हम भारतीयों के शौक भी हमारी तरह अजीब होते हैं। कुछ लोग दूसरों की बीवियों को ही ताकते रहते हैं मगर उनमें उनका कुछ भी दोष नहीं होता क्योंकि अपनी बीवी से बचकर वे अपना यह शौक पूरा करते हैं अन्यथा देवी जी के कोप से बचने की कोई गुंजाइश नहीं है। इस प्रकार पूरे अहिंसक भाव से वे अपना यह शौक पूरा करते हैं।
कुछ लोगों को अखबार मांगकर पढ़ने का शौक होता है। पूरा अखबार न मिले आधा ही पकड़ लेंगे और चोरी-लूट-बलात्कार आदि की खबरें पूरे चाव से पढ़ते हैं। जब खबर पढ़ चुके होतें हैं तो उस पृष्ठ को ढूंढते हैं जहां फिल्म अभिनेत्रियों की तस्वीरें छपी होती हैं। ऐसे लोगों में प्रायः यह विशेषता पायी जाती है कि संपादकीय पृष्ठ का वे उसी प्रकार स्पर्श नहीं करते जैसे समझदार लोग साँप के मुँह को स्पर्श करने का। ऐसे लोग सिर्फ अखबार ही नहीं बल्कि पुस्तक और पत्रिकाएँ भी मांगने में शर्म नहीं करते। ऐसे लोग कई बार बिना मांगे ही पत्रिका उठाकर चल देते हैं और मालिक ठंडी आहें भरकर रह जाता है कि-तुम जिसके दोस्त हो, दुश्मन जमाना क्यूँ ना हो।
कुछ लोग बिना टिकिट लिए यात्रा करने के शौकीन होते हैं। इनमें विद्यार्थियां की संख्या ज्यादा होती है। पराक्रम दिखाने के लिए कोई और ना मिले तो बस कंडक्टर ही सही। लेकिन कभी-कभी टिकट चेकर अवतरित हो जाते हैं और विद्यार्थियों को नौ दो ग्यारह होना पड़ता है। पहले मैं सोचता था - कि इस शौक पर सिर्फ विद्यार्थियों का ही कब्जा है लेकिन एक दिन सुबह के वक्त मैं भी ऐसी बस में यात्रा कर रहा था तो मेरे दिमाग के कपाट वैसे ही खुल गये जैसे आँधी-तूफान में मकानों में लगे पुराने कपाट। उस दिन टिकट ना लेने का पराक्रम करने वालों में सारी की सारी बेटियाँ ही थीं। यह देखकर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई कि इस क्षेत्र में भी बेटियाँ प्रवेश कर चुकी हैं लेकिन मुझे टिकट चेकर्स पर बहुत गुस्सा भी आया कि पूरी सरकार बेटी बचाओ का नारा लगाने में जुटी है और ये निर्दयी उनका चालान काट रहे हैं बचाने की बजाय। वैसे विद्यार्थी ऐसी खतरनाक बसों में कम बैठते हैं। वे ज़्यादातर प्राईवेट बसों की सेवाएँ लेते हैं क्योंकि वहाँ पराक्रम दिखाने की गुंजाइश ज़्यादा होती है।
कुछ लोगों की आदत होती है कुछ ना कुछ करते रहने की। ऐसे महापुरुष जब फ्री होते हैं निंदा करते हैं। निंदा से फ्री होते हैं तो चुगली में लग जाते हैं। मेरे परिचित एक डॉक्टर साहब थे। उनकी दुकान पर एक ऐसे ही महापुरुष आए। डॉक्टर साहब की मेज से उन्होंने पूर्णतः अहिंसक भाव से एक कागज उठाया और उसे मोड़ने में पूरी लगन से जुट गये। बहुत ही स्किल्ड आदमी थे, मोदी जी के पक्के चेले। अभी वे पर उस कागज को फाड़कर फेंकने ही वाले थे कि डॉक्टर साहब मरीज को देखकर अंदर से आ गये। डॉक्टर साहब ने स्किल्ड पर्सन को देखे बिना अपनी मेज पर पड़ी जीवन बीमे की रसीद खोजनी शुरू कर दी। उन्हांने देखा कि स्किल्ड पर्सन उसका हवाई जहाज बना चुके हैं और उसका मलबा बनाने ही वाले हैं कि उन्हांने स्किल्ड पर्सन के हाथ में से कागज लगभग छीन ही लिया और उसे थप्पड़ मारने का ख्याल छोड़ दिया।
मैं डी.टी.सी. की बस में अगले गेट के पास खड़ा था। असल में उन थोड़ी देर पहले मैं सीट पर बैठकर दोपहर की नींद का आनंद ले रहा था। अचानक मानव मूत्र की भीनी-भीनी गंध नाक में घुसी तो मैं समझ गया कि स्टैंड आने वाला है और मैं गेट के पास पहुँच गया लेकिन एक महिला अगले गेट से बस में चढ़ी। उसे देखते ही एक शौकीन आदमी ने सीट का मोह त्याग दिया और वे उस सीट पर पूरे रुतबे के साथ विराजमान हो गईं। एक बुजुर्ग महिला उसे यूं घूर रही थी जैसे उसने उनकी सीट हथिया ली हो। उसने दस का नोट निकाला और टिकट लाने का ऑर्डर मुझे दिया। मैंने दस रुपए आगे भेज दिये। उतनी देर में मेरा गंतव्य स्थल आ गया।
मैं अपने मन में सोच रहा था कि गाड़ी का पिछला गेट खूब खाली था और वो आराम से वहाँ से चढ़कर अपना टिकट खुद लेकर आ सकती थी। लगता है उन्हें भी अगले गेट से चढ़ने का शौक था अन्यथा मुझे और उस आदमी को उनकी सेवा का अवसर कैसे मिलता जिसने उनके लिए सीट का मोह त्याग दिया जबकि वह बुजुर्ग महिला पहले ही सीट की इंतजार में थी। जिस आदमी को मैंने दस का नोट पकड़ाया था वह उन तक उनका टिकट भी ईमानदारी से पकड़ा दे तो अच्छा नहीं तो अगले गेट से चढ़ने का शौक उन्हें महंगा पड़ेगा।