खुदा है कि नहीं है ?

24  मार्च को रात 08  बजे प्रधानमंत्री जी ने सोशल डिस्टैन्सिंग अर्थात  सामाजिक फासलों को आज की ज़रुरत बताया |सामाजिक फासला ही बचाव का उपाय है चूंकि कोरोना एक संक्रामक रोग है,जिसकी शुरूआत चीन से हुई लेकिन यह उनका भी अपना नहीं है इसलिए  चीनी वायरस शब्द से यदि चीनी नागरिक  स्वयं को अपमानित महसूस करते हैं तो यह एक सच्चाई है |


हमारे साथ भी यदि कोई आदमी भारतीय वायरस शब्द जोड़ दे तो हमें भी बुरा लगेगा |पूर्वोत्तर के राज्यों में रहने वाले हमारे भाइयों की शक्ल चूंकि हमारे जैसी नहीं है इसलिए कुछ मूर्ख उन्हें भी कोरोना वायरस कहकर अपमानित कर रहे हैं |इस प्रकार नफरत के कारण उत्पन्न सामाजिक फासला पहले से ही इतना ज्यादा है ,जिसे पाटने की कोशिश हमेशा से की गयी है |


प्रधानमंत्री जी ने जिस सोशल डिस्टेंसिंग की बात कही है ,वह यह नहीं है |प्रधानमंत्री जी ने जिस सोशल डिस्टेंसिंग की बात कही है,वह तो आपद धर्म है | 


हमारा धर्म स्त्रियों का सम्मान करना सिखाता है और आजकल माता की उपासना के दिन भी चल रहे   है,इसके बावजूद दिल्ली में एक आदमी ने पूर्वोत्तर की एक छात्रा को कोरोना कहकर उस पर पान थूक दिया| यहअपमान भी एक रोग है |


सामाजिक दृष्टि से यह आपातकाल चल रहा है |कोरोना के अतिरिक्त भी समस्याएं नज़र आ रही हैं |लॉकडाउन के कारणअमीर, पहले से  गरीब हो रहे हैं और गरीब भुखमरी के कगार पर हैं |प्राइवेट काम--धंधे लॉक डाउन में हैं |उनकी अपनी समस्यायें हैं लेकिन वे भी अपने कर्मचारियों को बाहर करने को विवश हैं तो फिर जो लोग पूछ रहे हैं कि देवी-देवता कहाँ हैं ?भगवान या अल्लाह कहां है ,तो उनका प्रश्न इतना बुरा नहीं लग रहा |


       इस आपात स्थिति में कुछ लोग अनिवासी भारतीयों और उनके माता- पिता के पीछे पड़े हैं |


यह तो नफरत है और कुछ नहीं |


कोरोना की संक्रामकता ने बहुत सारे ऐसे लोगों को घरों में बैठने को विवश कर दिया है,जो शायद ही घरों में कभी बैठे हों |ऐसे में सोशल मीडिया एक वरदान बनकर आया है |whatsapp आदि ने हमें दूर बैठे हुए भी एक-दूसरे से जोड़ा हुआ है |


अड़ोस-पड़ोस बिलकुल वही है लेकिन आपसी  बातचीत बहुत कम होती है चूंकि सामाजिक फासले बनाना समय की ज़रुरत बताई गयी है और इस रोग पर काबू पाने का अन्य कोई उपाय नज़र भी नहीं आ रहा |


समय लम्बा है और इस रोग का पक्का इलाज अभी किसी के पास नहीं है |


क़यामत की सी स्थिति


विभिन्न धर्मग्रंथों में प्रलय अथवा क़यामत का जो जिक्र किया गया है,जिसे कुछ समय पहले तक हम लोग कपोल कल्पना समझते थे,शायद ऐसी ही होती होगी |


इस परिस्थिति में, यह निष्कर्ष तो बिलकुल स्पष्ट है कि अमेरिका से बढ़कर भी कोई सुपरपावर है जिसके सामने ट्रम्प भी मौन साधने को विवश हैं |यही बात उन बाकी लोगों पर भी लागु होती  है ,जो अपने आपको खुदा से कम नहीं समझते |


मुझे एक रोचक प्रसंग याद आ रहा है,जो पुराने बुजुर्ग शायरों ने कभी बताया था कि-कम्युनिस्ट विचारधारा के शायर बहस कर रहे थे कि-खुदा है या नहीं है ?


तब (जहाँ तक मुझे स्मरण है,जो मुझे बताया गया )अली सरदार जाफरी साहब ने एक शेअर में कहा-


हालात की ज़द में जो जाओगे किसी दिन


हो जाएगा मालूम- खुदा है कि नहीं है |


स्पष्ट है कि सुपरपावर परमात्मा है,जिसने अपने होने का अब तक का सबसे शक्तिशाली प्रमाण प्रस्तुत कर दिया है |


विवादित बयान   


कुछ भाइयों की दृष्टि में यह एक विवादित बयान है चूंकि जो प्रकृति और भौतिकता को ही सब कुछ मानते हैं ,वे कह रहे हैं कि भगवान और धर्म अब कहाँ है ?


मैं इस प्रश्न को खारिज नहीं करता चूंकि उनके प्रश्न में ईमानदारी है |साथ ही उनमें अनुभूति की कमी भी है अन्यथा निर्माण यदि निर्माता को ही खारिज कर दे तो उसे अज्ञान ही मानना होगा |


वास्तव में परमात्मा अब भी वहीं है जहाँ था |हम मनुष्यों ने परमात्मा की अन्य रचनाओं (पशु-पक्षियों आदि ) को अपना भोजन बना लिया इसलिए कोरोना अस्तित्व में आया |यह परिस्थिति मानव को एक चेतावनी है |मनुष्य अपने आपको जितनी जल्दी सुधार लेगा ,उतनी जल्दी इस आपातस्थिति से छुटकारा पा लेगा अन्यथा कोई भी यह निर्णय करने में अक्षम है कि कोरोना कब हमें छोड़ेगा |


प्रलय   


प्रश्न यह है कि मुझे यह स्थिति प्रलय क्यों लग रही है ?


इसका पहला जवाब तो यह है- चूंकि यह इंसान -इंसान में रत्ती भर भी भेद नहीं करती |हर देश में समान शक्ति से इंसानी शरीरों को खत्म कर रही है |


इसकी रफ़्तार इतनी तेज है कि किसी भी चीज से छूते ही वायरस चिपक जाता है और यह वायरस हाथ धोने से पहले आगे बढ़ता रहता है | मुँह पर हाथ लगाते ही वायरस खुद के भीतर फैल जाता है इसलिए बार-बार हाथ धोने को कहा जा रहा है |


जहाँ पीने तक को पर्याप्त पानी उपलब्ध नहीं है वहाँ हाथ धोने के लिए साफ़ पानी कैसे मिलेगा ?इसलिए प्रलय की ही स्थिति है |सरकारें पूरी कोशिश कर रही हैं लेकिन गरीबी और अशिक्षा कुछ समझने नहीं देतीं |


वायरस आगे न बढे इसके लिए लॉकडाउन ही  सरल उपाय नज़र आ रहा है |   


इसका सकारात्मक निष्कर्ष यह निकलता है कि हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख ,ईसाई,जैन,बौद्ध  ,यहूदी ,पारसी आदि समूह परमात्मा ने नहीं बनाये |इसका अर्थ है कि हमें भी इंसान-इंसान में भेद नहीं करना चाहिए |


कुछ समय पहले हम में से ही कुछ भाई स्वयं को देशभक्त और बाकी लोगों को गद्दार बता रहे थे और दंगों की आग में इंसानी मुहब्बत को जला रहे थे |


अब पता चला है कि प्रलय का यह दौर तब भी चालू था जब ट्रूप भारत में खुशियां मना रहे थे और हमारे धर्मप्रेमी घर ,इंसान और गाड़ियां जलाकर अपने -अपने धर्म को बचा रहे थे |


वो सिलसिला देखकर कोई भी निरपेक्ष इंसान धर्म का मार्ग ढूंढने की बजाय धर्म से किनारा करना चाहेगा |


भगत सिंह और चार्वाक 


मेरा कहना यह है कि धर्म से किनारा करना भी कुछ खास बुरा नहीं है चूंकि तब भी आप शहीद भगत सिंह और दार्शनिक चार्वाक हो सकते हो लेकिन धर्म की अनुपस्थिति को यदि अभिमान से भरा जाए तो वो ज्यादा विनाशकारी है |


जिस प्रकार कोरोना इंसान को खत्म करने में भेद नहीं करता इसी प्रकार अहंकार भी कोई भेद नहीं करता |वह पहले विवेक को खत्म करता है और फिर इंसान क्रमशः खत्म होता चला जाता है |


कोरोना से जंग में बहुत सारे लोग लगे हैं और वे इस जानलेवा रोग का टीका ढूंढ ही लेंगे ,पक्की बात है चूंकि वे ईमानदार हैं और सयनिष्ठ हैं |लेकिन अहंकार से लड़ने के लिए हमें अलग-अलग लेकिन खुद मेहनत करनी होगी |


     अहंकार से लड़ने की  इस अवस्था में हम सच्चे अर्थों में धार्मिक होंगे |