23 अक्टूबर 2022 को दीपावली की पूर्व संध्या पर आयोजित मन हों उजले दिल विशाल हों,ज्योतिर्मय संसार हो शीर्षक पर प्रगतिशील साहित्य पाठक मंच के कुछ कवियों की कवितायेँ यहाँ प्रस्तुत हैं - संपादक
लड़ी यह दीप की, और गीत की,
ना टूटने पाए
उजाला दू... र तक फैले
अंधेरा ना नज़र आए
भले यह रश्म लगती हो,
रसम है पर बड़ी गहरी
अंधेरा दू...र हो जाए,
न सूनी हो कोई देहरी
श्रंखला गीत की निर्झर,
सदा बहती चली जाए
सदा श्रोता व कवियों पर,
कभी भी धुंध न छाए
लड़ी यह दीप की...
उजाला दू...र...
सभी त्योहार जो अपने,
ख़ुशी हर घर में लाते हैं
रहें भूखे किसी कारण,
वो भी पकवान खाते हैं
कढ़ाई हर घर में चढ़ती है,
ख़ुशी हर घर को मिलती है
मकां कैसा भी हो अपना,
सफ़ाई उसकी होती है
ख़ुशी त्योहार लाते हैं,
बहाना हमको मिल जाए
कविगण बैठ कर इक संग
गीत हम गुन-गुना पाए
लड़ी यह दीप...
उजाला दू...र तक...
ये जो त्योहार दीवाली,
ख़ुशी हर घर में लाती है
किसानों की नई फसलें
कटी और घर में आती हैं
जुड़े हम सब किसानी से,
न हो कोई भरम भाई
उद्योग, सेवा और व्यापार
हर क्षेत्र में रौनक आई
दिए जलेंगे जब हर इक घर में,
बच्चे भी हैं ख़ुशी मनाएं
बंटे मिठाई जब आपस में
क्यों न फिर हम गीत सुनाएं
लड़ी यह दीप की...
उजाला दू...र तक...
त्योहार मनाएं सब मिलजुल कर
ध्यान हमें यह रखना है
रहे पड़ोसी का घर रोशन,
क्या सबने खाया पहना है
पंक्ति टूटी अगर दिए की,
दीप -अवली कैसे होगी
अगर रह गया भूखा कोई,
कृपा लक्ष्मी की न होगी
आओ मिल त्योहार मनाएं,
हर रुठे को तुरत मनाएं,
कवि-सम्मेलन रुक न पाए,
आओ ऐसी जुगत लगाएं
लड़ी यह दीप की और गीत
की न टूटने पाए
उजाला दू...र तक फैले
अंधेरा ना नज़र आए
- देवेंद्र कुमार 'देव' (फरीदाबाद)
अंतर में जब दीप जलेगा
घर घर आएगी खुशहाली।
जगमग होगा कोना कोना
मनेगी तभी नित दीवाली।
आज जलाएं दीप वही हम
मन हो उजले दिन विशाल हो
ज्योतिर्मय संसार हो
मन में भरा हुआ है कितना
दुनिया भर का कूड़ा करकट।
कैसे आए कनक सवेरा
नव किरणें दे कैसे दस्तक ?
रब से मांगें यही दुआ हम
बज उठे हृदय के तार हो।
मन हो जिले दिल विशाल हो
ज्योतिर्मय संसार हो---
दर्द किसी को क्यों देते हो
मन में नफरत क्यों ढोते हो।
चल फूलों की बात करें हम
दिल में कांटे क्यों बोते हो?मानवता का दीप जले तो
अंधियारे पर होता वार हो।
मन हो उजले दिल विशाल हो
ज्योतिर्मय संसार हो---
कलह क्लेश से दूर रहे हम
इक दूजे से नेह करें हम।
सारे जग में प्यार लुटाए
दूर सभी निज दोष करें हम।।
घर आंगन हो रोशन रोशन
जुड़े सबके ह्रदय के तार हो।
मन उजले दिल विशाल हो
ज्योतिर्मय संसार हो---
कितना भी हम दीप जलाएं
यह अंधियारा नहीं मिटेगा।
हर मन का जब मैल घुलेगा
हर अंधियारा दूर भगेगा।।
खफा खफा ना रहे किसी से जुड़े
आपस में प्यार मनुहार हो।
मन हो उजले दिल विशाल हो ज्योतिर्मय संसार हो।।
चेहरे पर खुशी की लाली
दूर तिमिर को जाना होगा।
नया सवेरा अब आएगा
मानव नव इतिहास रचेगा।।
ताक रहे हो किसका रस्ता
नवयुग के तुम सृजन हार हो।
मन हो उजले दिल विशाल हो
ज्योतिर्मय संसार हो।।
- मीरा सिंह मीरा (डुमरांव, जिला बक्सर, बिहार)

तीन
काला मन लेकर के कोई उत्सव भला मनाए कैसे
अंधकार में रहने वाला सूरज से घबराए जैसे
नफरत ईर्ष्या वाले मन को खुशी किसी की भाए कैसे
समझे खुद को समझदार फिर उसको समझाए कैसे
नींद भरी खुले जब आंखे सूरज का दीदार हो
मिटे मान और धुले मेल सब न कोई दीवार हो
छोटा दिल और छोटी बाते जीवन छोटा कर देती है
बड़ी सोच वो पूंजी है जो हर मुश्किल को हर लेती है
एक एक बूंद सरिता की पर सागर को भर देती है
अपनों आमद की टूटी झुग्गी को घर कर देती है
दिल विशाल ये हो जायेगा सोच अगर विशाल हो
सबकी फिक्र सभी से उल्फत, सबका ही सत्कार हो
हम सब मिलकर आओ यारो ज्ञान के ऐसे दीप जलाए
अंधेरे जीवन के पथ पर जो हर राही को रह दिखाए
कही रह में किसी राही की अंधकार कही रह न जाए
मिलकर साथ जले जो दीपक अंधकार को दूर भगाए
मेघ सबकी रहे हो जाए रोशन न कही अंधकार हो
मन ही उजले दिल विशाल हो सुखमय कुल संसार हो
- धन प्रकाश 'मेघ' (मुज़्ज़फरनगर)
चार
मन हों उजले दिल विशाल हों, ज्योतिर्मय संसार हो "
1) ब्रह्मज्ञान की दिव्य ज्योति में, रोशन घर संसार हो।
महक उठे जीवन की बगिया, सुंदर हर परिवार हो।
हर मानव मानव को भाए, इतना दिल में प्यार हो।
ईर्ष्या वैर रहे न दिल में, सबसे सद्व्यवहार हो।
मिलवर्तन हो सारे जग में, नफरत की न दीवार हो।
मन हों उजले दिल विशाल हों, ज्योतिर्मय संसार हो।।
2) क्षमामशीलता और विशालता, सहनशीलता भी अपनाएं।
परोपकार से भरा हो जीवन, मन में करुणा भाव जगाएं।
कौन है अपना कौन पराया, दिल से इसका भेद मिटाएं।
मानवता के पथ पर चलकर, जीवन का आदर्श दिखाएं।
प्रेम का फूल खिले हर दिल में, नफरत का न खार हो।
मन हों उजले दिल विशाल हों, ज्योतिर्मय संसार हो।।
3) एक प्रभु है हर घट भीतर, मन में यह एहसास रहे।
मिट जाए अज्ञान अंधेरा , ज्ञान का सदा प्रकाश रहे।
सारा जग तो अपना ही है , इसका भी आभाष रहे।
मानवता हो लक्ष्य हमारा, हर पल यही प्रयास रहे।
परम पिता परमात्मा ही , जीवन का आधार हो।
मन हों उजले दिल विशाल हों, ज्योतिर्मय संसार हो।।
- त्रिभुवन (मुंबई)