प्रेम अमन के फूल खिलाकर जीवन को गुलज़ार बनाएं


 प्रेम अमन के फूल खिलाकर

जीवन को गुलज़ार बनाएं।

नफ़रत की हम गिरा दीवारें 

अपनेपन के पुल बनायें 

प्यार से जीवन को सँवारे 

आओ प्यार से इसे सजायें 

 

बन के रहें इन्सान यहाँ 

ये धरती है इन्सानो की

अमन प्रेम के बिना है लगती 

मंडी ये शैतानों की 

प्यार के बीज धरा पे डालें 

अमन चैन की फसल उगायें 

 

प्रेम के स्रोत प्रभु से जुड़कर 

बरबस भाव उठें परहित के 

हर ज़र्रे में देख प्रभु को 

दिल फिर कहता है ये खिल के 

रुसवाइयों की तोड़ जंजीरे 

आओ सब को गले लगायें 

 

नफ़रत और क़दूरत के जब 

मानव मन अधीन हो गया 

उतनी बड़ती गई दूरियाँ 

जितना प्यार से हीन हो गया 

आओ रंजिशों की तपश से 

अपने हृदय को बचायें

 

प्रेम बिना जग सूना सूना

प्रेम से लगता हरा भरा है 

अमन चैन के फूल ना महके 

ऊजड़ा वो गुलज़ार पड़ा है 

ख़ुद को पहले करें सुगंधित 

दुनियाँ में फिर महक फैलायें

 

दुखी अगर पड़ौसी है तो

कैसे हमको चैन है आता 

देख बिलखते हुए भूख से 

कैसे भोजन हमको भाता 

ऐसा दया प्रेम बिन जीवन 

काश हमे कभी रास ना आये

 

सन्त अगर ना जग में होते 

जल उठता संसार ये सारा 

सन्त पलट के रख देते हैं

दुष्ट जनों के मन की धारा

संत अमन के वो बादल 

जो वेदधरा पर सुख बरसायें

   

-श्रीमती वेद रहेजा(गुड़गांव, हरियाणा)

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मानव हैं तो मानव के प्रति मानव सा व्यवहार बनाएं।

ये बसुधा परिवार अगर है फिर इसको परिवार बनाएं।

नफरत के घावों को भरने प्यार को हम उपचार बनाएं।

छोटा बड़ा दिखे ना कोई समता का आधार बनाएं।


सुधी जनों ने सदा कहा धरती गर स्वर्ग बनानी है तो,

प्रेम अमन के फूल खिलाकर जीवन को गुलजार बनाएं।।

ठान अगर लें तो निश्चित प्यारा परिवेश बना सकते हैं।

हिल मिलकर सब रहें प्यार से ऐसा देश बना सकते हैं।


जिनके दामन भरे दर्द से उनमें अब खुशियों को भर दें।

जो खोए हैं अंधियारों में वहां उजाला आओ कर दें।

हिंसा के बाजार सभी ये तभी बंद हो सकते हैं जब।

प्रेम अमन के फूल खिलाकर जीवन को गुलज़ार बनाएं।।





अशोक अनुरागी (शिकोहाबाद,उत्तर प्रदेश)

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प्रेम,अमन के फूल खिलाकर,

जीवन को गुलज़ार बनाएं 

प्रेम, अमन से रहना है,

तो सचमुच के फूल खिलाएं 

सिमट गये हैं दहलीज़ों तक,

इक कोने में जगह बनाएं ,

हर मौसम में पौधे रोपें

घर को खुशबू से महकाएं

खिले फूल के अवलोकन से

सब दुख-दर्द भुलाते जाएं

अपना मन जब खिले फूल सा,

तब खुशबू के नगमे गाएं

प्रेम अमन के फूल खिलाकर

जीवन को गुलज़ार बनाएं

 

जो नफ़रत के कांटे बोते

उनका जीवन खिला न होगा

कांटों में खिलते फूलों को

शायद उसने लखा न होगा

मन का भाव न होगा निर्मल

यदि हो नफ़रत का बीजारोपण

हर इक अपना लगेगा कैसे

यदि मैं के रथ पर है आरोहण

अहंकार की छोड़ सवारी

इक-दम पौधे सम बन जाएं

स्वच्छ हवा और खुशबू बांटें

अन्तिम क्षण तक देते जाएं

प्रेम, अमन...

  

केवल बातें मीठी करना

न मेरा व्यवहार हो जग में

हर कोई मेरा ही हो जाए

जैसा जो मिल जाए पथ में

नफ़रत छोड़ें गले लगाएं

व्यर्थ कि ना तकरार बढ़ाएं

जाति-पांति, धर्म या मजहब

ना क्षेत्र-वाद की हों सीमाएं

पुल बनना है हमको केवल

अब ना कोई दीवार बनाएं

कांटों में खिलते फूलों को

आओ घर पर तुम्हें दिखाएं

प्रेम, अमन...

 

प्रेम के पथ जिन क़दम बढ़ाया

दुश्मन उसका हुआ ज़माना

पैगम्बर को पूजा हमने

पर जीते जी उसको ना माना

राम कि मर्यादा को भूला,

प्रेम भुलाया ईसा का

ईमान भूल कर पैगम्बर का

सत्य -अहिंसा गौतम का

आओ मिलकर करें विवेचन,

हम किसको कितना मान रहे,

जो उपदेश दिए सन्तों ने,

क्या जीवन उसमें ढाल रहे 

अब ना ज्यादा समय गंवाए

इक गुच्छे में घुल-मिल जाएं

प्रेम, अमन के फूल खिलाकर,

जीवन को गुलज़ार बनाएं

- देवेंद्र कुमार 'देव'(फरीदाबाद)

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पशु-पक्षी भी मेहनत करके अपना पेट तो भर लेते हैं

ईश्वर ने जो देन दी उससे ,जग की सेवा कर लेते हैं      

मानव है इन सबसे ऊपर लेकिन लूट-पाट है करता 

पेट तो बेशक भर जाता है मन इसका पर कभी न भरता

अपने मन को बड़ा बनाकर अपनेपन के भाव जगाएं    

अमन-प्यार के फूल खिलाकर जीवन को गुलज़ार बनायें

 

सद्गुण ही तो मानव को मानव के साथ मिलाते हैं |

अपने दिल को बड़ा बनाकर सहज भाव अपनाते हैं |

गैर में भी इक प्रभु देखना इनकी आदत होती है ,

ऐसा मानव कांच नहीं है समझो तो सच्चा मोती है

सदाचार -उपकार के गहने अपने जीवन को पहनाएं

प्रेम-अमन के फूल खिलाकर जीवन को गुलज़ार बनायें |

 

मानव जीवन मिला है हमको खास काम यह करना होगा

किसी और से जंग न करके निज अहंकार से लड़ना होगा

हताश-उदास,टूटे लोगों को हंसी-ख़ुशी से भरना होगा

मन में फिर होगी पावनता, कर्म  में जब साकार मानवता

मिटे वैर का सब अँधियारा प्यार की जीवन ज्योत जलाएं  

अमन-प्यार के फूल खिलाकर जीवन को गुलज़ार बनायें  

 

अपने मन को बड़ा बनाओ साधु-संतों ने समझाया

मिलकर हर त्यौहार मनाओ,मिलवर्तन का सबक सिखाया

इक -दूजे से  मेल-जोल ही हमको बड़ा बना सकता है

कुल वसुधा परिवार हमारा सीख हमें समझा सकता है

हिन्दू -मुस्लिम,सिख -ईसाई प्रेम से मन इकसार बनायें

अमन-प्यार के फूल खिलाकर जीवन को गुलज़ार बनायें 

 - रामकुमार 'सेवक'