संभलकर चलें ! आगे विकास हो रहा है


दुकान के उपर बोर्ड लगा है- हनीप्रीत मोटर्स । हनी और प्रीत, एक अंगे्रजी और एक हिन्दी। कहां गये अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन के वे सेनानी जो अंग्रेजों के साथ अंग्रेजी को भी विदा कर ने के मूड में थे। अब तो हाल यह है कि हिन्दी ही देश से विदा की जा रही है, अंगे्रज़ी तो सबके सिरों पर ता-ता-थैया कर रही है। यदि हिन्दी वालों ने हिन्दी को
सिर-आँखों पर बिठाया होता तो हनीप्रीत मधुप्रीत होती और हिन्दी को इस तरह शर्मिन्दा न होना पड़ता।


खैर बोर्ड पर क्या लिखा है, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता फर्क तो इससे पड़ता है कि जहां बोर्ड पर मोटर्स लिखा हो अगर वहां चाय की दुकान चल रही हो। आप कहेंगे कि मोटर्स की दुकान पर चाय बिक रही हो, अभी देश मेंइतनी अंधेरगर्दी नहीं हुई है। यह गंुडागर्दी का युग है अंधेरगर्दी का नहीं।


खैर हनीप्रती मोटर्स ने आधी सड़क पर कब्जा कर रखा था। दुकान के अगल-बगल तो गाड़ियाँ खड़ी कर ही रखी है, सड़क के दूसरे किनारे पर भी कम से कम बीस गाड़ियाँ खड़ी कर रखी हैं। गाड़ियाँ करीब छः महीनों से वहीं मौजूद हैं। इनकी वजह से जाम की स्थायी समस्या पैदा हो गयी है। लोग घर से सुबह कलते है और ठिकाने पर पहुँचते-पहंँुचते दोपहर हो जाती है। हनीप्रीत मोटर्स का कब्जा भी स्थायी है और जाम भी। रही ट्रैफिक पुलिस की बात तो ट्रैफिक पुलिस अस्थायी है। उसके जवानों का ट्रांसफर होता रहता है। ट्रांसफर के बाद नये जवान आ जाते हैं फिर हनी की नये वालों से प्रीत हो जाती है और कब्जा स्थायी बना रहता है। कोई सरकार आये या कोई सरकार जाये इस तरह देश का विकास होता रहता है।


जो कभी डेरा था, वह महल हो जाता है। महल होगा तो बेगमें भी होंगी और हरम भी होगा। हनी भी होगा, प्रीत भी होगी। बोर्ड पर बेशक सच्चा सौदा लिखा होगा लेकिन हो
सकता है, बोर्ड के नीचे धर्म की दुकान स्थित हो। इसमें कोई शर्मिन्दगी की बात नहीं है क्यों कि जब लिखा ही सौदा है फिर दुकान तो होगी ही। वह चाहे, चाय की हो, मोटरों की हो या धर्म की हो।


वास्तविकता तो यह है कि यह बोर्डों का जमाना है। बोर्ड पर बिल्कुल ठीक लिखा होता है लेकिन काम उसी तरह चलता है जैसे बोर्ड लगने से पहले चला करता था। जहाँ लिखा होता है कि यहाँ किसी कर्मचारी को रिश्वत न दें। यदि आप इस बात को दिल से मान लेंगे तो फिर बुढ़ापे तक भी आपका काम हो नहीं पायेगा।


जहाँ लिखा होता है- यहां हिन्दी में लिखे चेक भी स्वीकार किये जाते हैं वहां हिन्दी में चेक लिखना मूर्खता से कम नहीं है। क्योंकि पचास आदमियों के बाद तो किसी तरह नम्बर आया। और चेक आपने हिन्दी में लिखकर खिड़की के अन्दर किया तो फिर आगे जो दुर्घटना हो सकती है, उसका पूरा जोखिम आपका है। हालांकि यह हिन्दुस्तान है और हिन्दी पूरी तरह हिन्दुस्तानी भाषा है लेकिन हिन्दी में काम करने की रवायत नही ंहै क्योंकि उसमें इज्जत नहीं है इसलिए हिन्दी में काम करने की आदत नहीं है इसलिए बोर्ड लगाना होने के बावजूद हिन्दी में चेक लिखने अथवा फार्म भरने में जोखिम है और जिस प्रकार वाहनों में सफर करने पर सामान की जिम्मेदारी सवारी की होती है इसी प्रकार हिन्दी में फार्म आदि भरने पर जो जोखिम होगा उसकी जिम्मेदारी आपकी खुद की होगी। वाहनों में तो स्पष्ट लिखा है कि जिम्मेदारी हमारी नहीं है लेकिन बैंक में ऐसा लिखा नहीं है क्योंकि समझदारों को सब कुछ बताना नहीं पड़ता और बैंक आपको समझदार समझते हैं| 


अभी हिंदी दिवस पर पंजाब के मुक्तसर में एक महिला ने बैंक में हिंदी में प्रार्थना लिख दिया। उसका प्रार्थना पत्र बाबू ने फाड़कर फेंक दिया इसलिए जोखिम की बात निरी कल्पना नहीं है।


देश में लगातार विकास हो रहा हे। हिन्दी भाषी लोग अपने वैवाहिक कार्ड अंग्रेजी में छपवाते हैं ताकि जान-पहचान वालों को पता चल जाये कि अंग्रेजी जानते हैं, अनपढ़ या बोड़म मत समझना, पढ़े-लिखे हैं। विकासशील नहीं, विकसित हैं।


गली क्या, सड़क क्या हर जगह विकास पसरा पड़ा है। बीस फुट चैडी सड़क पर अठारह फुट जगह में पार्किंग फैली हुई है। उसके बीच से सुरक्षित निकलना किसी चमत्कार से कम नहीं।


फलैट एक है, गाड़ियाँ तीन हैं। घर में रहने वाले भी तीन है। उनके विकास का व्यापक प्रभाव है। उनके विकास ने सड़क को अवरुद्ध कर रखा है। उनके विकास से सड़क अवरुद्ध हो गयी तो उनका क्या कसूर है। उन्हें गाड़ी खने की पूरी आजादी है। इस प्रकार के आजाद लोग हर कालोनी और हर मार्केट में मौजूद हैं इसलिए हर कहीं जाम लगा है।


जाम तो जनता जनार्दन ने खुद पैदा किया है इसमें टैªफिक पुलिस भी क्या करे लिहाजा वह हनीप्रीत मोटर्स से भी वसूलती है और बिना हेल्मेट पहने ट्रिपलिंग करने चलने वालों से भी। इस प्रकार ट्रैफिक पुलिस के जवानों का भी विकास होता है। उनके साथ उनके अफसरों का भी विकास होता और डिपार्टमेंट का भी।


बोर्ड पर लिखा है स्वच्छता ही सेवा है। उससे जेबकतरों ने प्रेरणा ली और जेबें साफ करके जनता की दिल से सेवा की। चोरों ने पूरा का पूरा घर साफ कर दिया। गन्दगी अब भी वैसी की वैसी है, जैसे दो सप्ताह पहले थी। बोर्ड तीन-चार लग गये हैं, इस प्रकार स्वच्छता मिशन चल रहा है, सरकार का भी, जेबकतरों का भी। बहरहाल जमाना साइन बोर्डाें का है।


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