भक्ति के पुराने सफर की कुछ यादें


 रामकुमार सेवक 

कल 77 वे ,सन्त समागम का पहला दिन था |

पहले दिन बाल कवियों की कविताओं की खूब जयजयकार हुई |

उन्होंने मेहनत भी की थी ,अपने अभिभावकों को  बिलकुल भी निराश नहीं किया लेकिन कविता अभिभावकों की धुन पर कभी नहीं नाचती ,यह वाहवाही लूटने के लिए भी नहीं लिखी जाती बल्कि भक्ति से प्राप्त सच्ची निष्ठा और मेहनत के पसीने से प्राप्त होती है |

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी की एक कविता मुझे याद आ रही है-

वह तोड़ती पत्थर 

देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर—

वह तोड़ती पत्थर। 

कोई न छायादार 

पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार; 

श्याम तन, भर बँधा यौवन, 

नत नयन प्रिय, कर्म-रत मन, 

गुरु हथौड़ा हाथ, 

इस प्रकार कविता की कठोरता का अनुमान आप लगा सकते हैं |

यह मातृशक्ति  के उदय का दौर है ,सतगुरु माता सुदीक्षा जी की गोद में ममता की छाँव भक्ति की वास्तविकता का दर्शन अपने अनूठे ढंग से प्रकट कर रही हैं | 

कल रात्रि भोजन की सुविधा निरंकारी कैंटीन में लेने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |भोजन करते समय मुझे सन्त निरंकारी सेवादल में सेवाओं के वो पुराने दिन याद आ गए  जब मैं सातवीं कक्षा में पढता था |

उत्तर प्रदेश की मोदीनगर ब्रांच के अंतर्गत यूनिट न.136,के सदस्य के तौर पर कई वर्ष सेवा करने का सौभाग्य मिला है |

अपने बच्चों को मैंने उन दिनों की याद बताई जब हम मेज पर से झूठी प्लेट्स बहुत गौरव से उठाया करते थे |

वह सेवा और सेवादार का गौरव था जो मुझे रामलीला मैदान दिल्ली में होने वाले समागमों के दौरान मिला |

कालांतर में तो मुझे सन्त निरंकारी प्रकाशन विभाग में बड़े-बड़े साहित्यकार बुजुर्गों के मार्गदर्शन में सेवाएं निभाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |उसमें अलग ही प्रकार के अनुभव हुए और युगदृष्टा सत्गुरु बाबा   हरदेव सिंह जी महाराज की रहमतें प्राप्त करने का दिव्य अनुभव हुआ |

मिशन में मुझे 51 से अधिक वर्ष रहने का अवसर मिला है |मालिक की कृपा है कि निरंकार -सत्गुरु का प्रेम प्राप्त हो रहा है |यह कृपा निरंतर बनी रहे ,यही प्रार्थना है |  

अभी लगभग पंद्रह दिन पहले ही तो मैंने असीम विस्तार पर अपनी यह कविता कवि सभा को भेजी थी  |

कविता -वार्षिक समागम २०२४

रामकुमार सेवक 

सिर्फ गुरु का ही होता है -वर्तमान 

इसीलिए -यह होता हैं -सदा ,सबसे महान 

करता है सबका उपकार 

आओ करें -गुरु कृपा का विस्तार -

अपने व्यवहार से ,दिखलायें जीवन का सार 

और आगे बढ़ जाएँ -किसी की जीत और किसी की हार से,

आगे बढ़ जाएँ 

समय के साथ मिट जाने वाले 

मतलबी व्यवहार से ,

मायावी संसार से 

संसार का अर्थ -न सिर्फ अमेरिका होता है ,

न रूस ,न कनाडा 

बल्कि इन सबसे ज्यादा 

संसार का अर्थ -होता है -दिल 

दिल जिसकी न केवल धड़कनें ,धड़क रही हों 

बल्कि जिसकी भावनाएं 

लगातार मचल रही हों क्यूंकि 

ज़िन्दगी 

रुके रहने का नाम नहीं 

बल्कि लगातार चलते रहने का नाम है 

चलते रहना उसी मार्ग पर 

जिस पर आगे बढे-बूटा और अवतार 

अपनी दृष्टि में भर लिया -जिन्होंने प्यार का संसार, 

प्रेमा भक्ति का व्यवहार 

हरदेव -गुरबचन और माता सविंदर ने जिस विज़न को दिल में बसाया 

सत्गुरु सुदीक्षा ने भी उसी को आगे बढ़ाया 

बसाना है हम सबको -

अपनी दृष्टि में निरंकार असीम 

ताकि बदल जाए इस दुनिया का सीन 

यह दुनिया -छोड़े रोना -धोना 

भा जाए इसको -सिर्फ सत्गुरु का होना 

मिल जाए क़ामिल मुरशद के दिल में 

एक छोटा सा कोना 

जिसमें जगह हो,न सिर्फ यूरोप की,न सिर्फ एशिया की और न सिर्फ अरब की 

बल्कि हमारी दृष्टि में ,जगह हो हर बालक,हर वृद्ध ,हर माता,बहन 

संसारी की,निरंकारी की -यानी हम सबकी |

यानी हम सबकी ,और हमसे भी पहले एक-रब की 

एक रब की ,जो हम सबके अंदर और बाहर है,

जिसने उठा रखा हम सबका भार है 

यही है हम सबका रब 

सत्गुरु जीती जागती जोत है,

ना जब की ,ना तब की 

बल्कि यह तो चेतन सत्ता है-

आज की और अब की  

इसी की करें जय-जय कार

और मन से करें -विस्तार   

धन्यवाद सतगुरु,निरंकार 

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कुछ स्वतंत्र शेअर-

प्यार ही इस ज़िन्दगी का सार हो जाए 

सामने हरदम अगर निरंकार हो जाए 


हकीकत याद हो हरदम कि हर सू इसका है डेरा 

इसकी याद ही मेरा अटल श्रृंगार हो जाए  

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पलक के ,उठने -गिरने से भी पहले ,याद हो मालिक 

ताकि हर कदम ही प्रेम का विस्तार हो जाए 

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करे कोई वैर ही किस से ,रमा जब रोम-रोम में 

अपनत्व का दिल से अगर इजहार हो जाए  |

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तुम्हारे प्रेम में पागल ,हुआ इक बार जो दरिया 

भला कैसे किसी नाले का वो विस्तार हो जाए  




 ज़िन्दगी में प्यार हो,सत्कार हर इक का

सभी को देखकर बस प्रेम का इज हार हो जाए  

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कैसे कैसे महापुरुषों का सान्निध्य मुझे प्राप्त हुआ है,आज उनकी यादों को प्रणाम ही किया जा सकता है क्यूँकि जो बिछुड़ गए उनको तो श्रद्धा के फूल ही समर्पित किये जा सकते हैं,और क्या करें |समय का यह अलग दौर है |मेरे साहित्यिक गुरु आदरणीय निर्मल जोशी जी,काव्य गुरु मान सिंह जी मान ,बेदिल सरहदी साहब,जे.आर.डी.सत्यार्थी जी आदि की स्मृतियों को श्रद्धेय नमन | धन निरंकार जी-