ताकि नववर्ष 2023 शुभ सिद्ध हो

बाबा हरदेव सिंह जी महाराज कहा करते थे कि-युग सुन्दर, सदियां सुन्दर ,हर पल सुन्दर गर मानव जीवन हो सुन्दर | 

एक सप्ताह पहले हमने एक नए वर्ष 2023  में प्रवेश किया |लोगों ने परस्पर शुभकामनायें दीं |यह बहुत अच्छी परंपरा है कि हम भविष्य के प्रति बेहतर आशाएं कर रहे हैं -

बहुमुखी प्रतिभासम्पन्न विद्वान,अध्यात्मप्रेमी अभिनेता विवेक शौक़ जी कहा करते थे कि हमारा सत्गुरु रहमदिल है इसलिए रहमत ही करता है कभी श्राप नहीं देता |

इसलिए हमें अध्यात्म की मर्यादा को सदैव बनाये रखना है,कभी नहीं तोड़ना |  

भय बिनु भक्ति न होइ ,यह बात (गोस्वामी तुलसीदास जी ने लंका जाने के लिए सेतु निर्माण के समय समुद्र की हठधर्मी के सन्दर्भ में )लिखी थी |

रावण के सन्दर्भ में देखें तो समुद्र पर सेतु का निर्माण एक राजनीतिक प्रश्न था जिसे राम जी ने पूर्ण मर्यादापूर्वक हल किया |हमने अनेक महात्माओं से यह सुना है कि भय बिनु भक्ति न होइ  लेकिन भय का भक्ति से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नज़र नहीं आता |हनुमान जी रामजी के भक्त थे लेकिन दोनों के मध्य भय कहीं नहीं था |दोनों के मध्य हृदय का प्रेम ही प्रधान था |

भक्ति में तो निरंकार(परमात्मा ) पर अटल विश्वास होता है इसलिए ऐसा लगता है कि महात्मा जिस भय की बात करते हैं ,वह एक मर्यादा है कि कर्म करने से पहले याद रहे कि  किया जाने वाला कर्म कहीं भक्ति और अध्यात्म के विरुद्ध तो सिद्ध न होगा | 

मालिक कृपा करे कि हम सदा विवेकी रहें ,सेवा सुमिरन ,सत्संग से जुड़े रहें-हम जानते हैं कि सेवा भक्ति का अनिवार्य अंग है |सुमिरन तो अपने इष्ट से जुड़ने का माध्यम है और सत्संग सत्यप्रेमी विचारों वाले समाज का अंग बनकर जीने की व्यवस्था है |रामचरितमानस में कहा गया है,

कर्म प्रधान विश्व रचि राखा,

जो जस करहिं सो  तस फल चाखा |

यदि हमने अपना हर कर्म ,किसी भी रिश्ते से पहले परमेश्वर को देखकर किया है तो वह सेवा के अंतर्गत ही आएगा |वह करने योग्य कर्म ही होगा इसलिए हमारा भविष्य सुखद ही होगा |  

इस प्रकार सेवा ,सुमिरन और सत्संग के परिणाम अत्यन्त सुखद होते हैं |ये तीनो समन्वित रूप से हर वर्ष को सुखद बनाने में सक्षम हैं |    

- रामकुमार 'सेवक'