यद्यपि आमतौर से इस प्रश्न का उत्तर हाँ में होना चाहिए लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता चूंकि मैंने कुछ ही समय पहले उन पर्चियों को पढ़ा है,जिनमें निर्भया की अंतहीन पीड़ा ज़ाहिर होती है |22 दिसंबर 2012 को उसने लिखा है कि -
माँ मैं नहाना चाहती हूँ |मुझे सालों तक शावर के नीचे बैठे रहना है |उन जानवरो की गन्दी छुअन को धोना चाहती हूँ,जिनकी वजह से मैं अपने शरीर से नफरत करने लगी हूँ |माँ ,आप मुझे छोड़कर मत जाना ,अकेले डर लगता है |
उन धब्बों के निशान कितने गहरे हो सकते हैं,समझा जा सकता है |कोई पीड़िता जिनके कारण लगातार नहाते रहना चाहती है चूंकि उसके पास कोई अन्य उपाय नहीं है |वह चाहती है कि अपने शरीर पर लगे उन धब्बों को हटा सके जो उन गिरे हुए लोगों ने उसके शरीर के अंगों को नोच-खसोटकर लगाए |
ये दाग साधारण दाग नहीं हैं बल्कि ये मन और आत्मा पर लगे हुए दाग हैं जिन्हें धोने में कोई भी पानी सक्षम नहीं है |
25 दिसंबर 2012 ,को लिखी एक और पर्ची में उसने लिखा है कि माँ, आपने मुझे हमेशा मुश्किलों से लड़ने की सीख दी है |मैं इन जानवरों को सजा दिलाना चाहती हूँ |इन दरिंदों को ऐसे नहीं छोड़ा जा सकता |वहशी हैं ये लोग |इनके लिए माफी का सोचना भी भूल ही होगी |इन्होने मेरे दोस्त को भी बुरी तरह पीटा |माँ,इन लोगों को ज़िंदा जला दिया जाना चाहिए |
वे कुल छह लोग थे जिनमें से चार को फांसी 20 मार्च को बहुत मुश्किल से हुई है अन्यथा तीन बार तो उनके डेथ वारंट निकले और रद्द हो गए |कल भी लग रहा था कि अपराधियों का वकील कुछ न कुछ शातिर चाल जरूर चलेगा और अदालतें पहले की तरह उसके जाल में फंस सकती हैं | यह तो प्रभु की कृपा हुई कि उसकी चाल इस बार सफल नहीं हुई अन्यथा पिछले सात साल से तो वही भारी पड़ रहा था |
अपराधियों में से एक में तो शायद कुछ इंसानियत जागी होगी |उसे अपने घर की औरतों का ध्यान आया होगा तभी तो उसे शर्म आयी और उसने आत्महत्या कर ली |उसने आंशिक रूप से यह सिद्ध किया कि वह किसी इंसान की औलाद हो सकता है |
सकी आत्महत्या से जरूर निर्भया की आत्मा को कुछ सुकून मिला होगा |
नाबालिग होने के आधार पर जो नीचे (संसार )की अदालत से छूट गया ,उसे हम ऊपर (परमात्मा )की अदालत के न्याय के हवाले करते हैं चूंकि नाबालिग होने से उसे बेक़सूर नहीं माना जा सकता |
आंकड़ों के अनुसार नारी जाति पर हो रहे बलात्कार के केस लगातार बढे हैं |भारतीय अदालतों में लंबित ऐसे मामलों की संख्या सत्रह हज़ार के आस-पास है |इन सत्रह हज़ार पीड़िताओं को न्याय दिलाना सरल नहीं है चूंकि हर पीड़िता की माँ आशादेवी जैसी दृढ़प्रतिज्ञ ,समथ और तेजस्विनी नहीं हो सकती लेकिन उन सबका दर्द वैसा ही होगा जैसा कि निर्भया ने अपने मन और आत्मा पर लगे गहरे धब्बे के रूप में महसूस किया था |ये धब्बे पीड़िता को उस सामान्य स्थिति में कभी नहीं ला सकते जिसमें वह दर्दनाक घटना होने से पहले थी |
इस प्रकार निर्भया को न्याय देने का वैधानिक कार्य तो जरूर पूरा हुआ है लेकिन वास्तविक न्याय तो तब होगा जब शेष सत्रह हज़ार पीड़िताओं के मन और आत्मा की पीड़ा को समाज महसूस करेगा अन्यथा न्याय प्राप्ति का समर अभी शेष है |
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क्या सचमुच निर्भया को न्याय मिल गया है ?