-रामकुमार देवक
बाबा हरदेव सिंह जी की दृष्टि बहुत दूर तक जाती थी |प्रत्यक्ष में तो वे सतगुरु मंच पर विराजमान होते थे लेकिन गुरु की दृष्टि में जो शक्ति होती है वह जीवन संवार देती है |
बाबा जी पूरब ,पश्चिम,उत्तर ,दक्षिण और ऊपर -नीचे दसों दिशाओं से हमें सुरक्षित रखते थे |
एक दिन जब ग्राउंड में नमस्कार की पंक्तियाँ चल रही थी तो अपने सेवादार वरिंदर पाहवा ,जिन्हें सब बंटी साहब कहते हैं को बाबा जी का सन्देश मिला कि नमस्कार की पंक्तियों के बीच में कहीं ओपन तार पडी हुई है ,उसे तुरंत ठीक करना चाहिए |
तुरंत सब सावधान हो गए और तुरंत तार को ढक दिया गया |तार को बदल दिया गया और खतरे को टाल दिया गया |
ऐसी बहुत सी कठिनाइयां होती थीं जिनसे बाबा जी हमें बचाते थे |उनकी दूरदर्शिता को हम विनम्र भाव से याद करते हैं और खुद को सौभाग्यशाली समझते हैं कि ऐसे दिव्य सतगुरु की छत्रछाया हमें प्राप्त हुई |
महात्मा गीतकार -महात्मा अजय बेजोड़ जी (तरावड़ी ,हरियाणा )आज निरंकारी कॉलोनी ,दिल्ली में आयोजित रविवारीय सत्संग में प्रवचन करते हुए बाबा हरदेव सिंह जी को याद कर रहे थे ,जब उन्हें बाबा जी के साथ दूरदेशों की यात्रा करने का अवसर मिला था |
अजय जी ने बताया कि माता सविंदर जी ने मुझे बाबा जी के कुर्ते - पायजामे पर इस्त्री करने की सेवा दी |यह तो किसी भी गुरसिख के लिए परम सौभाग्य होता है कि सत्गुरु अपनी सेवा के लिए चुन ले |सौभाग्य
होता है कि गुरु की सेवा मिल जाए |लेकिन मुझसे यह सेवा निभ नहीं पाई |
एक कुरता और पायजामा जल गया ,मुझे बहुत ही पछतावा हो रहा था इसलिए मैं बहुत उदास था लेकिन माता सविंदर जी हर गुरसिख को संभालती थीं |
माता जी ने मुझे बुलाकर कहा कि ऐसा तो कितनी ही बार होता रहता है इसलिए अन्य सेवाओं की तरफ ध्यान दो ,बेफिक्र रहो |
माता सविंदर जी ने मुझे उस विषम स्थिति से उबारा और बाद में जब मैं बाबा जी के कमरे में गया तो बाबा जी ने मुझे ऐसा प्यार दिया कि प्रेम का भाव ही प्रबल रहा |वहां देखा कि बाबा जी सबके साथ यूँ मुस्कुरा रहे थे कि पश्चाताप के स्थान पर विशाल सत्गुरु का प्रेम और भक्ति का आनंद ही सर्वत्र बरस रहा था |