आत्महत्या करने में दिक्कतें


  जीवन में बहुत बार यह विचार आता है कि ऐसे जीने से तो बेहतर है आत्महत्या कर ली जाए लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत तो यह आती है कि लोग क्या कहेंगे?


  दूसरी दिक्कत यह भी आती है कि जब हमारे मरने की खबर हमारे दुश्मनों को मिलेगी तो उनके चेहरे खुशी से कितने खिल जाएंगे। वे ऐसे खुश होंगे जैसे लाटरी बेशक पड़ोसी की निकली हो लेकिन पैसा उनकी जेब में आ गया हो। दुश्मन की मुस्कान हजम नहीं होती इसलिए आत्महत्या का इरादा छोड़ना पड़ता है।


  एक मुश्किल यह भी होती है कि तरीका कौन सा इस्तेमाल करें। मैं चूंकि दिल्ली शहर में रहता हूँ और दिल्ला जमना नदी के किनारे पर बसा है इसलिए सबसे बढ़िया तरीका यह नज़र आता है कि लोकल बस में पांच रूपये का टिकट लो और नदी में छलांग लगा दो लेकिन हमारी माँ बचपन से ही कहती आ रही है कि-खबरदार अगर कभी नदी किनारे गए तो -टाँगे तोड़ दूंगी।


  माँ तो अब इस दुनिया में नहीं है लेकिन उसकी धमकी के डर से हम कभी उबर ही नहीं पाए। एक दिन हिम्मत करके नदी किनारे पहुँच भी गए लेकिन पानी बहुत ठंडा था। मन में ख्याल आया कि इतने ठन्डे में इतने कोमल शरीर को डुबोना तो क्रूरता है। इसलिए नदी में कूदकर मरने का विचार सही नहीं है |


  फिर ख्याल आया कि जिन सुंदरियों के चंद्रमुख को पति तक बिना पूर्व अनुमति के स्पर्श नहीं कर सकता उदंड मच्छर उनका रस भी लेता है और डंक भी मारता है। इतना क्रूर तो हुआ ही जा सकता हैक्या हम मच्छरों से भी गए-गुजरे हैं इसलिए पक्का इरादा करके पानी में पैर डाला लेकिन ऐसी गंदगी कि जेब से रुमाल निकालकर नाक पर रखना पड़ा। हमने सोच लिया कि जब तक इस नदी की सफाई नहीं हो जाती इसमें कदकर मरना सही नहीं है। वैसे भी जब तक भ्रष्टाचार है और निकम्मी सरकार है जमना क्या कोई भी नदी साफ नहीं हो सकती। मरना कैंसिल । नदी वाला प्रकरण तो यहीं खत्म हो गया लेकिन समस्या वहीं की वहीं कि फिर किसमें कूदकर मरें?


  मुझे लगा कि यदि हम हवाई जहाज में यात्रा कर रहे हों और वह दुर्घटनाग्रस्त हो जाए तो मजा आ जाएगा। मर भी जाएंगे और आत्महत्या का इल्जाम भी नहीं आएगा। सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे इसी को कहते हैं बुद्धिमानी । हमें पक्का भरोसा हो गया कि लोग चाहे हमें मूर्ख कहते रहे लेकिन हैं हम अव्वल दर्जे के बुद्धिमान। हवाई यात्रा में मरने से मुआवजा भी ऊंचा मिलेगा और घरवालों की दरिद्रता भी दूर हो जायेगी-आम के आम गुठलियों के दाम। हम भी खुश घरवाल भी खुश।


  अब तय यह करना था कि यात्रा कहाँ की करें। गली के चौकीदार से पूछा कि –यात्रा कहाँ की करें ?वह बोला-सबसे बढ़िया प्रदेश है-बिहार इसलिए गया जी चले जाओ। हमारे सब पूर्वज हजारों सालों से वहीं आराम कर रहे हैं, आप भी वही आराम करना । बात कुछ बुरी नहीं थी इसलिए अँची, मैंने गया जाने का इरादा कर लिया लेकिन पता चला कि वहा एयरपीट ही नहीं है इसलिए सरकार के निकम्मेपन से वहां भी मरना कैंसिल हो गया।


  उलटी-सीधी योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिए अखबार पढ़ना बहुत उपयोगी है। सम्पादकीय पन्ने के अलावा सब पन्नो में चोरों, उठाईगीरों, ठगों और लुटेरों के ही कारनामे छपे होते हैं इसलिए अखबार अब भी पढ़ा जा रहा है जबकि बाकी सब किताबें लाइब्रेरीज की शीशे की अलमारियों में से झाँक रही हैं। जैसे कह रही हों हमें पढ़ो लेकिन लोगों को फेसबुक या व्हाट्सएप्प पर चैटिंग करने से फुरसत ही नहीं। बहरहाल मैंने मुफ्त का अखबार पढ़ने के लिए लाइब्रेरी जाने का अटल इरादा किया ताकि आत्महत्या करने का कोई बढ़िया सा तरीका मिल जाए।


  लाइब्रेरी गया तो वहां का ताला बंद मिला। पता लगा लाइब्रेरियन साहब अपने किसी रिश्तेदार के आठवें बच्चे का कुआ पूजन करवाने गए हैं इसलिए लाइब्रेरी की आज कुआ पूजन छुट्टी है। रास्ते में अखबार वाला मिला भी लेकिन अपनी कमाई के साढ़े तीन रूपये अखबार पर खर्च करना मुझे गवारा नहीं हुआ इसलिए नाई की दुकान में घुस गया। वहां मैंने पूरे ध्यान से अखबार पढ़ा। एक लड़की मेट्रो के सामने कूदकर मर गयी थी। मैंने सोचा यह तरीका कैसा रहेगा ? ध्यान आया कि चूंकि मैं लड़की नहीं हूँ इसलिए मेरी खबर में ग्लैमर नहीं होगा अखबार तो वह खबर शायद ही छापें |


  सोचा जहर खा लें तो कैसा रहे ?जवाब आया खुद को गोली या छुरा मार लेने, छत से कूद जाने आदि से तो बढ़िया ही है। लेकिन जहर अगर नकली निकला तो कोई फायदा नहीं। घी से लेकर भिन्डी तक तो इंजेक्शन से पकाये जाते हैं और मिलावट करने वाले भी हमारे हिन्दुस्तान भाई ही हैं किसी और लोक के निवासी नहीं हैं फिर जहर असली होगा, इसकी क्या गारंटी है?


  ताऊ बलबीर की शरण में जाना उचित लगा। ताऊ बलबीर एक चारपाई पर ऐसे बैठे थे जैसे सम्राट अकबर मरने से पहले अपना सिंहासन उन्हें दे गए हों। वे हुक्का ऐसे गुड़गुड़ा रहे थे जैसे दुनिया में उनके करने लायक कोई काम न बचा हो। ताऊ की धाक देखकर मुझे उनसे कुछ पूछने की हिम्मत तक न पड़ी। लेकिन आत्महत्या भी तो करनी थी इसलिए हिम्मत करनी जरूरी थी। मैंने मन ही मन हनुमानजी को याद किया, हनुमान चालीसा जपा और ताऊ के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गयाताऊ बोले-क्या चाहिए ?मैंने उनके पैर छुए। ताऊ थोड़े नरम पड़े और बोले –बैठो।


  मैंने कहा-ताऊ जी-आत्महत्या करने का कोई रामबाण उपाय बताओ |


  ताऊ बलबीर ने कहा – मैं हैरान हूँ कि तू जवान आदमी है। शरीर भी ठीक-ठाक है। जहाँ तक मेरा ख्याल है तेरी शादी भी नहीं हुई, फिर तझे मरने का ख्याल क्यों आ गया?


  तू मुझे पागल भी नजर नहीं आता। तुझे यह भी पता होगा कि आत्महत्या एक अपराध है। आखिर आत्महत्या के तेरे जुनून का कारण क्या है ?


  ताऊ ने इतने सवाल एक साथ ऐसे फेंके जैसे शरारती लोग नेताओं पर कई-कई किस्म के जूते -चप्पल फेंकते हैं |


  मेरे दिमाग का कंप्यूटर हैंग होने से बाल-बाल बचा मैं अभी जवाब के बारे में सोच ही रहा था कि मुझे ताऊ के तेवर बदलते लगे। उनका हाथ उनकी लाठी की तरफ बढ़ रहा था मुझे लगा कि ज्यादा देर मौन रहा तो ताऊ कहीं हिंसक न हो जाएँ |



  मैंने ताऊ से कहा- ताऊ जी, अमीर और अमीर होते जा रहे हैं और गरीब और गरीब ।


  सन्त-महात्मा जो बड़े-बड़े प्रवचन करते हैं। लोगों को जीने की कला सिखाते हैं और माया को महाठगिनी बतलाते हैं। उनके आश्रमों की शान देखकर मन करता है कि इनकी बेशर्मी को झेलने से बेहता है कि आत्महत्या कर लूं। प्रवचन करने वालों को तो शर्त आती नहीं, मुझे जरूर आती है, इनकी बेशर्मी देखकर।


  फिल्मों में नायिकाएं कपड़ों से ऐसे परहेज करती हैं जैसे सुगर के मरीज चीनी से परहेज करते हैं। नैतिकता के पक्षधर उन्हें देखकर सीटियां बजाते हैं। यह देखकर मुझे शर्म आती हे।


  ताऊ मुझे यूं देख रहे थे जैसे मैं किसी और लोक का प्राणी होऊं। वे बोले-बैठ जा बेटा।


  मैं चारपाई के पैताने बैठ गया |


  "देख बेटा, तूने जो कारण बताये हैं, वो शर्मिन्दगी के कारण हैं, आत्महत्या के नहीं इसलिए मेरे सवाल का जवाब अभी नहीं मिला।


  "ताऊ जी, कल अखबार में पढ़ाएक साध्वी प्रवचन करती थी और एक जवान आदमी प्रवचन सुनने आता थाअखबार में लिखा है कि साध्वी प्रवचन सुनने वाले युवक के साथ भाग गयी है। घर वाले परेशान हैं।"


  "अरे बेटा, तू यह खबर पढ़कर क्यूं परेशान है। परेशान तो वह युवक होगा क्यों कि साध्वी तो चाय तक बनाना नहीं जानती होगी। पुलिस भी पीछे लगी होगी इसलिए उस युवक को परेशान होना चाहिए या परेशान होंगे उन दोनों के घरवाले।


  ताऊ, समस्या तो यह भी है कि एक राज्य स्तरीय राजनीतिक दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बहत्तर साल की उम्र में शादी की है। पोती-पोते की उमर में शादी करना शोभा देता है तू!" .


  मैंने कहा- ताऊ, इस युग में शर्मदार होना भी एक बीमारी है। मैटो स्टेशन पर जाता हूं तो देखता हूं कि लड़कियों ने जैसे आग लगाने का ठेका ले लिया है। कई बार तो लगता है जैसे इकलाब होकर रहेगा। उनके कपड़े इतने छोटे हैं कि पता ही नहीं चलता कि वे क्या छिपाने के लिए पहने गये हैं? सब कुछ आर-पार और मर्यादा शर्मसार |


  ताऊ बोले, “दुनिया तो ऐसे ही चलती आयी है। तू चाहे जो कर किसी को रोक नहीं सकताअगर ज्यादा ऊंची आवाज में बात करेगा तो पुलिस वाले पीछे पड़ जायेंगे। हो सकता है। नारीवादी लोग भी तेरे पीछे पड़ जायें तब वैसे ही तेरा जीना मुश्किल हो जायेगा जैसे अनारकली का हो गया था, मुगल-ए-आज मफिल्म में।"


  मैं तो कहता हूं कि कि दूसरों की गलतियों के लिए अपना मन छोटा मत कर। आत्महत्या करने की बात छोड़, किसी से शादी करले। शादी करने वाला आत्महत्या की बात सोच तो सकता है लेकिन आत्महत्या कर नहीं सकता क्योंकि बीवी इतनी आसानी से अपने पति को नहीं छोड़ सकती।


  "पर ताऊ! मैं अभी कुछ कहने की सोच ही रहा था कि ताऊ ने जैसे फेसला सुना दिया-बोले बेटा, मुझे इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना।


  ताऊ के मौन होते ही मैं उनके चरण स्पर्श करके चल दिया। ताऊ की बात मानकर मैंने शादी तो कर ली है लेकिन आत्महत्या करने का रामबाण उपाय अभी तक मुझे नहीं मिला।


  सोच रहा हूँ कि ताऊ जैसे लोग भी आत्महत्या करने के मामले में बड़ी दिक्कत है।