हिंदी भाषा को चलन से बाहर करने की कोशिश


पिछले दिनों एक शब्द पढ़ने में आया-मॉब लिंचिंग | शब्द किसी अंग्रेजी के अखबार में नहीं बल्कि हिंदी के अखबार में छपा था |मैंने बेटे से पूछना चाहा लेकिन झिझक हुई कि वह क्या सोचेगा ?



 



मैं रुक गया ,पहली बार हिंदी के अखबार में छपी को खबर को पढ़ने के लिए बाहरी सहायता की ज़रुरत पडी थी |



 



मैं सोच रहा था कि क्या अखबार के पत्रकार इतने लापरवाह हो गए हैं कि पाठकों के लिए इस शब्द का हिंदी में अनुवाद नहीं कर सकते थे या वे समझते हैं कि हिंदी में इस शब्द का समानार्थी शब्द नहीं है या हिंदी के सब पाठक अंग्रेजी भी अच्छी तरह जानते हैं ?



 



नए शब्दों को स्मृति में लेने की पुरानी आदत रही है तो उस शब्द के अर्थ तक पहुंचा |



 



शब्द जरूर मेरे लिए नया था लेकिन अर्थ नया नहीं था |भीड़ द्वारा हिंसा कोई नयी बात नहीं है फिर उसके लिए अंग्रेजी शब्द हिंदी के अखबार में ,बात कुछ हज़म नहीं हुई |



 



भाषा अलग चीज है और लिपि अलग |अब हम यह भिन्नता हम पहचान चुके हैं लेकिन हमारी राष्ट्रभाषा को ख़त्म करने का सुनियोजित षड़यंत्र चल रहा है,ऐसा लगता है क्यूंकि कुछ वर्ष पहले जो अख़बार हिंदी लिपि के साथ हिंदी शब्दों का ही इस्तेमाल करते थे अब धड़ल्ले से अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करते हैं |



 



वर्षों पहले ही हमारे भाषा वैज्ञानिकों ने इस समस्या को भांप लिया था कि धीरे -धीरे हमारी सांस्कृतिक श्रेष्ठता को नष्ट करने के प्रयास किये जा रहे हैं |प्रश्न यह है कि जब हिंदी भाषा में उपयुक्त शब्द उपलब्ध है तो सही शब्द से बचने का क्या कारण है?



 



एक कारण तो यह हो सकता है पत्रकार को अंग्रेजी के शब्द का तो ज्ञान हो लेकिन समानार्थी हिंदी शब्द का ज्ञान न हो |



 



यदि ऐसा हो तो शब्दकोष की सहायता ली जा सकती है लेकिन जो शब्द प्रचलित नहीं हो और अख़बार की भाषा का भी न हो तो उसका उपयोग नहीं करना चाहिए |लेकिन इस गलती को लगातार और सोच-समझकर किया जा रहा है|धीरे- धीरे ऐसा लगने लगा कि या तो हिंदी भाषा में शब्दों का अभाव है या हम हिंदुस्तानी अपनी भाषा के प्रति कुंठित हो गए हैं कि हमारी भाषा अंग्रेजी भाषा से कमतर है इसलिए हमारे रिपोर्टर्स हमारी राष्ट्रभाषा से अनभिज्ञ हो गए हैं |



 



लगभग बीस वर्ष पहले अखबारों में हिंदी लिपि के साथ हिंदी भाषा का ही उपयोग होता था |उन दिनों जमानत के लिए जमानत ही लिखा जाता था न कि बेल |इसी प्रकार कोई अगर गिरफ्तार होता था तो उसके लिए अरेस्ट शब्द का उपयोग नहीं किया जाता था |



 



उस समय जब अखबार पढ़ते थे तो पाठकों की भाषा समृद्ध होती थी लेकिन अंग्रेजी भाषा



 



के बढ़ते वर्चस्व ने अखबारों की शब्दावली बिगाड़ दी है |



 



एक मित्र से जब यह बात कही तो वे बोले -अंग्रेजी शब्दावली तो बढ़ रही है |



 



सुनने में यह बात बहुत सकारात्मक लगती है कि भाषाई नुक्सान का सकारात्मक प्रभाव भी है लेकिन यथार्थ इतना मधुर नहीं है |



 



यथार्थ के धरातल पर उतरकर देखें |



 



देश में निकलने वाले अखबारों में हिंदी की पाठक संख्या सर्वाधिक है |हो भी क्यों न आखिर हिंदी बोलने वाले लोगों की संख्या भी तो सर्वाधिक है |



 



यथार्थ यह है कि जो पहले जमानत बोलता था,अब भी ज़मानत ही बोलता है लेकिन अख़बार में पढता है-लालू यादव को बेल |अब वह उलझ जाता है कि यह तोरई की बेल है या सेम की बेल है ?इस प्रकार पाठक उलझन में पद जाता है |



 



इस उलझन को बढ़ाने में जिन पत्रकारों का योगदान है उन्हें पाठकों को उलझन से बचाना चाहिए और अपने कर्तव्य को सही प्रकार निभाना चाहिए अन्यथा हिंन्दी भाषा को चलन से बाहर करने में उनका भी दोष होगा इसलिए इस आदत से जितनी जल्दी बचा जाए उतना ही बेहतर है |