तुम्हीं ने दर्द दिया है तुम्हीं दवा देना

वर्षों पुराना गीत आज नए सन्दर्भों में याद आ रहा है चूंकि कोरोना ने जनजीवन ठप्प किया हुआ है |सरकारें परेशान हैं चूंकि जनता परेशान है और जनता इसलिए परेशान है चूंकि परेशान रहना उसका स्थायी विषय है |


यह स्थायी परेशानी है -कभी बारिश ज्यादा होने से और कभी सूखा पड़ने से |जब ये दोनों न हो तो तीसरा,चौथा ,पांचवा कारण हो सकता है |


यह वैसे ही है जैसे बचपन में मुझे रामलीला देखने का शौक था |रामलीला में एक चरित्र ऐसा था जिसका चरित्र किसी भी भाषा की रामायण में न था |उसका कोई पक्का नाम नहीं था |जगह और मौके के हिसाब से वह अपना नामकरण कर लेता था |वह बिना नाम का चरित्र हमें बहुत बढ़िया लगता था ,उसे हम कहते थे जोकर |वह अयोध्या में भी दीखता था और लंका में भी |उसका स्थायी विषय था हँसाना और वह हर जगह अपने काम की गुंजाईश पैदा कर लेता था |


उसकी हाज़िरजवाबी देखिये -उस दिन वह रावण के पक्ष में था |सोने के लिए लेटा हुआ था -बिलकुल अजीब तरह से -पेट के नीचे पैर उठाये हुए |


उसके सहायक ने उससे पूछा-पैर ऊपर क्यों उठा रखे हैं ?


उसने कहा-रात को अगर आसमान गिर गया तो ---उसे रोकने के लिए पैर ऊपर उठा रखे हैं |


इसी प्रकार जनता की परेशानियां हैं -यदि बाढ़,सूखा और महंगाई न हो तो कुछ और खुद पैदा कर लेती है, उस जोकर की तरह |


बचपन के बाद हम भी जनता हो गए और जनता का स्थायी विषय चूंकि परेशान रहना है इसलिए उसे जोकर चाहिए जो उसका ध्यान उसकी परेशानियों से हटाकर किसी तरह उसके लबों पर ख़ुशी ला सके |


इन परिस्थितियों में जो चरित्र जनता के मन में बेहतर उम्मीद जगा सके वह सफल है |


आओ अपने विषय की तरफ लौटें  |कल शाम हमारे पड़ोस में तेज आवाज़ में भजन चल रहा था-उसके सही-सही बोल तो याद नहीं आ रहे लेकिन भाव कुछ ऐसे थे-


 रोना-धोना छोड़िये-जय माता की बोलिये


भजन का  वो दौर करीब दो घंटे चला और उसके नशे में हम लोग भी कोरोना की भयावहता को लगभग  भूल ही गए | कुछ लोग तो नाचने लगे |



भय का दौर ऐसा है कि आजकल जिससे भी बात करो वही कहता है-आशीर्वाद दो |


पैसे वाला आदमी पूंजीवाद के बाद समाजवाद में यकीन करता है |आशीर्वाद में तो न के बराबर यकीन रखता है लेकिन अमेरिका ,इटली और स्पेन तक कोरोना के सामने लाचार हैं तो फिर सोचता  है कि कहीं से आशीर्वाद के टॉनिक की दो-चार बूँदें मिल जाए |


पूरी गंभीरता से यह बात कहना चाहता हूँ कि आशीर्वाद सिर्फ शब्द नहीं होता बल्कि वह ऊर्जा होती है जो भगवान की भक्ति से हम अर्जित करते हैं |उस ऊर्जा से युक्त शब्द जीवन में क्रांति लाने की क्षमता रखते हैं |वैसे शब्द सबको चाहिए इसीलिए आशीर्वाद की डिमांड है |


डिमांड ज्यादा है और सप्लाई न के बराबर है इसलिए नकली आशीर्वाद भी धड़ल्ले से चल रहे हैं और आशीर्वादों की हर दुकान खूब फल-फूल रही है |बहरहाल वास्तविक आशीर्वाद की बात को आगे बढ़ाते हैं | 


आशीर्वाद प्राप्ति के लिए भगवान चाहिए |चूंकि आशीर्वाद वास्तविक चाहिए इसलिए भगवान भी वास्तविक चाहिए न कि सिर्फ कल्पना |


भगवान की वास्तविकता से जो परिचित हैं अर्थात जिन्होंने ब्रह्मज्ञान की अनुभूति की है वे आशीर्वाद की वास्तविकता को महसूस कर सकते हैं |


वर्तमान परिस्थितियों में आशीर्वाद के महत्व का चिंतन करने पर पाते हैं कि कोरोना की समस्या मानवजनित नहीं है |


मुझे लगता है कि भगवान इंसान को कुछ सबक सिखाना चाहता है इसलिए कोरोना का आविष्कार किया जैसे धर्मशास्त्रों में भगवान शंकर कई बार भूत-प्रेत आदि का आविष्कार करते हुए  बताये जाते हैं |


कोरोना का आविष्कार इसी प्रकार भगवान ने किया है और इसका उपाय यानी आशीर्वाद भी भगवान से ही चाहिए तो यह गीत साकार हो गया कि-तुम्हीं ने दर्द दिया है,तुम्हीं दवा देना |


यह एक वास्तविकता भी है चूंकि वैज्ञानिक कहते हैं सांप के काटे का इलाज करने के लिए सांप की ही मृतकोशिकाओं का प्रयोग होता है |मैंने सुना है कि जहाँ से समस्या या रोग शुरू होता है उसका इलाज ढूंढने की शुरूआत  भी वहीं से होती है |


हर पिता की तरह भगवान भी अपनी सन्तानो के प्रति दयालु है इसलिए यह समाधान भी देगा,पक्का है लेकिन जो सबक भगवान इंसान को सिखाना चाहता है उन्हें पहले सीखना होगा अन्यथा सिर्फ गाते ही रहेंगे-तुम्हीं ने दर्द दिया है,तुम्हीं दवा देना |