समस्या- छोटे मन के साथ पूरे धार्मिक कैसे होंगे ?

 रामकुमार सेवक 

कल से बरसात हो रही है ,  हालांकि मौसम  बरसात का नहीं है |

यह चैत्र है,हिंदी वर्ष का यह पहला महीना है |जब मैं गांव में रहता था ,बचपन में तो अनेक बार अपनी माँ और बहनो के साथ अपनी ज़िद के कारण फसल काटने के समूह में शामिल हो जाता था |कहने का तात्पर्य है कि यह गर्मी का मौसम है |

गेहूं की फसल खेत में तैयार खड़ी है और वर्षा का मौसम -फसल बर्बाद -किसानो के लिए समस्या |

बेमौसम बरसात पर्यावरण के असंतुलन को भी प्रमाणित करती है |

होली का त्यौहार मार्च के आरम्भ में था |इस समय तो नवरात्रों के व्रत संपन्न हो चुके हैं |भक्ति का यह दौर अभी -अभी संपन्न हुआ है |इसके बावजूद गेहूं की बर्बादी किसान की बर्बादी है जबकि माता के पुजारियों में किसानो की भी बड़ी संख्या है ,खासकर महिलाओं की |क्या यही धर्म है ,दिमाग में प्रश्न आता है ?इसके जवाब में ज्यादातर लोग दुर्भाग्य को कारण मानते हैं लेकिन मुझे लगता है कि भाग्य तो कर्म से बनता या बिगड़ता है |        

आजकल सब्जियों को कम समय में पकाने का चलन है |

शाम को इंजेक्शन लगाते हैं और सुबह सब्जी पक जाती है |फलो  के मामले में भी ऐसा ही चलन है ,हम गली से गुजरते हुए सब्जी वालों को देखते हैं और घर की मातृशक्ति अपने अनुमान के अनुसार बढ़िया सब्जी ले लेती हैं |

उनकी कोशिश रहती है कि  घर का कोई व्यक्ति रोगी न हो |

अपनी तरफ से उनका प्रयास शत प्रतिशत ईमानदार रहता है मेरा ख्याल है लेकिन घर में किसी न किसी व्यक्ति की दवाई चलती रहती है |

रोग से घिरी रहने वालों में कई बार वह गृहिणी स्वयं भी शामिल रहती है |

मुझे मेरी पत्नी सदा से अधिकतम गुणवत्ता का भोजन देती है |यह एक अलग पक्ष है कि अब उनकी गुणवत्ता का अधिकांश भोजन परहेज की भेंट चढ़ चुका है |

मेरा कहने का तात्पर्य है कि कुछ महीने पहले तक पत्नी मुझे दूध का गिलास जरूर देती थी और मैं बहुत चाव से पी जाता था लेकिन उन्होंने खुद कभी दूध पिया हो ,मुझे याद नहीं |

लेकिन दूध पीने के साथ मेरा हमेशा से कथन रहा है कि-दूध न पीने से शरीर में कैल्शियम की मात्रा पर्याप्त नहीं रहती ,इसके कारण पत्नी के घुटनो में दर्द रहता है|इस के बावजूद उन्हें दूध पीते मैंने कभी नहीं देखा |अभी तो डॉक्टर ने मेरा दूध पीना भी रोक रखा है लेकिन पत्नी दूध नहीं पीतीं |अधिकांश स्त्रियां इसी विचारधारा की हैं और लगभग सबके पैरों में दर्द रहता है |

हमें दूध पिलाना और खुद दूध न पीना ,इस भाव को मैं मातृ शक्ति की तपस्या ही मानता हूँ |

और स्वस्थ परिवार का उनका लक्ष्य  पूर्ण न होने के पीछे सब्जियों के उत्पादन में शॉर्टकट इस्तेमाल करने की भावना को प्रमुख कारण मानता हूँ |

मैं कहना चाहता हूँ कि भारत धर्म प्रधान देश है |अभी-अभी नवरात्रे संपन्न हुए हैं |

आज नवमी है ,जिसे रामनवमी कहा जाता है |

इसे धर्म का विरोधाभास माने या कुछ और कि नवमी तो राम की है लेकिन पूजा नौ माताओं की हो रही है |लेकिन मुझे उससे कोई समस्या नहीं है कि अपने मन को संतुष्ट रखने के लिए राम जी की पूजा करें या माता का व्रत चूंकि मैं स्वयं निराकार ब्रह्म का उपासक हूँ |               

फलों और सब्जियों के उत्पादन में शार्टकट चलता है लेकिन  भक्ति में कोई शॉर्टकट नहीं चलता |पहला क्रम है-सदगुरु  की शरण में आकर  ब्रह्मज्ञान पाना और फिर उनके आदेशो का ईमानदारी से पालन करना |इसका परिणाम है -सेवा -सुमिरन -सत्संग का  आनंद |

भक्ति के क्षेत्र में जो शॉर्टकट का इस्तेमाल करते हैं उनकी अलग कहानी है |वे बहुत कुछ पा लेते हैं  भक्ति के सिवा |क्यूंकि इंजेक्शन देकर जो सब्जियां या फल पकाये जाते हैं वे सेहत नहीं देते  रोग बढ़ाते हैं |इसलिए जो भी करें ईमानदारी से करें |क्यूंकि छोटे मन से हम कभी महानता को स्पर्श नहीं कर सकते |