जश्न नहीं गणतंत्र हो स्थिर,
यह सबकी जिम्मेदारी है
आजादी का जश्न मनाते,
जिम्मेदारी भूल न जायें
अगर जले घर कहीं किसी का
पहले जाकर उसे बुझायें
नफ़रत के जो बीज उगाते,
उनसे रिश्ते नहीं बनायें
प्यार, नम्रता जिससे पनपे,
ऐसे फूल उगाते जायें
मानव हो मानव बन जाओ,
इसमें ही होशियारी है
जश्न नहीं गणतंत्र हो स्थिर,
यह सबकी जिम्मेदारी है
जो आजादी मिली है हमको,
कीमत बहुत चुकाई है
कइयों ने घर -बार गवांया,
कई ने जान गंवाई है
आजीवन जेलों में रहकर,
सारी उमर बिताई है
जनम भूमि से कोसों दूरी,
याद रही न भाई है
याद करें ऐसे बीरों को,
जिनकी याद विसारी है
जश्न नहीं गणतंत्र हो स्थिर,
यह सबकी जिम्मेदारी है
हमने सत्य -अहिंसा का,
दुनिया को पाठ पढ़ाया है
गीता का सन्देश दिया,
मर्यादा का सबक सिखाया है
ज्ञान और विज्ञान दिया,
गुरुमत की राह दिखाई है
दिया जलाकर कुटिया में,
सत्ता की राह सुझाई है
हमने सागर को था बांधा,
शक्ति यह रही हमारी है
जश्न नहीं गणतंत्र हो स्थिर,
यह सबकी जिम्मेदारी है
बहुरंगी परिधान पहन,
सम्पत्ति देश की चाट रहे
सेवा का बीड़ा उठा -उठा,
आपस में हमको वांट रहे
प्रजा -तन्त्र को राज-तन्त्र में,
हो रही बदलने की तैयारी
संविधान में रहे आस्था,
प्रजा -तन्त्र है जन हितकारी
प्रजा -तन्त्र का रुप न बदले,
अब हम सबकी बारी है
जश्न नहीं गणतंत्र हो स्थिर,
यह सबकी जिम्मेदारी है
इतिहास पुराना भूल न जायें,
एक नज़र फिर उस पर डालें
आपस में लड़ने -मरने को,
कोई दुश्मन न इधर बुला लें
अपनी सत्ता रहे सलामत,
न कोई ऐसी जुगत भिड़ायें
गणतंत्र की जननी भारत,
सब इसको मजबूत बनायें
देश के अन्दर छुपे जो बैठे,
उनका पर्दा -फाश करें अब
आपस में बे-शक हम झगडे़,
पर अन्दर से एक रहें सब
जगह न देंगे उन चेहरों को,
चाहे नर या नारी है,
जश्न नहीं गणतंत्र हो स्थिर,
यह सबकी जिम्मेदारी है