बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय का सम्बन्ध हिन्दू धर्म से भी है और महामना मदनमोहन मालवीय जी से भी |महामना का अर्थ ही है-मन का महान अर्थात बड़े मन वाला |इस प्रकार का जीवन जीने के कारण स्वतंत्र भारत में मालवीय जी को भारतरत्न होने का सम्मान दिया गया |
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय इन दिनों ख़बरों की सुर्खियां बटोर रहा है |सुर्खियां बटोरने का कारण भी अजीब है |अजीब इसलिए कि फ़िरोज़ खान नामक संस्कृत के विद्वान का पिछले दिनों विश्विद्यालय के संस्कृत विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में चयन किया गया लेकिन उन्हें कुछ विद्यार्थी इसलिए स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि वे मुस्लमान हैं |
हिन्दू-मुस्लमान के चश्मे में से इंसानो को देखने वाले विद्यार्थियों को समझना चाहिए कि हिंदुत्व एक जीवन शैली है और फ़िरोज़ खान के पिता रमजान खान ने अपने पुत्र को संस्कृत का विद्वान बनाकर यह प्रमाणित कर दिया है कि जन्म से मुस्लमान होने के बावजूद वे ह्रदय से संस्कृत प्रेमी हैं | किसी एक भाषा से प्रेम करने का अर्थ अन्य भाषाओँ की अवमानना नहीं है |
चूंकि सांप्रदायिक तत्व मुसलमानो में भी हैं और निश्चय ही ये मूढ़ लोग रमजान अली और फ़िरोज़ खान के संस्कृतप्रेम को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते होंगे |वे उनसे चिढ़ते भी होंगे इसके बावजूद रमजान अली और फ़िरोज़ खान ने अपने संस्कृतप्रेम को ऐसे बचाया जैसे कोई इंसान आंधी में अपने दीपक को बुझने से बचाये |
इस दृष्टि से सोचें तो हिन्दुओं द्वारा इन दोनों संस्कृतप्रेमियों का सम्मान किया जाना चाहिए था चूंकि धर्म, किसी अन्य धर्म का पूजास्थल तोड़ने से अथवा उसके स्थान पर अपने धर्म का पूजा स्थल बनाने से मजबूत नहीं होता बल्कि अपनी जीवन शैली को अन्य धर्मो के अनुयाइयों के ह्रदय में प्रतिष्ठित होने से मजबूत होता है |वास्तव में धर्म स्थूल नहीं सूक्ष्म तत्व है |
सांप्रदायिक सोच वाले विद्यार्थियों का यह तर्क किसी भी प्रगतिशील व्यक्ति को हैरत में डाल देता है कि सिर्फ मुसलमान होने के कारण कोई विद्वान हिन्दू विद्यार्थियों को संस्कृत पढ़ाने के लिए योग्य नहीं है |
स्वतंत्र भारत में डॉ.ज़ाकिर हुसैन ,फखरुद्दीन अली अहमद तथा ए.पी.जे.अब्दुल कलाम नामक तीन मुस्लिम महानुभाव राष्ट्रपति के पद पर आसीन रह चुके हैं और उन्होंने ऐसा कोई काम नहीं किया कि भारत को एक राष्ट्र के रूप में आँख नीची करनी पड़े |
उन्हें राष्ट्रपति चुनते समय किसी ने यह नहीं सोचा कि वे किसी मुसलमान को चुन रहे हैं |इस सर्वोच्च पद के अलावा भी मुस्लमान देश के बड़े-बड़े पदों को सुशोभित कर चुके हैं |
ये दोनों तथ्य इस वास्तविकता को प्रमाणित करते हैं हिंदुस्तान,जिसका वैधानिक नाम भारत है,में हिन्दुओं का नहीं कानून का शासन है |भारतीय संविधान जन्म अथवा धर्म के आधार पर किसी को योग्य अथवा अयोग्य नहीं ठहराता |
छात्र को विद्यार्थी भी कहते हैं,जिसका अर्थ है विद्या ग्रहण करने वाला और उसे शिक्षा कौन देगा यह तय करने पर उसका अधिकार नहीं है |
महामना मालवीय जी ने इस विश्वविद्यालय की स्थापना हिंदुत्व के इस सार को प्रचारित करने के उद्देश्य से की थी कि-वसुधैव कुटुंबकम (पूरी पृथ्वी हमारा ही परिवार है )मानव मात्र के प्रति इतना लगाव हिंदुत्व का आभूषण है |ऐसी सोच रखने के कारण ही मदनमोहन जी महामना हैं और भारतरत्न भी हैं |
बनारस हिन्दू विश्विद्यालय में वैधानिक ढंग से चुने गए प्रोफेसर को सिर्फ इसलिए पढ़ाने न दिया जाए कि वो मुसलमान हैं ,मानवता के तो विरुद्ध है ही,भारतीय संविधान और महामना मालवीय की प्रतिष्ठा के भी विरुद्ध है |