सबको साथ लेकर चलने की अनूठी क्षमता थी अटल जी में


1980  का लगभग मार्च या अप्रैल था | भारतीय जनता पार्टी की स्थापना मुंबई में हुई थी |अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के पहले अध्यक्ष थे |उस समय भाजपा की स्थिति अभी से ठीक उलटी थी |उस समय इंदिरा गाँधी जी की आंधी  चलती थी और भाजपा को कोई पूछने वाला नहीं था |


मुरादनगर में मेरी छात्रावस्था में उस दिन रक्षा में घोषणा हो रही थी कि भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व विदेश मंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी कुछ ही देर में जी टी रोड से गुजरेंगे |


मेरे दिल में अटल जी के प्रति श्रद्धा थी |उस श्रद्धा का आधार थी -अटल जी की कविता-आओ फिर से दिया जलाएं,इस कविता को आदरणीय वासुदेव राय जी ने अपने साप्ताहिक समाचार पत्र-एक नज़र में प्रकाशित किया था |


मैं और मेरा दोस्त अनिल भल्ला जल्दी -जल्दी बस स्टैंड पर पहुंचे |वहां सिर्फ 15 -20  कार्यकर्ता थे | जो आम लोग थे ,जिनका राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं था ,बस हम दोनों ही थे |


अम्बेस्डर कार में अटल जी आये |उनकी गाड़ी रुकी और भाजपा कार्यकर्ताओं ने नारा लगाया-देश का नेता कैसा हो,अटल बिहारी जैसा हो |उस दिन मैंने उन्हें पहली बार देखा |कई लोगों ने उन्हें अपने कागज़ पकड़ाए |हम उस दिन उन्हें माला भी पहना सकते थे क्यूंकि मालाएं ज्यादा थीं और पहनाने वाले कम  लेकिन भीतर से हम दोनों ही सरकारी नौकरी करना चाहते थे न कि किसी राजनीतिक दल का अनुयाई बनना |


दिल से मैं आध्यात्मिक था और निरंकारी बाबा गुरबचन सिंह जी को अपना मार्गदर्शक मानता था |


खैर वाजपेयी जी,आगे मोदीनगर चले गए |उस दिन हमें एक राष्ट्रीय नेता के बहुत करीब से दर्शन करने का गौरव प्राप्त हुआ |  


वाजपेयी जी जब प्रधानमंत्री बने तो परमाणु परीक्षण किया |समाजवादी नेता चंद्रशेखर जी ने लोकसभा में कहा कि इस प्रकार हथियारों की होड़ लगेगी |उन्होंने कहा- गुरुदेव,इस मामले में आप गलत हैं |


मैं कहना चाहता हूँ कि चंद्रशेखर जैसे कद्दावर नेता जो भाजपा के धुरविरोधी थे, और प्रधानमंत्री भी रहे, उन्हें अपना गुरु कहते थे |


उन्हें अपना गुरु मानने वालों में पूर्व प्रधानमंत्री श्री पी.वी.नरसिंहराव जी भी थे |विद्वान और भाषाविद राव ने उनकी पुस्तक -मेरी इक्यावन कवितायें -का लोकार्पण किया था ,दिल्ली के सप्रू हाउस में |अटल जी की एक   कविता को उद्धृत करते हुए राव जी ने कहा-अपनी आहट पर स्वयं दरवाजा खोलना ,आपने जो लिखा है,आँखें भिगो देता है |जीवन में किसी को गुरु बनाने का मौका नहीं मिला ,अब सोच रहा हूँ,आपको गुरु बना लूँ |


नरसिह राव जी कांग्रेस के बड़े नेता थे और उस समय प्रधानमंत्री थे |स्पष्ट है सबको साथ लेकर चलने की अटल जी में अद्भुत क्षमता थी |


अटल जी जब प्रधानमंत्री थे तब उनके राजनीतिक सलाहकार (जहाँ तक मुझे स्मरण है )ब्रजेश मिश्र थे ,उन्होंने किसी अखबार को बताया था किअटल जी अपने संकटमोचक स्वयं थे |कितने ही विपक्षी नेताओं से उनकी दोस्ती थी |कभी -कभी वे देर रात को श्री ज्योति बसु (कद्दावर साम्यवादी नेता और मुख्यमंत्री ) से सीधे फोन पर बात कर लेते थे |यह उनके बड़े दिल को दर्शाता है |


अटल जी को राजनीति की  गहरी समझ थी और सबसे बड़ी बात यह थी कि वे किसी वाद में सीमित नहीं थे |इस कारण उनका अपना कद  बहुत बड़ा हो गया था |मुसलमान सज्जनो में भी बहुत बड़ा वर्ग उनका समर्थक था |उन्होंने बस द्वारा भारत और पाकिस्तान को जोड़ने की ईमानदार कोशिश की |बेशक उनकी कोशिश पूर्ण सफलता नहीं मिली लेकिन यह एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम था |


अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और विदेश नीति में वे मुझे नेहरू जी के निकटवर्ती लगते हैं |


1996  में मैंने अपने मित्रों-साथियों के साथ अपनी संस्था अखिल भारतीय प्रगतिशील युवा मंच की ओर से एक स्मारिका प्रकाशित की थी  ,जिसमें पहला सन्देश उन्हीं का प्रकाशित किया था |यह इस बात का प्रमाण है कि मेरे दिल में उन के प्रति एक अनूठी श्रद्धा थी |


उनके भाषणों को भी प्रकाशित किया जा चुका है, उसे भी पढ़ने का मिला है |उनके स्वर में राष्ट्रीय भावना सुनाई पड़ती थी |पिछले कुछ वर्षों से प्रकृति ने उनके बोलने की क्षमता छीन ली थी |कल उनका शरीर  भी निष्प्राण हो गया |


अटल जी अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जिन मूल्यों के लिए वे जिये,उनके रूप में दिए गए योगदानो द्वारा वे सदैव हमारी स्मृतियों में जीवित रहेंगे | उनकी स्मृति को प्रणाम |