निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी की दिव्य दृष्टि - रामकुमार सेवक

          गुरु की दृष्टि की ताब झेलने की हिम्मत हर किसी में नहीं होती क्यूँकि उसमें सत्य अपनी पूरी क्षमता के साथ उपलब्ध रहता है |सत्य की शक्ति को आप जानते ही हैं कि सत्य के आस -पास चाहे जितने झूठों की फ़ौज इकट्ठी क्यों न हो जाए लेकिन वह फ़ौज सत्य की शक्ति को ज़रा भी कम नहीं कर सकती |

     निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी की दृष्टि को मैंने बहुत करीब से देखा है |उसे पहली बार देखने पर ही लगता था कि उनसे छिपाकर कोई काम किया जाना सम्भव नहीं है और लाखों की भीड़ में भी वे अपने भक्त को खोज लेते थे |मेरे जैसे लोग सोच लेते थे कि मेरे इस काम को बाबा जी की दृष्टि पकड़ नहीं सकेगी लेकिन  उनकी दृष्टि लाखों की भीड़ से अप्रभावित रहकर , सब कुछ देख लेती थी |

       मेरे जैसा इंसान ,जिसमें बहुत कुछ श्रेष्ठ नहीं है ,सोचता था कि बाबा जी शायद उसे देख नहीं पाएंगे ,जो मैंने छिपाया हुआ है लेकिन गुरु से कुछ भी छिपाया नहीं जा सकता |

        गुरु की दृष्टि दीवार के आर-पार देख लेती है यह तब भी सिद्ध हुआ जब बाबा जी के एक भक्त ने बताया कि बाबा जी के साथ हम लोग एक बार धुलिया क्षेत्र (महाराष्ट्र )में सत्संग कर रहे थे |

       रात्रि के पौने दस बज चुके थे |बाबा हरदेव सिंह जी काफी व्यस्त होते थे लेकिन आज उन्होंने संकेत किया कि कार्यक्रम को और आगे चलाया जाए |

        यह धुलिया शहर की बात है |सब गीतकार बोल चुके थे |स्थानीय प्रबंधक महात्मा धन्यवाद भी ज्ञापित कर चुके थे |सत्संग साढ़े नौ बजे तक का था लेकिन  बाबा जी प्रवचन शुरू करने का संकेत नहीं दे रहे थे |

          यह बाबा हरदेव सिंह जी के कार्यकाल के शुरूआती दिनों की बात है |उन दिनों बाबा जी की अध्यक्षता में होने वाले सभी कार्यक्रमों का संचालन महात्मा जे आर.डी. सत्यार्थी जी ही किया करते थे |

        सत्यार्थी जी की ज्वलंत समस्या यह  थी किअब किसे बोलने की बारी दी जाए चूंकि संगत भी उन दिनों इतनी ज्यादा नहीं थी लेकिन बाबा जी का आदेश था कि कार्यक्रम को जारी रखा जाए ,यद्यपि कार्यक्रम का निर्धारित समय तो पूर्ण हो चुका था लेकिन गुरु की अपनी लीला होती है |

            किसी में इतना साहस न था कि बाबा जी से पूछ सके कि कार्यक्रम कब तक संपन्न होगा |

        चूंकि आदेश यही था कि कार्यक्रम को जारी रखा जाए इसलिए हम सब गीत गाने में लगे थे तभी देखा कि पचास के आस-पास ग्रामीण से दिख रहे सन्त-महात्मा सत्संग पंडाल में घुसे |

             वे सब कुछ अस्त-व्यस्त से थे |आये हुए ये सज्जन लाइनों में लगे और बाबा जी के चरणों में मस्तक नवाया |

            जैसे ही इन सबको नमस्कार हुई बाबा जी का संकेत आ गया और माइक बाबा जी के सम्मुख पहुँचा दिया गया |

            बाबा जी उन दिनों जनसाधारण तक मिशन की सच्चाई पहुंचाकर उनके दिलो दिमाग को स्वच्छ बनाने में लगे थे इसलिए उनके प्रवचनों में समय लगता था लेकिन उस दिन बाबा जी ने सिर्फ दस मिनटों के बाद प्रवचनों को संपन्न कर दिया |

           धुलिया के पास के किसी गांव से आ रहे इन सज्जनो में से एक -दो को मैं जानता था क्यूंकि ऋषि व्यासदेव जी के साथ उनमें से कुछ के घर में जाने का मौका मिला था |

            मैंने उनसे पूछा- सत्संग तो साढ़े नौ बजे तक का था ,आप लोग पौने दस बजे यहाँ पहुँच रहे हैं,गुरु को इंतजार करवाना यह भक्ति का कौन सा प्रकार है ?

            वो बोले हम दूर गॉँव में रहते हैं |खबर तो समय अनुसार सब


मिल गयी थी लेकिन साधनो की भारी कमी के कारण हम लोगों ने मिलकर एक मेटाडोर का प्रबंध किया ,यहाँ तक पहुँचने की बहुत कोशिश की लेकिन मेटाडोर भी पेड़ से टकरा गयी |लेकिन हम लोगों की गुरु से यही अरदास थी कि किसी प्रकार हमें गुरु के चरणों में नमस्कार करने को मिल जाए |

             बाबा जी के दर्शन हो गए नमस्कार हो गयी ,अब कुछ समस्या नहीं |वास्तव में दिव्य सत्गुरु की कृपा दृष्टि किसी बेमत से कम नहीं |