मजबूत मनोबल ने बनाया - भीम को वंचितों का बाबा साहब


आज के वक़्त में यह सोचकर ही कितनी पीड़ा होती है कि - गांव में एक कुआं है जिससे कोई भी पानी पी सकता है लेकिन एक बड़े वर्ग को उस कुँए का पानी पीने की इज़ाज़त नहीं है |


वह चाहे प्यास से मर जाए लेकिन वह अगर उस कुँए का पानी पीने की हिमाकत करेगा तो लोग उसे जीवित नहीं छोड़ेंगे |


आज हम इस अमानवीयता की कल्पना भी नहीं कर सकते लेकिन डॉ. भीमराव राम जी अम्बेडकर ने इस दर्द को झेला था |


हम लोग जो अपने बच्चे को शिक्षित करने के लिए उसका प्रवेश किसी भी स्कूल में करवा सकते हैं क्या किसी भी स्थिति में यह स्वीकार कर सकते हैं कि एक खास वर्ग में जन्म लेने के कारण हमारे बच्चे को शेष वर्गों वाले बच्चों के साथ बैठने ना दिया जाए | हमारा बच्चा बाकी सब बच्चों से हटकर नीचे ज़मीन पर बैठे | शिक्षक यदि उसे ब्लैक बोर्ड पर प्रश्न हल करने को कहें तो बाकी बच्चे अपने बस्तों को इस डर से वहां से हटा लें कि उसकी छाया उनके बस्तों और लंच बॉक्सों पर न पड़ जाए |  


उस बच्चे का मनोबल क्या गिर नहीं जाएगा, हम सोच सकते हैं लेकिन राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, इतिहास तथा अर्थशास्त्र आदि चार - चार विषयों में एम.ए. की | लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से एम.एस.सी और कानून की पढाई की | फिर अर्थशास्त्र में पी.एच.डी. करने वाले डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा | लेकिन अपनी जड़ों को कभी नहीं भूले |बड़ोदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़, जिन्होंने इन्हें छात्रवृत्ति दी थी, की सेवा में वे पहुंचे और उन्हें अपनी सेवाएं दीं |


अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने उन्हें विश्व का सर्वश्रेष्ठ स्कॉलर घोषित किया | इसे कहते हैं - मनोबल |


आज यदि किसी बच्चे के साथ ऐसा दर्दनाक व्यवहार हो तो हम उसे स्वीकार नहीं कर सकते बल्कि उसके विरुद्ध आवाज़ उठाएंगे, भले ही वह उस व्यक्ति का बच्चा क्यों न हो, जो हमारा विरोधी है लेकिन मासूम भीम के लिए किसी ने भी यह आवाज़ नहीं उठाई | डॉ.अम्बेडकर शिक्षा को अपना अस्त्र बनाया और संघर्ष को अपना शस्त्र |
अस्पृश्य जाति में जन्म लेने के कारण उस समय के उनके स्कूल के संस्कृत शिक्षकों ने उन्हें  संस्कृत पढ़ाने से इंकार कर दिया था | जाति के आधार पर इस प्रकार के भेदभावपूर्ण व्यवहार करने वाले को हम निंदनीय और अपराधी मानेंगे लेकिन अब से सौ साल पहले ऐसा ही था और ऐसा व्यवहार करने वाले हमारे अपने भाई - बंधु थे |
बेशक उस समय अंग्रेजों का शासन था लेकिन अंग्रेजों का पूरा ध्यान अपने वर्चस्व की मजबूती कायम रखने पर था | उन्होंने दबाना था तो किसी खास वर्ग को नहीं बल्कि पूरे के पूरे भारतीयों को | हमारे ज्यादातर भाई - बंधु तो अपने ही एक बड़े वर्ग को जूते के नीचे दबाये रखने में व्यस्त थे |


इस स्थिति को प्रकट करने के लिए ज़हन में एक ही शब्द आता है - अन्याय |


आज कुँए नहीं हैं चूंकि जनसंख्या विस्फोट के कारण परंपरागत जल स्रोत अपनी पवित्रता की रक्षा नहीं कर सके इसलिए कुंओं को पाट दिया गया | स्वच्छ जल की व्यवस्था अब नया रूप ले चुकी है | स्कूलों में भी अब उस प्रकार के भेद भाव नहीं हैं | बालकों के मनोबल को कमज़ोर करना तो अब दंडनीय अपराध है |


अब हम स्वतंत्र देश के स्वतंत्र नागरिक हैं लेकिन हम उस वक़्त की नज़ाक़त को भूले नहीं हैं जब छोटी - छोटी चीजों के लिए भी एक विशेष वर्ग को अन्याय झेलना पड़ता था | नाई अछूत बालक के बाल काटने को तैयार नहीं होता था और रिक्शावाला भी उसे अपने रिक्शे में बैठाने को इसलिए तैयार नहीं होता था कि कहीं उसका धर्म न नष्ट हो जाए |


धर्म की ऐसी व्याख्या करने वालों को धार्मिक कैसे माना जाए जबकि धर्म तो वह प्रक्रिया है जिससे मनुष्य, मनुष्य बनता है |


मैं डॉ. अम्बेडकर को इसलिए भी याद करता हूँ चूंकि उन्होंने उस अन्याय को स्वयं भोगा लेकिन अन्य वंचितों को उस अन्याय का शिकार होने से बचाया | इस प्रकार क्रांतिदूत सिद्ध हुए |



उन्होंने अपने ऊपर होने वाले अनेक प्रकार के अन्यायों के बावजूद अपने मनोबल को कमजोर नहीं होने दिया | ऊपर बताये सारे अन्याय और जो यहाँ नहीं लिखे गए, उन सबको उन्होंने झेला लेकिन विचलित नहीं हुए |


उनके पिताजी उन्हें पढ़ाने के लिए जिस स्कूल में लेकर गए वहां उन्हें प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा | न सिर्फ शिक्षक द्वारा बल्कि उन सहपाठियों के द्वारा भी जो उनके जितने योग्य तो थे ही नहीं बल्कि न्याय और शिष्टाचार से भी हीन थे |


उसका प्रमाण यह है कि ऊंची जाति के अभिमान के कारण उन्होंने अपने ही साथी को सिर्फ इसलिए प्रताड़ित किया चूंकि वह उस वर्ग में जन्मा था जिसे उनके बड़े अस्पृश्य मानते थे |


इंसान कब, कहाँ और किस धर्म या जाति में जन्म ले यह उसका निर्णय नहीं है, फिर भी लोग उसे प्रताड़ित करते हैं, यह वास्तविक पिछड़ापन है |


हर किसी की प्रताड़ना झेलने के बावजूद बाबा साहब ने अपने मनोबल को कमजोर नहीं होने दिया |


उन्होंने भारत के संविधान की रचना में सबसे महत्वपूर्ण योगदान दिया | उस संविधान की रचना में जिसने दबे - कुचले लोगों को आत्मबल दिया और दिया अपनी बात कहने का हौसला |


स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री बनकर उन्होंने सामाजिक न्याय की मानवीय क्रांति का शंखनाद किया | ऐसे क्रांतियोद्धा को, उनके जन्मदिवस पर शत-शत नमन |