स्वतंत्रता दिवस
आज का दिन है बड़ा न्यारा
बड़ा सुहाना बड़ा प्यारा
15 अगस्त था सन
सैंतालिस
खुद हम बने थे अपने मालिक
हुआ देश स्वतंत्र हमारा
गूंज उठा जय हिन्द का नारा
खुली हवा में साँस लिया जब
भारत माँ ने हमें कहा तब
लाज तिरंगे की तुम रखना
वो स्वाद ना फिर से चखना
कभी मुग़ल कभी अंग्रेजों ने
ज़ख़्म दिए जो इन लोगों ने
उस पे मरहम लगाते रहना
स्वतंत्रता दिवस मनाते रहना
देश वासीयो मिल के रहना
फूलों की तरह खिल के रहना
फ़र्शों से अर्शों तक जाना
पीछे ना फिर लौट के आना
सस्ते में नही मिली आज़ादी
खून बहाया जानें गँवा दी
अब तो इसे सम्भाल के रखना
भाव ये मन में पाल के रखना
साल पचहतर बीत चुके हैं
सोचें ज़रा हम कहाँ रुके हैं
देश आज़ाद हुआ है बेशक
क्या हम भी आज़ाद हुए हैं
भ्रष्टाचार हुआ है हावी
ख़तरे में है पीड़ी भावी
मौलिकता कहीं खो गई है
अनैतिकता मुंहज़ोर हुई है
आओ ये ज़ंजीरें तोड़े
रुख़ बहारों के हम मोड़े
निज हित में ना पड़े रहे हम
देश के हित की बात करें हम
आज़ादी फिर जशन बनेगी
सच में शान-ए-वतन बनेगी
- श्रीमती वेद रहेजा (गुड़गांव)
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( दो )
देशभक्ति कविता
- डॉ. पुष्पेंद्र कुमार अस्थाना पुष्प निरंकारी ( वाराणसी )
बहुत मुश्किलों
बाद गुलामी
से भारत आज़ाद
हुआ है।
सदियों बाद
खुशी मिली यह
उदय मुल्क़ का
साद हुआ है।
लौट के फिर आ
गईं बहारें
गुलशन अब आबाद
हुआ है।
अनेकता में
खिली एकता
वतन ये
ज़िंदाबाद हुआ है।
कई रंग का बना
तिरंगा
इक-रंगा ना इसे
बनाएं।
अमर प्रेरणा
दिल मे भर कर
आज़ादी का पर्व
मनाएं।।1
देश के ख़ातिर
लाखों-लाखों
देश-भक्त
कुर्बान हो गए।
और आज हम सब
हैं कि
खुदगर्ज़ी में
मनमान हो गए।
हिन्दू जैन
ईसाई सिख हम
बौद्ध व
मुसलमान हो गए।
देश-भक्ति का
ओढ़ के चादर
अन्दर से शैतान
हो गए।
सरम करें अब से
भी तौबा
मिट्टी में ना
शान मिलाएं।
अमर प्रेरणा
दिल में भर कर
आज़ादी का पर्व
मनाएं।।2
क्या यही है
मतलब आज़ादी का
मनमाना जो काम
करें हम ?
उल्टा-सीधा बोल
वतन को
जग भर में
बदनाम करें हम ?
जब चाहें तब
हल्ला बोलें
सड़क पे चक्का
जाम करें हम ?
धर्म जाति की
आग लगा के
ज़ुबां पे अल्ला
राम करें हम ?
जल न जाये
*पुष्प* चमन ये
चल नफ़रत की आग
बुझाएं।
अमर प्रेरणा
दिल में भर कर
आज़ादी का पर्व
मनाएं।।3
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तीन
अपनी आन और बान
तिरंगा शान से इसको हम फहराए
अमर प्रेरणा
दिल में भरकर आजादी का पर्व मनाए
रंग केसरी कहता है ये धरती है वीर जवानों की
लक्ष्मी बाई, बोस,भगत सिंह बिस्मिल से मस्तानों की
जो बलिदान दिया
वीरों ने दिल से उसे ने कभी भुलाए
सब अपने है कोई
नही पराया रंग सफेद समझता है
विश्व बंधुत्व
रहे दिलों में बात यही बतलाता है
सहस्तित्व और
शांति के मार्ग पर मिलकर कदम बढ़ाए
हो सम्मान
अन्नदाता का रंग हरा सिखलाता है
चीर के सीना
धरती का जो भोजन को उपजाता है
आंसू पोंछे, चरण पखारे, खुशहाली उस तक पहुंचाए
चक्र का नीला
रंग बताता ये धरती है अवतारों की
वेदों की गीता
की, संस्कृति और संस्कारो की
पश्चिम की
आधुनिकता में जड़ों को अपनी भूल न जाए
में हिंदू हूं, तुम मुस्लिम हो,
सिख है वो ईसाई है
भेदभाव नफरत से
बनती दीवारे और खाई है
नफरत की दीवार
गिरा दे, चलो प्यार के पुल बनाए।
आजादी के अमृत
उत्सव पर खुशियां बाटे, खुशियां पाए
ऐसे कर्म करे
सब मिलकर जो भारत का जो मान बढ़ाए
मेघ मुबारक दिन
ये प्यारा मिलजुल कर है साल मनाऐ।
- धन प्रकाश 'मेघ' (मुज़फ्फरनगर)