महात्मा गाँधी क्या सचमुच अब इस दुनिया में नहीं हैं ?तकनीकी तौर पर इसका जवाब है-हाँ ,क्यूंकि 30 जनवरी 1948 को उन्हें गोली मार दी गयी थी और उनका शरीर निर्जीव हो गया था। गोली मारने की भी एक लम्बी परंपरा है। अब्राहम लिंकन, मार्टिन लूथर किंग और जॉन एफ कैनेडी को भी गोली ही मारी गयी थी। 1984 में इंदिरा गाँधी को भी गोली मारी गयी। धर्म - अध्यात्म के क्षेत्र में देखें तो मानवता के संदेशवाहक निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह जी को भी 1980 में गोली ने ही दुनिया से विदा किया ,इस सूची में और भी बहुत से प्रसिद्ध नाम आ सकते हैं।
प्रश्न यह है कि क्या गोली के अलावा कुछ और उपाय नहीं था ? मतभेद तो किसी के भी और किसी के साथ भी हो सकते हैं तो क्या उसे खत्म कर देना चाहिए?
मतभेद दूर करने का विधिसम्मत उपाय तो यह है कि उसके विचार को समझने और अपने विचार को समझाने का प्रयास किया जाए लेकिन जिन्हें सामने वाले के विचार की मजबूती से डर लगता है, वे अपने विचार को कमजोर कर लेते हैं|आत्मविश्वास कम होने के कारण फिर उनका विवेक कार्य करना बंद कर देता है, फिर उन्हें गोली मारना ही एक मात्र उपाय लगने लगता है। होता यह है कि किसी भी हथियार से शरीर तो खत्म हो जाता है लेकिन विचार खत्म नहीं होते।
होता यह है कि महान व्यक्ति में भी गुण-दोष होते हैं लेकिन उसके साथ हिंसा होने की स्थिति में जनता की सहानुभूति उसे मिलती है और जिस कारण से उसके साथ हिंसा की गयी, वह कारण उसके विचारों को ताकत प्रदान करता है और उसके विचार अमर हो जाते हैं।
मैं सोचता हूँ कि यद्यपि नाथूराम गोडसे ने उनके शरीर को तो खत्म कर दिया लेकिन शरीर के खत्म होने से यदि वे खत्म हो जाते तो फिर उन्हें याद करने की जरुरत नहीं थी लेकिन आज भी उन्हें याद किया जाता है। स्वतंत्रता के बाद एक मात्र वही हैं जिनके बारे में सबसे अधिक श्रद्धा है और सबसे कम विवाद हैं।
कल दोपहर एक आध्यात्मिक सभा में उन्हें याद कर रहा था। मैंने कहा कि महात्मा गाँधी की काफी लोग काफी कटु आलोचना करते हैं जबकि मरने के बाद आलोचना करने की परंपरा नहीं है क्यूंकि इंसान अपनी आलोचना का जवाब देने के लिए उपलब्ध नहीं होता लेकिन ऐसा लगता है कि हम भारतीय बहुत खुदगर्ज हो गए हैं या अतिअहंकार के कारण किसी की भी आलोचना करने से हमें कोई परहेज नहीं है जबकि महात्मा गाँधी का नाम ऐसे व्यक्तित्वों में शामिल है, जिन्होंने दुनिया भर में भारत को एक सार्थक पहचान दिलाई।
आप जरा सोचिये ,महात्मा गाँधी ने अंग्रेजों के अत्याचारों के विरुद्ध अनेक आंदोलन संचालित किये लेकिन उन्होंने यह भी ध्यान रखा कि नरसंहार से बचा जाए इसलिए जनता को अहिंसक विरोध का फार्मूला दिया |इस फॉर्मूले के बावजूद थोड़ी-बहुत हिंसा हो ही जाती थी क्यूंकि सामान्य जनता में विवेक का अंश कम होता है| दरअसल बौद्धिक चेतना के लिए शिक्षित होना जरूरी है और आम जनता को मूल समस्याओं से निबटना पड़ता है इसलिए अंग्रेजों के प्रति रोष भी ज्यादा था इसलिए महात्मा गाँधी ने उस रोष को संयमित रखा|सत्याग्रह और अहिंसा के मन्त्रों से उन्होंने रोष को हिंसक नहीं होने दिया। हिंसा नहीं के बराबर होने के कारण उन आंदोलनों का नैतिक दबाव भी पड़ता था और सरकार को ज्यादातर झुकना भी पड़ता था।
महात्मा गाँधी ने अहिंसा के धर्म को जनमानस का धर्म बना दिया जिसके कारण आजादी का दिन देखने के लिए वे और उनके अनुयाई और बड़ी संख्या में हमारे पूर्वज जीवित रहे। उनका कहना था कि सरकारी पुलिस आपको यदि डंडे भी मारे लेकिन आपने हिंसा का उत्तर हिंसा से नहीं देना |
उनका कहना था -घृणा पाप से करो,पापी से नहीं । पापी और पाप को अलग-अलग रखने के कारण यह बात जीवन का दर्शन बन गयी |
सामान्यतः पाप और पापी को एक ही मान लिया जाता है जबकि समस्या पाप से है, पापी तो अनुकूल मार्गदर्शन मिलने पर धर्मात्मा भी हो सकता है। ऐसा हुआ भी है -चम्बल के दुर्दात माने जाने वाले डकैत विनोबा भावे और जय प्रकाश नारायण जी की प्रेरणा से सामान्य जन-जीवन में लौट आये थे।
गुण-दोष हर आदमी में होते हैं, महात्मा गाँधी में भी थे। उन्होंने अपनी आत्मकथा में स्वयं उन दोषों को स्वीकार लिया है लेकिन उन दोषों को उन्होंने कैसे निष्प्रभावी किया, इसका भी उल्लेख किया है। इन प्रयोगों ने ही महात्मा गाँधी को एक सन्त का रूप दिया।
नेल्सन मंडेला और मार्टिन लूथर किंग ऐसे ही व्यक्तित्वों में शामिल हैं जिन्होंने महात्मा गाँधी के जीवन से बहुत कुछ सीखा और उनके सत्याग्रह को अपने संघर्ष का आधार बनाया |
इस दृष्टि से देखें तो महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक है, जिन्होंने विश्व भर के जनमानस को प्रभावित किया। मैंने उनकी आत्मकथा दिल से पढ़ी है, जिसका नाम है-सत्य के साथ मेरे प्रयोग। अपने विद्यार्थी जीवन में ही मैंने इसे पढ़ लिया था| इस किताब को पढ़ने से पता चलता है कि हालत कितने खराब थे। दक्षिण अफ्रीका में भी महात्मा गाँधी को स्वीकार करने को कोई तैयार न था। उन्हें रेलगाडी से नीचे धकेल दिया गया । वह गाँधी जी का देश नहीं था फिर भी उनका आत्मविश्वास अनूठा था। वे धक्के के बावजूद प्लेटफार्म पर पड़े नहीं रहे बल्कि रंगभेद के खिलाफ अपने मन में आग पैदा की, जिसकी रोशनी ने दुनिया को बता दिया कि यह साधारण सा दिखने वाला आदमी दुनिया के नक्शे को बदलेगा।