- रामकुमार सेवक
बाबा हरदेव सिंह जी की अध्यक्षता में हो रहे वार्षिक समागम के कवि दरबार में उन्होने कहा था -
कुलदीप बेशक लाभ सिंह प्रधान दे घर जन्मेया
पर तेरे दरबान दे दरबान दा दरबान है
कुलदीप सिंह जी ,आदरणीय महात्मा जे.आर.डी.सत्यार्थी जी के शिष्य थे |
बोलने की कला उन्होंने उन्हीं से सीखी |
वार्षिक समागम का आँखों देखा हाल मैं आदरणीय निर्मल जोशी जी के मार्गदर्शन में लिखता था |निर्मल जोशी जी खुदा के मुंशी कहे जाते थे और उनकी ताब हर कोई सह नहीं सकता था |
निरंकारी राजमाता
कुलवंत
कौर
जी
के
भी
कुलदीप
जी
बहुत
करीब
थे
|राजमाता
जी
ने
सदा
उन्हें
पुत्रवत
स्नेह
दिया
|वे
ओजस्वी
वक्ता
थे
और
लोगों
की
क्षमता
को
भली
भाँति
पहचानते
थे
|
उस वर्ष निरंकारी
प्रदर्शनी
को
चार
भागों
में
बाँटकर
मिशन
के
वैश्विक
प्रभाव
को
बेहतर
ढंग
से दिखाया गया
था
|आर्ट
ग्रुप
में
जो
आजकल
बड़ी
भूमिका
निभा
रहे
हैं,दीपक
बग्गा
जी
भी
निरंकारी
प्रदर्शनी
की
उस
टीम
में
शामिल
थे
|
पूज्य निर्मल
जोशी
जी
कुलदीप
जी
की
प्रतिभा
को
बेहतर
ढंग
से
पहचानते
थे
तो
हम
लोगों
की
प्रतिभा
को
उन्होंने
प्रयोग
करके
निरंकारी
प्रदर्शनी
को
बड़ा
कैनवास
दिया
और
कुलदीप
जी
ने
हम
लोगों
की
दक्षता
का बेहतर इस्तेमाल
किया
|
कुलदीप जी
की
गति
बहुत
तेज
थी
और
अपना
लक्ष्य
प्राप्त
करने
के
लिए
किसी
भी
साधन
का
इस्तेमाल
वे
बेहिचक
करते
थे
और
अपने
सहयोगियों
के
कार्य
में
कोई
दिक्कत
नहीं
आने
देते
थे
|
मेरे साथ
उनका
सम्बन्ध
उतार
-चढ़ाव
भरा
रहा
|
एक बार की
बात
है
दफ्तर
जाने
से
पहले
उन्होंने
मुझसे
ग्राउंड
में
पहुँचने
के
लिए
कहा
लेकिन
मेरी
नियुक्ति
उन
दिनों
निर्माण
भवन
थी
और
चार
बसें
बदलकर
मुझे
वहां
पहुँचना
पड़ता
था
|
मुझे ग्राउंड
तक
पहुँचने
में
रात्रि
के
आठ
बज
गए
|मुझे
देखकर
वे
खुश
हुए
और
अल्पाहार
की
व्यवस्था
की
|
कुछ ही समय
बाद
प्रदर्शनी
में
निरंकारी
राजमाता
जी
का
पदार्पण
हुआ
|कुलदीप
जी
माता
जी
से
बहुत
खुले
हुए
थे
और
उन्होंने
राजमाता
जी
से
मेरी
शिकायत
करते
हुए
कहा
-माता
जी,ये
सेवक
जी
हैं
जिन्हें
मैंने
सुबह
आठ
बजे
बुलाया
था
और
ये
अब
आये
हैं
|
कुलदीप जी
के
महा
-प्रयाण
के
बाद
युवावस्था
का
वह
संपर्क
टूट
सा
गया
है
|
पिछले वर्ष उन्होंने मुझसे कहा था
-आप तो हमें भूल ही गए , तब मैंने कहा था -जी नहीं ,आपको कभी भूल नहीं सकता |आज वे शरीर
छोड़कर
इस
अनंत
निराकार
में
जा
मिले
हैं
लेकिन
उनकी
याद
हमेशा
बनी
रहेगी
|धन
निरंकार
जी-