श्रद्धांजलि - सुषमा स्वराज - कान तरसेंगे उनके विचार सुनने के लिए


कल रात लगभग दस बजे श्रीमती सुषमा स्वराज चिर निद्रा में लीन हो गयीं |ऐसा कभी सोचा तो नहीं था कि शिष्या स्वयं गुरु से पहले ही विदाई ले लेगी |


ऐसी स्थिति में मुझे याद आता है कि निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी कहा करती थीं कि हम सब भगवान की खेती हैं -भगवान् अपनी खेती कच्ची काटे या पक्की ,कुछ नहीं कह सकते |इसके बावजूद  कुछ लोग ऐसे होते हैं,जिनके लिए किसी शायर की यह पंक्ति अनायास  याद आती है-


बड़े गौर से सुन रहा था ज़माना, तुम्हीं सो गए दास्ताँ कहते कहते |


कुछ ही समय पहले तो उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय न्यायलय में कुलभूषण जाधव की पैरवी कर रहे महान्यायवादी (सॉलिसिटर जनरल )से बात की थी और फिर जैसे ह्रदय ने उनका साथ देना बंद कर दिया और शेरनी की तरह दहाड़ने वाली उनकी वाणी चिर मौन में चली गयी |   


मुझे याद आता है 1977 का वर्ष ,जब इमरजेंसी के विरुद्ध जैसे जनमत संग्रह हुआ था और बांग्लादेश की स्थापना करने वाली महानायिका इंदिरा गाँधी की मजबूत सरकार धराशायी हो गयी थी |देश में जनता पार्टी की सरकार बनी |इस सरकार में उद्योग मंत्री थे समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीस |


जॉर्ज फर्नांडीस मुजफ्फरपुर से चुनाव जीते थे |


वे तो जीत के वक़्त भी तिहाड़ जेल में ही थे लेकिन मुजफ्फरपुर में जार्ज को चुनाव जिताने में सक्रिय थी सुषमा स्वराज और उनके पति स्वराज कौशल ,जो समाजवादी विचारक थे और जॉर्ज फर्नांडीस के मित्र थे |


जेल का फाटक टूटेगा और जॉर्ज हमारा छूटेगा के नारे ने जॉर्ज को मुजफ्फरपुर की जनता का नायक बना दिया था |यह था सुषमा स्वराज का कौशल |


1977 में ही हरियाणा में भी जनता पार्टी की सरकार बनी और सुषमा स्वराज सबसे कम आयु की कैबिनेट मंत्री बनी |उनका यह रिकॉर्ड इतिहास में दर्ज़ है |


मुझे वर्ष 1980  भी याद आता है -देश में मध्यावधि चुनाव हुए |जहाँ तक मुझे स्मरण है चुनाव 5 जनवरी को था |मैं तब ग्यारहवीं कक्षा में पढता था |राजनीति में मेरी गहरी रूचि थी लेकिन यह राजनीति सिद्धांतों की थी छल-प्रपंच की नहीं |


तब मैंने धर्मयुग पत्रिका खरीदी थी |उस चुनाव विशेषांक में पहली बार मैंने सुषमा जी के बारे में पढ़ा |वे एक तेजतर्रार नेता के रूप में प्रकट हुई थीं |


1990 के आस-पास की बात है,तब अटल जी का भाषण सुनने के लिए मैं पार्लियामेंट स्ट्रीट (नयी दिल्ली )गया था |दोपहर का समय था और गर्मी का मौसम था |उस दिन मैंने सुषमा जी के दर्शन भी किये और उन्हें सुना भी |उनके शब्दों में परिपक्वता की मजबूत पकड़ थी और जो श्रोताओं के मन पर सीधा प्रभाव छोड़ती थी |  


उनके विचार अनेक कार्यक्रमों में सुने और उनकी गहरी छाप महसूस की |उनकी भाषाई पकड़ उन्हें किसी भी राज्य के लोगों से अपनत्व की डोर में बांध देती थी |


बेल्लारी (कर्नाटक ) से उन्होंने श्रीमती सोनिया गाँधी के विरुद्ध चुनाव् लड़ा |ज्यादातर लोगों को लगता था कि वे चुनाव हार जाएंगी क्यूंकि वे हरियाणा में जन्मी हैं और दक्षिण भारतीय भाषा बोल पाना एक उत्तर भारतीय के लिए असंभव है |जनता से संवाद ही नहीं होगा तो जीतेंगी कैसे ?


लेकिन टी वी पर उन्हें फर्राटे से कन्नड़ बोलते देखा तो मैं आश्चर्यचकित रह गया |यह उनकी प्रतिभा का कमाल था |


1996  में श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार  को विश्वास मत देने के पक्ष में संसद में बोलते हुए उन्होंने भारतीयता की जो परिभाषा दी वह आज भी कानो में गूंजती है,उन्होंने कहा था -  भंगड़े से भरतनाट्यम तक सारे नृत्य भारतवर्ष के हैं,यह है भारतीयता की परिभाषा |भारतीयता का अर्थ यह है कि जम्मू के राजमा-चावल,पंजाब की मक्के की रोटी से लेकर दक्षिण के इडली दोसे तक सारे आहार भारत के हैं |भारतीयता का अर्थ यही है कि अमरनाथ से रामेश्वरम तक सारे तीर्थ भारतवर्ष के तीर्थ हैं |एक संस्कृति के अर्थ यही हैं कि शिव का भक्त अमरनाथ का जल लेकर रामेश्वरम के पैर पखारता है |


उनकी हाजिरजवाबी का तब मैं कायल हो गया जब उन्होंने लोकसभाध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी को ही भारतीयता के उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर दिया-उन्होंने कहा-बंगाल के श्री एन सी चटर्जी अपने बेटे का नाम सोमनाथ रखते हैं,यह है भारत की एक संस्कृति, यह है भारतीयता |


विदेशमंत्री के रूप में उनकी भूमिका को काफी सीमित कर दिया गया था लेकिन उन्होंने जनता के अनेकों आम लोगों को विदेशी सरकारों के चंगुल से आज़ाद करवाया ,वह उन्हें देश के शेष विदेशमंत्रियों से  अलग रूप में प्रकट करता है | उनकी स्मृति को प्रणाम |