प्राप्त की तो इसका श्रेय किसको जाता है ?
पूरी वार्ता सुनने के बाद कुछ कारण ऐसे नज़र आये जिन्होंने केरल सरकार को यह असंभव सा लक्ष्य हासिल करने में सहायता दी |
1-केरल में शिक्षा का प्रसार पूरे देश में सर्वाधिक है |वहां के लोग ज्यादा जागरूक हैं |कोरोना के आगमन से पहले वे निपाह नामक महामारी से मुकाबला कर चुके थे,इस प्रकार वे ऐसी महामारी का मुकाबला करने के लिए मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत थे |उन्होंने स्वयं तो सावधानियों और आवश्यक निर्देशों को माना ही ,जो लोग लापरवाही करते थे ,उन्हें भी रोका और न मानने पर प्रशासन को सूचना दी जिससे रोग का फैलाव होने से पहले ही रोक दिया गया |
2.इस जागरूकता के अलावा केरल निवासियों की जीवन शैली ने भी रोग को रोकने में मदद की |केरलनिवासी जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल करते रहे हैं |आयुर्वेद उनकी जीवन शैली से जुड़ा हुआ है |उनके मसालों में भी ऐसे तत्वों का समावेश है जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता शेष भारतवासियों से ज्यादा है |वे ऐसी महामारी का मुकाबला करने के लिए मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत थे |
3-श्री मेहता ने बताया कि यहाँ के राजाओं ने लड़ाइयां नहीं की बल्कि अपने साधनो को शिक्षा के प्रचार -प्रसार में लगाया |उन्होंने विश्वविद्यालय खोले जिन्होंने जनता को सब प्रकार से जागरूक किया |
4-अपेक्षाकृत अधिक सरकारी संवेदनशीलता भी इसका एक कारण नज़र आती है | हमारे देश के विभिन्न राज्यों के मजदूरों को सरकार प्रवासी मजदूर कहती है जबकि केरल सरकार उन्हें guest labouror (अतिथि श्रमिक )मानती है |यह सोच ही अनूठी है और मजदूरों को अपेक्षाकृत अधिक सम्मान देती है | उत्तर भारत में तो इन मजदूरों की बेहद दयनीय दशा है |  
5-केरल सरकार का नेटवर्क बहुत मजबूत है |प्रशासन का पूरा तंत्र बेहतर तालमेल के साथ सरकारी लक्ष्यों के लिए कार्यरत रहा है |विदेश से जो लोग भी राज्य में आये ,उन पर प्रशासन की चौकस दृष्टि रही |प्रशासन ने उनके आस-पास भी नज़र रखी और संभावित संक्रमितों को भी सही तरह से क्वारनटाइन किया |मेहता जी के अनुसार हमारी सफलता का सबसे बड़ा कारण है -केरल में शिक्षा की व्यापकता |शिक्षा की व्यापकता के कारण लोग प्रशासन को दिल से सहयोग करते हैं |    
केरल के मुख़्यमंत्री पिनाराई विजयन ,जो कि कोरोना से लड़ाई में अपने राज्य का सफल नेतृत्व कर रहे हैं प्रतिदिन मीटिंग करके अपने प्रशासन से फीडबैक लेते हैं और पांच बजे शाम को पत्रकारों से रू-ब-रू होते हैं |इस प्रकार जनता और सरकार के बीच संवादहीनता की स्थिति से बचा गया है |दिल्ली सरकार ने भी यह व्यवस्था बना रखी है कि जनता से संवादहीनता न हो | 
उन्होंने प्रवासी मजदूरों को अतिथि श्रमिक माना और उनके भोजन की निःशुल्क व्यवस्था की |यद्यपि दिल्ली सरकार ने भी मजदूरों के लिए मुफ्त भोजन की व्यवस्था की है लेकिन आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में जितने राहत शिविर हैं उसके 68.8 प्रतिशत केरल में हैं | 
मजदूरों के प्रति केरल सरकार की संवेदनशीलता का पता इस बात से भी चलता है कि सरकार ने उनके मोबाइल्स को रिचार्ज करने की भी व्यवस्था की |हर फ़ोन में सौ से दोसौ रूपये प्रतिमाह का रिचार्ज करने की व्यवस्था की गयी ताकि वे अपने गृहराज्यों में बसे अपने लोगों से बातचीत कर सकें | उन्हें मास्क्स और सेनेटाइजर भी दिए गए |उनकी बातों को समझने के लिए जो कॉल सेंटर बनाये गए उनमें अनेक भाषाओँ (गढ़वाली,अहोमिया ,बांग्ला और हिंदी में भी संवाद की व्यवस्था है  |          
कर्नाटक सरकार ने पिछले दिनों केरल की स्वास्थ्य मंत्री श्रीमती के के शैलजा से वीडियो कंफ़ेरन्सिंग के जरिये बात करके यह जानने  की कोशिश की कि केरल सरकार ने ऐसा क्या किया है जिसे अपनाकर वे अपने राज्य को कोरोना के कहर से बचा सकते हैं | केरल के अनुभवों से सीखने की यह कोशिश प्रशंसनीय है |
हार और जीत तो जीवन के दो पक्ष हैं लेकिन जीत की आशा खत्म हो जाना अच्छा लक्षण नहीं है और केरल मॉडल हममें कोरोना से विजय की आशा जगाता है |