रामकुमार सेवक
68 वे समागम की कुछ यादें-----
भक्ति का जो आनंद है-----
ह्रदय से शुक्राने के भाव निकल रहे हैं क्यूंकि सन्त समागम के इन चार दिनों का हिस्सा बनने का मौक़ा मिला |बहुत कुछ सुनने का मौक़ा मिला और कहने का भी मौक़ा मिला |बहुत सारे महात्माओं से मुलाक़ात हुई |इनमें अनेक प्रकार के लोग थे |सबकी अपनी-अपनी धारणाएं थीं लेकिन सत्गुरु बाबा जी के प्रति सबका प्रेम लगभग एक जैसा था |उनके प्रति आस्था ही जब फैलती है तो इंसान दिल्ली चला आता है ,समागम का हिस्सा बनने के लिए,अन्यथा दिल्ली ऐतिहासिक शहर तो है लेकिन किसी भी धर्म का तीर्थ नहीं है |युगपुरुष बाबा अवतार सिंह जी कहते हैं-
सतगुरु के चरणो तो वड्डा तीरथ ते स्नान नहीं-
इस तथ्य को दिल जब स्वीकार कर लेता है और मन - बुद्धि में गुरु के दर्शनों की प्यास उभरती है तो दिल्ली शहर एक मात्र तीर्थ नज़र आता है |
बहुत सारे कलाकारों और विद्वान वक्ताओं ने समागम के मंच से अपनी बातें कही |गौरव की अनुभूति हुई यह जानकर कि कितने ऊंचे स्तर के सज्जन बाबा जी के शिष्य हैं |इस हिसाब से वे हमारे गुरुभाई या गुरुबहन हुए |इस स्तर पर अपनापन बहुत बढ़ जाता है |मालिक कृपा करे कि ऐसे समागमो में लगातार सम्मिलित होने और उनका हिस्सा बनने का मौक़ा मिलता रहे |
26 वे समागम से दास को समागमों में सम्मिलित होने का अवसर मिलता आ रहा है ,इस प्रकार यह 43 वां समागम था जिसे देखने और महसूस करने का अवसर मिला |
बहुत सारे अपने भाईयो -बहनो के प्रति धन्यवाद प्रकट करता हूँ ,जिनके दर्शन हुए विशेषकर
श्री अवनीत सेतिया जी का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने मेरी साधारण सी कविता का अपने भक्तिपूर्ण वक्तव्य में उल्लेख करके मुझे बहुत सारे महापुरुषों के प्रेम और प्रोत्साहन का भागीदार बना दिया |यह भी सतगुरु बाबा जी की कृपा का ही परिणाम है |
गुरु पूजा दिवस जो कल रात एक बजे संपन्न हुआ 68 वे सन्त समागम का अंतिम कार्यक्रम था |इस कार्यक्रम के अंत में बाबा हरदेव सिंह जी ने मर्मस्पर्शी बातें कहीं जो सीधे दिल तक पहुंची |उनमें से एक बात यह थी कि-
भक्ति का जो आनंद है वो एक ऐसे नशे की तरह है,जो बेहोश नहीं करता ,बाहोश रखता है |भक्त ऐसे नशे में चूर रहते हैं और महसूस करते हैं कि-पैमाने से बात नहीं बनती मैखाने से बात बनती है |
इस प्रकार उन्होंने पैमाने और मैखाने का भी सकारात्मक इस्तेमाल किया |
जीने की एक कला बताते हुए उन्होंने कहा कि विनम्रता रहती है तो शोहरत भी रहती है |छोटी-छोटी बातें हमारे बड़े-बड़े रिश्तों को ख़त्म कर देती हैं |इनसे रिश्तों का ही नहीं गुरमत का भी नुक्सान होता है |उन्होंने कहा कि कान तो जैसे बंद ही हो गए हैं और रह गयी हैं-सिर्फ ज़ुबाने |उन्होंने व्यवहारिक मार्ग बताते हुए कहा-एक कहे दूजा मान ले तो यह ज्ञानी होने की पहचान है |
आईए ह्रदय से कहें-सतगुरु बाबा हरदेव सिंह जी महाराज की जय-धन निरंकार जी (16/11/2015 को लिखा गया )