लघुकथा-लेकिन माँ ने अंतिम फैसला दिया कि तुम्हें वहीं रहना है |

कल महात्मा विजय चौक पर कुछ प्रसंग सुना रहे थे,जो मुझे बहुत अच्छे लगे |उन्होंने कहा-एक विवाहित बेटी ने अपनी माँ को फोन किया कि माँ ,मैं घर आ रही हूँ|यहाँ अब और रहना संभव नहीं है |माँ ने कहा-नहीं तुम मत आओ ,वहीं रहो |बेटी ने अपनी समस्याएं बताईं लेकिन माँ नहीं पिघली |


बेटी हैरान थी कि-माँ इतनी कठोर क्यों हो गयीं ?


माँ बोली -तुम्हारी बड़ी बहन भी कुछ साल इसी प्रकार लड़-झगड़कर चली आयी थी  और अब तक यहीं है |वह हम पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है और ऐसी जिम्मेदारी एक बड़े बोझ से कम नहीं होती |जिस माता-पिता ने बहुत मेहनत से ,अपना पेट काटकर तुम्हें बड़ा किया ,विवाह किया और इज्जत से ससुराल भेजा ,क्या वह बोझ दोबारा बढ़ाना सही है ?


बेटी ने फिर तर्क दिए लेकिन माँ ने अंतिम फैसला दिया कि तुम्हें वहीं रहना है |


अब बेटी को खुद अपनी समस्या का उपाय करना था | 


जब सरलता से किसी समस्या का समाधान न हो तो इंसान को अपनी शक्ति को ढूंढने,पहचानने और यह आकलन करने का मौका मिलता है कि वह खुद अपनी समस्या को हल करने का कितना उपाय कर सकता है |


उसने आत्मविश्लेषण करके विवाद के बिंदुओं पर विचार किया |कुछ मुद्दों पर पति गलत थे लेकिन कुछ बिंदुओं पर वह स्वयं भी गलत थी |साथ ही उसे यह भी एहसास हुआ कि इन विवादों का समाधान बहुत कठिन नहीं है |


उसने अपनी तरफ से पहल की |घर को सुव्यवस्थित करने का काम किया और रात के भोजन को नए तरीके से तय किया |


पति शाम को घर में आये तो काफी कुछ बदला हुआ पाया |भोजन भी उसकी रूचि का  था तो पति का आधा क्रोध तो बिना किसी खास कोशिश के ही शांत हो गया |


पति ने सोचा कि यह खाना बहुत बढ़िया बनाती है और आज तो घर भी बहुत अच्छा लग रहा है,शेविंग का पूरा सामान सही जगह तरतीब से रखा है |उसका शेष  क्रोध भी शांत हो गया-सबसे बड़ी बात तो यह हुई कि दोष देखने वाली दृष्टि ,गुण ढूंढ़ने और  ग्रहण करने वाली दृष्टि हो गयी |


मुझे निदा फ़ाज़ली साहब का यह शेअर याद आ रहा है-


अपना ग़म लेके कहीं ओर न जाया जाए


घर में बिखरी हुई चीजों को संवारा जाए |


इस शेअर के महत्व को वही महसूस कर सकता है जो भीतरी व् बाहरी तौर से बिखराव को महसूस कर चुका हो |महात्मा कहते हैं कि -जो स्वयं अपनी सहायता करने को तत्पर है ,ईश्वर सिर्फ उसी की मदद करता है |घर में शांति रखने का अचूक हथियार तो यह है कि वाणी को कुछ मौन रखा जाए और आत्म विश्लेषण की आदत बना ली जाए तो जीवन संवर जाता है |


यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए ,उतना ही बेहतर है |