एक
अमर प्रेरणा मन में भरकर
आज़ादी का पर्व मनाएं |
हर दिल मंदिर, हर दिल मस्जिद, किसको तोड़ें, किसे बनायें - 32
हर में अपने देश को देखें, आपस में ना वैर बढ़ाएं |
धर्म जोड़ता, नहीं तोड़ता कहते हैं सब लोग सयाने
मानवता ही धर्म है सच्चा, अपनेपन की धार बहाएं
कुल वसुधा परिवार हमारा, प्रेम - अमन और भाईचारा
नर में नारायण को देखें, प्रेम को सींचें प्रेम बढ़ाएं
राम भक्त में रहम न हो गर, कैसे छलकेगा फिर अमृत
मनेगा कैसे अमृत उत्सव हमको
कोई ज़रा बताये
कृष्ण जो मन में मुस्काएगा, नफरत की फिर बात न होगी
दिल में गूंजे वंशी की धुन, राम - रहीम को गले लगाए |
बुरा सोचना नहीं किसी का
इससे ही निज़ हित भी होगा
निकलेंगे फिर प्रेम तराने
राम की धुन में राम समायें |
छूट गयी गर नफरत निंदा, मंगलमय मन रहेगा ज़िंदा ,
जियें और जीने दें सबको, पूरी होंगी नव आशाये |
वैर से कुछ न हासिल होता, पहले का भी खो जाता है,
हर में हरि को हाज़िर देखें, हर पीड़ित को गले लगाएं |
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, सबसे उज्जवल सबसे न्यारा
पूरब-पश्चिम,उत्तर-दक्षिण, पूरा भारत एक बनायें |
जिनने देश को एक बनाया, एक प्रभु ही सबमें पाया,
याद करें सबको श्रद्धा से, ना नफरत से करो पराये |
देश-प्रेम और त्याग भाव से
किया जिन्होंने जीवन अर्पण,
अमर प्रेरणा मन में भरकर
आज़ादी का पर्व मनाएं |
- रामकुमार 'सेवक'
दो
मेरा
भारत मेरी पहचान
मैं हूंँ
संस्कृति!, संस्कृति हूंँ मैं!
जिसका इस देश
से बहुत गहरा नाता है।
विविधताओं को
समेटे हुए मेरा देश
जिसे भारत कहा
जाता है।
नि:शब्द हूंँ
मैं इसके विस्तार वर्णन में
मैं मान हूंँ
इसका, वो अभिमान है मेरा
मुझे सहेजे हुए
हर पल,
वो वरदान है
मेरा।
पताका है मेरे
हाथों में
भारत की गौरव
गाथाओं की,
जो रणभेदी, जो मर्मस्पर्शी
गुंजित, वीर स्वर से लिपटी
संपूर्ण धरा पर
कहीं नहीं
केवल भारत में
है सृष्टि ऐसी।
वो मधुर ध्वनि
वो मीठे स्वर
संपूर्ण विश्व
में कहीं नही
जो कलरव करती
सृष्टि-सम
संपूर्ण विधा
है भारत की ।
वह सम्पूर्ण
विधा है भारत में
जो पल-पल रंग
बिखराती है,
नभ,वन, तड़ाग,नदी,झरनों से
कल-कल का राग
सुनाती है।
जीवन में
अद्भुत रंग ही नही
हर ढंग भारत का
न्यारा है
कहीं गरबा,भांगड़ा,यक्षगान,
तो कहीं घूमर,कत्थक प्यारा है।
कहीं बनते
न्यारे व्यंजन,पकवान
तो कही मिष्ठान
प्रसिद्ध हमारा है,
क्यों न हो
गर्व हमे इस पर
ये प्यारा भारत
हमारा है।
इस देश की नारी शक्ति तो
आदर्श रूप
दर्शाती है।
दुर्गम रहें हो
या आसान
कठिन से कठिन
परिस्थिति में भी,
जीने की चाह
बढ़ती है।
इस देश की धरा
का हर कण-कण
जीने का ढंग
सिखलाता है।
क्या कृषक-जीवन, क्या अभियंता,
वो हर दायित्व
निभाता है।
क्यों न हो
गर्व मुझे इस पर
हर जन से मुझे
संभाला है,
भारत के जन-जन
से मुझको
अपने रोम-रोम
में पाला है।
घूम आई संपूर्ण
विश्व
हर कोना मैने
देखा है,
पहचान बनी मैं
भारत की
भारत ही मेरे
जीवन की रेखा है।
मैं संस्कृति
हूं! मैं संस्कृति हूं!
भारत से मेरा
नाता है,
क्यों ना हो
गर्व मुझे इस पर
यही तो मेरा
जन्मदाता है ।
विविधताओं को
समेटे हुए मेरा देश
जिसे भारत कहा
जाता है
जिसे भारत कहा जाता है।
- ममता रानी 'मृदुल'
"अमर प्रेरणा दिल मे भरके आज़ादी
का पर्व मनाये"
आओ उन वीरों से
ले प्रेरणा दे गए जो हमें आजादी
क्रांति का
बिगुल बजा कर स्वराज की नींव जमादी
जिनकी सत्ता थी
मेरे वतन में उनकी ईंट से ईंट बजा दी
देशभक्ति की
भरी भावना मन के अंदर ज्योत जगा दी
अभेद् दुर्ग
को जीत लिया और अपने ध्वज फहरये
अमर प्रेरणा
दिल मे भरके आज़ादी का पर्व मनाये
कुछ वीर बहादुर
करके ऐसे काम् निराले गये
हम गुलामी की
पड़े कैद मे तोड़ वो सारे ताले गए
आज़ादी का
मतलब् क्या है समझा कर् मतवाले गए
संकीर्ण सोच मे
लगे हुए छूटा वो सारे जाले गए
जो पड़े शिथिल
कर गए मजबूत देकर शौर्य की गाथाएं
अमर प्रेरणा दिल मे भरके आज़ादी का पर्व मनाएं
आज़ादी कि
परवानों को कम से कम याद तो कर लें
उनके त्याग
बलिदनों को आओ अपने दिलो मे भर ले
हो आपस मे
प्रेम भावना सभी विवादों से होकर दूर
समान अधिकार
मिले सबको कोई भी रहेना मजबूर
ये याद रहे हम
भारतवासी स्नेही सबको गले लगाए
अमर प्रेरणा
दिल मे भरके आज़ादी का पर्व मनाएं
- फूल सिंह 'स्नेही'
(गाजियाबाद)