उन्होंने पूछा - हिन्दू हो या मुसलमान ?

- रामकुमार सेवक 

बुल्ले शाह जी प्रभु के आशिक ,मस्त फ़कीर थे |उनका निरंकार से सीधा रिश्ता था |उनके पीर-ओ-मुरशद का नाम था-शाह इनायत |

        मुझे एक कहावत,जो बुल्ले शाह जी कहा करते थे ,कहते थे,याद आ रही है जिसे मैंने बाबा हरदेव सिंह जी के श्रीमुख से सुना था-

        शाह इनायत मुरशद मेरा जिसने कीता मैं वल फेरा, हुन मैनू भरमावे कौण 

बुल्ले शाह जी मस्त फ़कीर थे |        

       कहते हैं कि उन दिनों रोजे चल रहे थे लेकिन बुल्लेशाह जी के शिष्य गाजरें खा रहे थे |वास्तव में बुल्लेशाह जी महसूस कर रहे थे कि खुदा ने जो चीजें खाने के लिए बनायीं हैं उनका आप स्थायी रूप से परित्याग नहीं कर सकते इसलिए गाजरों का उपयोग वे खाने के लिए कर रहे थे |

      यद्यपि बुल्लेशाह जी स्वयं गाजरें खाने में शामिल नहीं थे लेकिन अपने चेलों को उन्होंने खाने -पीने के लिए पूर्णतः स्वतंत्र छोड़ा हुआ था लेकिन रमजान के महीने को इस्लाम में पवित्र माना जाता है इसलिए आम मुसलमान रोजे की पाबंदी का पूर्णतः सम्मान करते हैं इसलिए उन्होंने बुल्लेशाह जी के शिष्यों के गाजरें खाने का विरोध किया |उन्होंने उन्हें पीट दिया |

      बुल्लेशाह जी मस्त फ़कीर थे इसलिए उनका सीधा सम्बन्ध अल्लाह से था | 

शिष्यों ने इनायत शाह जी से शिकायत की-हम तो आपकी शिक्षाओं के अनुसार चल रहे थे लेकिन उन लोगों ने फिर भी हमें पीट दिया |बुल्लेशाह जी ने उनसे कहा-क्या उन्होंने तुमसे कुछ पूछा था ?

        शिष्यों ने कहा-उन्होंने हमसे यही पूछा कि -तुम हिन्दू हो या मुसलमान ?

उन्होंने कहा -आपने फिर क्या जवाब दिया ?

        मैंने कहा -मुसलमान 

यह सुनते ही उन्होंने कहा-मुसलमान होकर भी रमजान का जरा भी ध्यान नहीं |

यह कहा और हमें पीट दिया |

           बुल्ले शाह बोले-यह सवाल तो मुझसे भी पपूछा था |

शिष्यों ने कहा- आपसे उन्होंने कोई बद तमीजी तो  तो नहीं की ?

           बद तमीजी तो तब करते अगर हम कुछ बनते ,

           सोचिये आपसे उन्होंने क्या पूछा था -हिन्दू हो या मुसलमान ?

मुझसे भी उन्होंने यही पूछा था लेकिन तुमने कहा -मुसलमान |इस प्रकार कुछ बन गए |

मैंने सिर्फ हाथ ऊपर उठा दिए ,कुछ कहने की बजाय |

           कहने का भाव यही था कि मैं कुछ नहीं हूँ|अब नुसल्मान भी बनोगे और रमजान के महीने में गाजरें भी खाओगे तो एक साथ तो  दोनों हो नहीं सकते |

           हम कुछ बने ही नहीं तो पिटाई से भी बच गए ,अब सुनो उन्होंने मेरे बारे में क्या कहा ?

           शिष्य बोले क्या कहा ?

           बुल्ले शाह बोले -वे बोले -हमने सीधा सा सवाल पूछा कि हिन्दू हो या मुसलमान और यह हाथ ऊपर उठा रहा है,कुछ भी बोलने की बजाय ,हो न हो,यह पागल है |अब तुम खुद ही सोच लो कि मैंने कुछ न कहकर ठीक किया या तुमने मुसलमान बनकर ?

गुरु का इशारा शिष्यों ने समझा और वे भी हँसते हुए कोठरी से बाहर चले गए |