आज सुबह मैंने यह शेअर पढ़ा कि-
घाव खुद बता देंगे कि तीर किसने मारा है,
हमने कब कहा कि ये काम तुम्हारा है |
यह पढ़कर मुझे श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की याद आ गयी |
श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के बारे में मैंने सुना है कि उनके तीरों में एक तोला सोना लगा होता था | यह सोना ,आज के समय के अनुसार तो उसे बहुत मूल्यवान मानना चाहिए |
इसका एक कारण तो यह है कि सोने का मूल्य आजकल 40000 /- (प्रति तोला) से भी ज्यादा है |इस दृष्टि से एक तोला चालीस हज़ार रूपये से ज्यादा कीमत का होगा |
यदि वह तीर आज हमारे पास होता तो एक तीर का मूल्य चालीस से पैंतालीस हज़ार रूपये होता लेकिन यह उस बाण की कीमत आंकने का सही तरीका नहीं है |
यहाँ ध्यान देने योग्य एक तथ्य यह है कि एक तीर किसी मित्र ,सम्बन्धी या परिजन के लिए नहीं बल्कि शत्रु के लिए बनाया जाता है |
कहते हैं कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी उसमें एक तोला सोना इसलिए लगवाते थे ताकि जिसको वह तीर चुभे ,वह यदि घायल हो तो बाण में लगा सोना बेचकर वह अपना इलाज करवा ले और यदि वीरगति को प्राप्त हो तो उसके परिजन उस सोने को बेचकर उसका वीरोचित अंतिम संस्कार कर सकें |इसका अर्थ है कि श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ,शत्रु के भी शत्रु नहीं थे |इस परिपेक्ष्य में देखते हैं तो वह बाण और भी ज्यादा बहुमूल्य सिद्ध होता है |
इस तथ्य में कितनी सच्चाई है,मैं निश्चय से नहीं कह सकता लेकिन गुरु गोबिंद सिंह जी ही वो महामानव थे,जिनकी सेना में भाई कन्हैया जी अपने पक्ष के वीरों को ही नहीं दुश्मनो के पक्ष वालों को भी पानी पिला रहे थे |
शत्रु पक्ष को पानी पिलाने को कोई भी उचित नहीं मानेगा इसलिए भाई कन्हैया जी की शिकायत आयी |श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने उनसे स्पष्टीकरण माँगा कि आपकी शिकायत है कि आप दुश्मनो को भी पानी पिला रहे हैं |आपका इस बारे में क्या कहना है ?
भाई कन्हैया जी ने कहा कि आपकी शिक्षाओं का ध्यान करता हूँ तो मुझे कोई शत्रु दिखाई ही नहीं देता |श्री गोबिंद सिंह जी ने इस भावना को प्रोत्साहन दिया |
इस भाव को महसूस करने के लिए मुझे पावन बाणी का यह शब्द ध्यान में आता है-
न को बैरी नाही बेगाना , सगल संग हमको बनि आयी |
यह एक असाधारण भाव है जो भाई कन्हैया जी को ऊंची श्रेणी का गुरसिख सिद्ध करता है |वे जिस गुरु की सेवा में वह महान गुरु भी अपेक्षाकृत ऊंची श्रेणी का रहा होगा ,यह भाव वैसे ही महसूस होता है जैसे गुलाब की सुगंध बता देती है कि आस -पास गुलाब का उद्यान है इसी प्रकार भाई कन्हैया जी ने गुरु गोविन्द सिंह जी की महानता को महसूस कराया लेकिन यह भाव तब प्रमाणित भी हो गया जब गुरु जी ने भाई कन्हैया जी को आदेश दिया कि पानी तो पिलाओ ही साथ ही मरहम -पट्टी का सामान भी रख लो ,घायलों की मरहम पट्टी भी कर दिया करो |भाई कन्हैया जी सचमुच गुरु गोबिंद सिंह जी के ही गुरसिख होने के योग्य थे |
गुरु गोबिंद सिंह जी को दशमेश पिता इसलिए भी कहा जाना चाहिए चूंकि वे दोस्तों और दुश्मनो ,दोनों के ही अपने थे |अब उस शेअर को देखें-
घाव खुद बता देंगे कि तीर किसने मारा है,
हमने कब कहा कि ये काम तुम्हारा है |
तीर में यदि एक तोला सोना है तो तीर मारने वाला कोई अपना ही है,जिसे तुम बेगाना समझ रहे हो |तीर यदि चरणों में आकर गिरता है तो निश्चय ही वह अर्जुन का तीर है |और तीर यदि अर्जुन के सिर के ऊपर से गुजरता है तो वह भीष्मपितामह का तीर है या गुरु द्रोणाचार्य का तीर है |