एक सप्ताह पहले हमने एक नए वर्ष 2023 में प्रवेश किया |लोगों ने परस्पर शुभकामनायें दीं |यह बहुत अच्छी परंपरा है कि हम भविष्य के प्रति बेहतर आशाएं कर रहे हैं -
इसलिए हमें अध्यात्म की मर्यादा को सदैव बनाये रखना है,कभी नहीं तोड़ना |
भय बिनु भक्ति न होइ ,यह बात (गोस्वामी तुलसीदास जी ने लंका जाने के लिए सेतु निर्माण के समय समुद्र की हठधर्मी के सन्दर्भ में )लिखी थी |
भक्ति में तो निरंकार(परमात्मा ) पर अटल विश्वास होता है इसलिए ऐसा लगता है कि महात्मा जिस भय की बात करते हैं ,वह एक मर्यादा है कि कर्म करने से पहले याद रहे कि किया जाने वाला कर्म कहीं भक्ति और अध्यात्म के विरुद्ध तो सिद्ध न होगा |
जो जस करहिं सो तस फल चाखा |

इस प्रकार सेवा ,सुमिरन और सत्संग के परिणाम अत्यन्त सुखद होते हैं |ये तीनो समन्वित रूप से हर वर्ष को सुखद बनाने में सक्षम हैं |
- रामकुमार 'सेवक'