आज सुबह महात्मा कह रहे थे कि गुरु कभी भी अपने शिष्य का बुरा नहीं चाहता इसके बावजूद शिष्य गुरु पर विश्वास एकदम (तुरंत)नहीं करते ,शक-शुबहा अक्सर बना ही रहता है |
विवेक शौक़ जी एक बार discovery चैनल पर दिखाए गए एक कार्यक्रम का सन्दर्भ देते हुए बता रहे थे कि एक भेड़ एक बार कांटेदार बाड़ को लांघते समय उसमें फँस गयी |
तभी उसने देखा कि उसके मालिक का बेटा उधर से गुजर रहा था |लेकिन भेड़ को तब बहुत निराशा हुई जब वह उसे निकाले बिना ही उसके पास से गुजर गया |
उसने सोचा कि उसके मालिक का बेटा उतना दयालु नहीं है,जितना वह सोच रही थी लेकिन सच्ची बात यह थी कि बेटा दयालु था क्यूंकि वह अपने घर गया और कांटेदार बाड़ को काटने का उपाय करने लगा |उसने एक तेज cutter का प्रबंध किया और कटर लेकर वह पुनः भेड़ के पास आया |
उसने बहुत धैर्य से कांटेदार बाड़ का पिछला हिस्सा काटा |धीरे -धीरे भेड़ की गर्दन उस बाड़ से बाहर आ गयी |
अब उसने भेड़ को उस बाड़ में से निकाला और उसे सुरक्षित अपने घर उसके मालिक के पास अर्थात अपने पिता के पास ले गया |
अपनी भेड़ को बिलकुल सुरक्षित देखकर उसके पिताजी बहुत खुश हुए |
अक्सर बच्चों की आदत अपने पिता से भिन्न होती है लेकिन यह हमेशा नहीं होता |
वास्तव में हम लोग अपने तरीके से सोचते हैं और इस क्रम में यथार्थ को ओझल कर देते हैं |हमें अपने पूर्वाग्रहों को एक ओर रखकर सच्चाई को पहचानना चाहिए चूंकि गुरु सदा अपने शिष्य का भला ही सोचते हैं |
मुझे लगता है कि सत्गुरु पर अन्धविश्वास किया जा सकता है |
हंसती दुनिया मासिक पत्रिका के पूर्व संपादक तथा मेरे बड़े भाई के समान साथी और मित्र विनय जोशी जी ने एक बार अपनी एक कविता में प्रभु से अपना अन्धविश्वास प्रदान करने की प्रार्थना की थी |
यह गुरु पर अन्धविश्वास ही था जो गुरूअमरदास जी ने 61 वर्ष की बड़ी उम्र में भी खुद से 25 साल छोटे गुरु अंगददेव जी के आदेश को सर्वोच्च महत्व दिया |गुरु जी ने अनुमान से कहा कि-सुबह हो गयी है कड़े धो लाओ लेकिन अभी रात थी |
श्री गुरु अमरदास जी ने रात की परिस्थिति को एक तरफ रखा और गुरु के गुरु के वचन को ही सर्वोच्च महत्व दिया |
वे कह सकते थे कि-महाराज अभी सुबह नहीं हुई है लेकिन उस वृद्धावस्था में भी उन्होंने गुरुभक्ति और सेवा का मानदंड स्थापित किया और रात को ही कपडे धोने चले गए |
उनका तर्क था कि गुरु दिन को रात कहे तो दिन है और रात कहे तो रात है |मेरे जैसे लोग इसे अन्धविश्वास कहेंगे लेकिन गुरुभक्ति के परिपेक्ष्य में यह बहुत ऊँची अवस्था है |
उनकी भक्ति और समर्पण ने उन्हें सदा के लिए अमर कर दिया |
कई बार ऐसा भी होता है कि गुरु ऊपर से सख्त दिखाई दे रहे होते हैं लेकिन उनके दिल में शिष्य का हरदम भला ही छिपा होता है | कबीरदास जी ने कहा था कि-
गुरु कुम्हार,शिष्य कुम्भ है,गढ़ी गढ़ी काढै खोट
भीतर आप सहार दे,बाहर मारै चोट
अर्थात एक कुम्हार की भाँति गुरु मिटटी को घड़े के सही आकार में लाने के लिए ऊपर से चोट मारता है लेकिन अंदर से उसे सहारा देता है ताकि मिटटी उसी आकार में ढले जिस आकार में कुम्हार ढालना चाहता है |
गुरु का अपना vision होता है कि चिलम बनानी है या सुराही |
गुरु का विज़न समझ लेने के बाद यदि शिष्य को लगता है,यही विज़न सही है तो उसे अपनी पूरी सामर्थ्य गुरु को समर्पित कर देनी चाहिए ताकि उस विज़न को साकार रूप दिया जा सके |धन निरंकार जी
