श्रद्धांजलि - ओजस्वी वक्ता और निरंकारी प्रचारक सन्त कुलदीप सिंह जी (01/08/1947 - 19/01/2024)

 क्या भूलूँ क्या याद करूँ

रामकुमार सेवक 

बाबा हरदेव सिंह जी की अध्यक्षता में हो रहे   वार्षिक समागम  के कवि दरबार में उन्होने कहा था -

कुलदीप बेशक लाभ सिंह प्रधान दे घर जन्मेया

पर तेरे दरबान दे दरबान दा दरबान है 

कुलदीप सिंह जी ,आदरणीय महात्मा जे.आर.डी.सत्यार्थी जी के शिष्य थे |

बोलने की कला उन्होंने उन्हीं से सीखी |

वार्षिक समागम का आँखों देखा हाल मैं आदरणीय निर्मल जोशी जी के मार्गदर्शन में लिखता था |निर्मल जोशी जी खुदा के मुंशी कहे जाते थे और उनकी ताब हर कोई सह नहीं सकता था |

निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी के भी कुलदीप जी बहुत करीब थे |राजमाता जी ने सदा उन्हें पुत्रवत स्नेह दिया |वे ओजस्वी वक्ता थे और लोगों की क्षमता को भली भाँति पहचानते थे |

मेरा -उनका स्वभाव कभी नहीं मिला लेकिन निरंकारी प्रदर्शनी के माध्यम से हम लोगों ने कितने ही साल एक साथ सेवाएं दीं |निःसंदेह वे बहुत बढ़िया कार्यकर्त्ता और अधिकारी थे |अगर उन्होंने कोई वादा कर दिया तो उसे पूरा करके दिखाते थे |

वर्ष 1986  में मेरी प्रकाशन विभाग में नियुक्ति हुई |उस वर्ष वार्षिक निरंकारी सन्त समागम लाल किले के पीछे स्थित तीन मैदानों में हुआ था |वहां जो प्रदर्शनी लगाईं गयी उसमें सन्त निरंकारी प्रकाशनों के मुख्य संपादक ,सन्त साहित्यकार निर्मल जोशी जी और उनके सुपुत्र आदरणीय विनय जोशी जी के मार्गदर्शन में मेरा प्रवेश निरंकारी प्रदर्शनी में हुआ |

उस वर्ष निरंकारी प्रदर्शनी को चार भागों में बाँटकर मिशन के वैश्विक प्रभाव को बेहतर ढंग से  दिखाया गया था |आर्ट ग्रुप में जो आजकल बड़ी भूमिका निभा रहे हैं,दीपक बग्गा जी भी निरंकारी प्रदर्शनी की उस टीम में शामिल थे |

पूज्य निर्मल जोशी जी कुलदीप जी की प्रतिभा को बेहतर ढंग से पहचानते थे तो हम लोगों की प्रतिभा को उन्होंने प्रयोग करके निरंकारी प्रदर्शनी को बड़ा कैनवास दिया और कुलदीप जी ने हम लोगों की दक्षता  

का बेहतर इस्तेमाल किया |

कुलदीप जी की गति बहुत तेज थी और अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए किसी भी साधन का इस्तेमाल वे बेहिचक करते थे और अपने सहयोगियों के कार्य में कोई दिक्कत नहीं आने देते थे |

समागम की व्यवस्था में संलग्न ठेकेदारों और उनकी टीम से भी वे बढ़िया काम करवा लेते थे |

मेरे साथ उनका सम्बन्ध उतार -चढ़ाव भरा रहा |

एक बार की बात है दफ्तर जाने से पहले उन्होंने मुझसे ग्राउंड में पहुँचने के लिए कहा लेकिन मेरी नियुक्ति उन दिनों निर्माण भवन थी और चार बसें बदलकर मुझे वहां पहुँचना पड़ता था |

मुझे ग्राउंड तक पहुँचने में रात्रि के आठ बज गए |मुझे देखकर वे खुश हुए और अल्पाहार की व्यवस्था की |

कुछ ही समय बाद प्रदर्शनी में निरंकारी राजमाता जी का पदार्पण हुआ |कुलदीप जी माता जी से बहुत खुले हुए थे और उन्होंने राजमाता जी से मेरी शिकायत करते हुए कहा -माता जी,ये सेवक जी हैं जिन्हें मैंने सुबह आठ बजे बुलाया था और ये अब आये हैं |

मुझे बिलकुल आशा नहीं थी कुलदीप जी मेरे साथ ऐसा व्यवहार करेंगे लेकिन माता जी ने बात संभाल ली और कहा -चलो तो गए |

1981 में मैं इंटरमीडिएट का छात्र था और मुरादनगर में पढता था |निरंकारी यूथ फोरम के जो पांच लक्ष्य थे, उनका प्रचार -प्रसार भी करता था ,कुलदीप जी ने मेरा नाम किसी से पता किया और मंच से प्रशंसा की |1986के बाद जब प्रकाशन विभाग में सेवा मिली तो निरंकारी प्रदर्शनी में सेवा का सौभाग्य मिला और बाबा हरदेव सिंह जी के ब्रह्मलीन होने तथा माता सविंदर जी के समय तक निर्बाध  चलता रहा |

कुलदीप जी के महा -प्रयाण के बाद युवावस्था का वह संपर्क टूट सा गया है |

पिछले वर्ष उन्होंने मुझसे कहा था

-आप तो हमें भूल ही गएतब मैंने कहा था -जी नहीं ,आपको कभी भूल नहीं सकता |

आज वे शरीर छोड़कर इस अनंत निराकार में जा मिले हैं लेकिन उनकी याद हमेशा बनी रहेगी |धन निरंकार जी-