दशरथ मांझी को शाहजहां से ज्यादा सम्मान मिलना चाहिए क्यूंकि ?


  कुछ वर्ष पहले दशरथ मांझी पर एक फिल्म बनी थी-मांझी-The mountain  man  |शाहजहां पर भी  बरसो पहले फिल्म बनी थी, जिसका संगीत भी सुपरहिट हुआ था |


  शाहजहां पर जो फिल्म बनी थी,उसका नाम था -ताजमहल |उसका मशहूर गाना था -जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा |प्रजातंत्र के विकसित होने पर लोगों ने नेताओं को उनके भूले-बिसरे वादे याद दिलाने के लिए इस खूबसूरत गाने का व्यंग्यात्मक अंदाज़ में इस्तेमाल किया |


  दशरथ मांझी पर बनी फिल्म के गाने तो चर्चा में नहीं आये लेकिन दशरथ मांझी का संघर्ष ज़बरदस्त और ज़िंदाबाद था |
सतही दृष्टि से देखें तो शाहजहां और दशरथ मांझी में कोई समानता नहीं है लेकिन दोनों ही अपनी पत्नी से बेपनाह मुहब्बत करते थे,यह सच्चाई दोनों को एक -दूसरे के साथ खड़ा कर देती है | इतिहास यह भी बताता है कि शाहजहां की तो मुमताजमहल के अलावा भी बहुत सारी पत्नियां-उपपत्नियाँ थीं और दास -दासियाँ थे लेकिन दशरथ मांझी की तो एक फागुनी ही थी |इस दृष्टि से वे शाहजहां के साथ खड़े होकर भी शाहजहां से ऊंचे नज़र आते हैं |    


  अब अध्ययन को आगे बढ़ाते हैं |शाहजहां ने ताजमहल बनवाया ,जो विश्व के सात आश्चर्यों में से एक है और आगरा (भारत )में स्थित है |यह एकमात्र आश्चर्य है ,जो हम भारतीयों को गौरवान्वित होने का अवसर देता है|दुनिया भर के पर्यटक इसे देखने आते हैं और अक्सर इसे देखकर भाव विभोर होते हैं |विशेषकर स्त्रियां मन ही मन मुमताजमहल से ईर्ष्या करती हैं कि ऐसा उसमें क्या था कि बादशाह ने उसकी याद में यह अनूठा स्मारक बनवा दिया |


  ऐसे कई लोग हैं जिन्होंने अपनी मुहब्बत के दम पर शाहजहां से मुकाबला करने की कोशिश की |बांग्लादेशी फ़िल्मी व्यक्तित्व अहसान-उल्लाह मोनी इसी प्रकार के व्यक्ति हैं| लेकिन उन्होंने जो ताजमहल की प्रतिकृति बांग्ला देश में बनवाई वह गरीब लोगों (जो ताजमहल देखने के लिए भारत नहीं आ सकते )को समर्पित है,प्रेमिका अथवा पत्नी की मुहब्बत से संभवतः उसका कुछ लेना-देना नहीं है |


ढाका के निकट सोनारगाँव  (बांग्लादेश) में स्थित ताजमहल की प्रतिकृति शाहजहां से मुकाबला करने की ऐसी ही कोशिश का नतीजा है |लेकिन इससे यह तथ्य पूर्णतः स्पष्ट है कि शाहजहां और मुमताजमहल विश्व भर में जाने जाते हैं |


  अब दशरथ मांझी की बात करते हैं |शाहजहां यदि कलाप्रेमी बादशाह था तो दशरथ मांझी बिहार में जन्मे अपराजित -अजेय योद्धा थे |


  शाहजहां ने ताजमहल बनवाने में एक ईंट भी नहीं लगायी लेकिन दशरथ मांझी ने पहाड़ काटने का पूरा काम स्वयं किया |
कोई भी इंसान यह देखकर हैरान हुए बिना नहीं रहेगा कि एक आदमी के जुनून ने उस पहाड़ को हटा दिया जिसके रास्ते में आने के कारण उनकी पत्नी फागुनी को समय पर चिकित्सा नहीं मिल पायी और उसकी मौत हो गयी |फागुनी की मौत ने दशरथ मांझी को जूनून से भर दिया और एक-अकेले आदमी ने पहाड़ को रास्ते से हटाने का जैसे प्रण कर लिया |



  दशरथ मांझी बादशाह नहीं थे कि मिस्त्रियों और मजदूरों की फ़ौज खड़ी हो जाए |वे बांग्लादेशी फिल्मकर्मी अहसान उल्लाह के समान धनी भी नहीं थे कि पैसे के बल पर ताजमहल की प्रतिकृति जैसी इमारत खड़ी कर सकें |वे तो दलित-दमित मजदूर थे लेकिन पति और उससे भी ज्यादा ज़बरदस्त प्रेमी थे |पत्नी के चले जाने के गम से टूटे दशरथ मांझी ने अपनी सारी ताकत बटोरी और पहाड़ के सीने पर वार करने का फैसला किया. लेकिन यह आसान नहीं था| शुरुआत में उन्हें पागल तक कहा गया| दशरथ मांझी ने बताया था, 'गांववालों ने शुरू में कहा कि मैं पागल हो गया हूं, लेकिन उनके तानों ने मेरा हौसला और बढ़ा दिया'|


  दशरथ मांझी के गहलौर पहाड़ का सीना चीरने से गया के अतरी और वज़ीरगंज ब्लॉक का फासला 80 किलोमीटर से घटकर 13 किलोमीटर रह गया|


  उन पर फिल्म बनाने वाले फिल्म निर्माता-निर्देशक केतन मेहता ने उन्हें गरीबों का शाहजहां करार दिया | साल 2007 में 73 बरस की उम्र में वो जब दुनिया छोड़ गए, तो पीछे रह गई पहाड़ पर लिखी उनकी वो कहानी, जो आने वाली कई पीढ़ियों को असंभव जैसे कठिन कार्य को भी संभव कर डालने की प्रेरणा देती रहेगी |


  उन्होंने बादशाहत नहीं चाही, शाहजहां से मुकाबला करना भी नहीं चाहा ,प्यार के जुनून में पहाड़ को रास्ते से हटाकर इलाके के लोगों को ऐसी देन दी कि भविष्य की कोई फागुनी चिकित्सा के अभाव में दम न तोड़े |