आज श्रीकृष्ण का जन्मदिवस है और मुझे लगता है कि द्वापर युग में जन्मदिन मनाने की प्रथा नहीं थी |श्रीकृष्ण के जन्म की परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि उस समय उन्हें बचाना ज्यादा ज्यादा जरूरी था क्यूंकि उनके पीछे तो उनके मामाश्री ही हाथ धोकर पड़े हुए थे |
जन्मदिन मनाने की प्रथा उस समय इसलिए भी नहीं रही होगी क्यूंकि उस समय व्यर्थ की दिखावेबाजी की ज्यादा महत्ता नहीं थी |
द्वापर युग में दो मामाओं की बहुत चर्चा थी- एक कंस और दूसरा शकुनि |दिक्कत की बात तो यह है कि जो श्रीकृष्ण का मामा था वही उस देश का शासक भी था |
जो निजी खतरे से बचने के लिए अपनी ही बहन के बच्चों का पैदा होते ही क़त्ल कर दे ,उसे क्या कहें -निर्दयी |
मुझे लगता है कि यह उसके लिए सही शब्द नहीं है |अगर आतंकी कहें वह भी कम है |छोटे-छोटे शिशुओं की जीवन सूचक आवाज़ को सुनकर भी जिसके मन में हर्ष उत्पन्न न हो,उसके लिए उपयुक्त शब्द खोजने के चक्कर में क्यों पड़ा जाए ?आइये आगे बढ़ें |
दोनों ही मामा अच्छे इंसान नहीं थे क्यूंकि जो किसी का बुरा करता है वह तो बुरा है ही,लेकिन जो प्रत्यक्ष रूप से तो बुरा नहीं करता लेकिन सदैव दूसरे का बुरा सोचता है वह भी कम बुरा नहीं है |
शकुनि प्रत्यक्ष दुश्मन नहीं था इसीलिए युधिष्ठिर उसे अपना रिश्तेदार ही समझते रहे,यदि ऐसा न होता तो वे उसके साथ जुआ क्यों खेलते ?
युधिष्ठिर सत्यवादी थे ,धर्मराज भी थे,बेहद उदार भी थे लेकिन जुआ खेलने के प्रति गहराई से आसक्त भी थे |वे एक समर्पित शिष्य भी थे जिन्होंने श्रीकृष्ण का यह परामर्श मान लिया कि पांच गांव लेकर काम चलाओ ताकि युद्ध से बचा जा सके लेकिन जुए की कमजोरी ने उनके बाकी सारे गुणों पर पर्दा डाल दिया |
सोचकर देखिये -उस समय यदि श्रीकृष्ण न होते तो कुरुवंश की इज्जत,मान-मर्यादा का क्या हश्र होता?
उनसे ज्यादा उम्र वाले पुरुष -धृतराष्ट्र,भीष्म,द्रोणाचार्य,कृपाचार्य आदि तो खाये हुए नमक का हक़ अदा कर रहे थे |
सत्य के पक्षधर तो सिर्फ श्रीकृष्ण ही थे ,जिहोने कुलवधू की लाज बचाई इसलिए महाभारत में पूजा के पात्र एकमात्र वही हैं इसलिए उनके जन्मदिन को तो मनाना ही चाहिए लेकिन किस रूप में ?
कल मैं दफ्तर से जब आ रहा था तो मंदिर में यह भजन चल रहा था -श्याम चूड़ी बेचने आया |सुनकर मुझे जन्माष्टमी की याद तुरंत आ गयी लेकिन यह किशोरावस्था की शरारत श्रीकृष्ण को याद करने का सही तरीका नहीं है |
श्रीकृष्ण को समझना है तो राधा को समझना होगा और थोड़ा-बहुत अर्जुन को भी |
राधा का जादू मथुरा में अब तक चलता है |वृन्दावन में एक रिक्शेवाला भी अपनी सवारी को राधे कहकर बुलाता है,भले ही वह पुरुष ही क्यों न हो |हलवाई भी राधे-राधे बोलता है और मजदूर भी |
आश्चर्य तो यह देंखकर होता है कि इतिहास के अनुसार राधा और कृष्ण का साथ कोई बहुत वर्षों का नहीं है |यह तब तक का है जब कृष्ण ब्रज में लीलाएं कर रहे थे |गायें चरा रहे थे ,कालिय नाग का दमन कर रहे थे और गोप-गोपिकाओं को मोहित कर रहे थे |
राधा के कृष्ण ,कान्हा हैं -सिर्फ कान्हा -न रणछोड़,न द्वारकाधीश |
प्रेम सीखना है तो राधा से सीखना होगा |राधा और कृष्ण का प्रेम बराबरी का प्रेम है,अर्जुन उसके सामने कहीं भी नहीं टिकता |अर्जुन पर तो श्रीकृष्ण ने दया की जो सबसे बड़ा वरदान (विराट स्वरुप का रहस्योद्घाटन )उसे दे दिया,अन्यथा वह पात्र नहीं है |वह संकेत की भाषा समझता ही नहीं इसके बावजूद महाभयंकर युद्ध में श्रीकृष्ण उसके सारथि बनते हैं |
श्रीकृष्ण ने उसे अपना रिश्तेदार भी बनाया और गीता के ज्ञान का अधिकारी भी |
श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व बहुरंगी है,उसमें सब कुछ है इसलिए सोलह कलाओं वाला आंकड़ा उनके साथ न्याय नहीं करता |
प्रायः हम राम जी के अवतार को ज्यादा कठिनाई वाला मानते है लेकिन कृष्ण जी का जीवन भी कम कठिनाई वाला नहीं रहा |राम जी के भाइयों ने उनके लिए कभी कोई समस्या पैदा नहीं की लेकिन कृष्ण जी के साथ जो खानदान था उसने उनके लिए बहुत समस्याएं पैदा की |
श्रीकृष्ण की छत्रछाया में सुरक्षित होने के कारण वे उनके आदेशों की बिलकुल भी परवाह नहीं करते थे इसलिए महाभारत के युद्ध में पांडवों को विजयश्री दिलाने के बाद श्रीकृष्ण को बहुत दुःख झेलने पड़े |
इतिहास बताता है कि उनके खानदान के बालकों ने एक दिन बहुत मस्ती की,जैसे कि आजकल भी बड़े घरों के बच्चे करते हैं |
श्रीकृष्ण के खानदानी इन बच्चों में एक बच्चा था -साम्ब |साम्ब का चेहरा स्त्रियों जैसा था |
जहाँ ये बच्चे खेल रहे थे,वहां से दुर्वासा मुनि गुजर रहे थे |इन बच्चों ने उनके साथ भी शरारत की |ऋषि-मुनियों का सम्मान करने के श्रीकृष्ण के निर्देश पर ध्यान नहीं दिया |
उन्होंने साम्ब के पेट पर एक मूसल बांध दिया और अशिष्टता से मुनि से साम्ब की ओर इशारा करके पूछा कि-इसके पेट में लड़का है या लड़की ?
दुर्वासा जी को उनकी धृष्टता पर बहुत क्रोध आया -उन्होंने कहा-इसके पेट में जो कुछ है,वह तुम्हारे खानदान का नाश करेगा |
अब इन बच्चों के कान खड़े हुए |श्रीकृष्ण ने वंश को बचाने के लिए इस शरारत से बचाव का पूरा प्रयास किया लेकिन किये हुए कर्म का दंड तो भोगना ही पड़ता है |
समुद्र के किनारे सब लोग एकत्र हुए ,खूब आनंद किया ,मदिरा पी और झगड़ा किया |यह था दुर्वासा ऋषि के श्राप का परिणाम |
श्रीकृष्ण का जन्मदिन मनाना है तो जरूरी है कि गीता में जो बातें उन्होंने व्यवहार में लाने के लिए कहा, उन्हें व्यवहार का अंग बनाया जाए |वैसी गलती न की जाए जैसी उनके कुलजनों-परिजनों ने की |
श्रीकृष्ण ऐसे मार्गदर्शक हैं,जिन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों को, अपनी क्षमता का उपयोग करके अनुकूल बनाया |
ऐसे तत्वदर्शी और करुणावत्सल महामानव का कष्ट देखिये - उनके आस-पास कोई भी ऐसा नहीं था जो उनके विज़न को समझता हो |वह जनता भी नहीं जिसको मथुरा से सुरक्षित लाकर ,उसके लिए उन्होंने द्वारका बसाया |उनके विज़न (गीता) को समझना ही श्रीकृष्ण को समझना है |