एक
मैं राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा हूं
कवि - विनोद
कुमार कवि (कालका जी, नयी दिल्ली)
मैं बचपन से गाता आया हूं,
प्रेम सुधा
बरसाने वाला
झंडा ऊचां रहे
हमारा,
आज राष्ट्रीय
ध्वज ने,
मुझसे कुछ इस
प्रकार कहा,
हिन्दू मुस्लिम, सिख ईसाई
मैं किसी एक का
नही,
हर भारतवासी का
हूं भाई,
जब तुम मुझे
सभी मिलकर फहराते हो
देकर सम्मान
मुझे शान
हिंदुस्तान की
बढ़ाते हो
मगर कासगंज जले, या
पुणे का
भीमाकोरे गांव
गुजरात जले, या कश्मीर
मगर बिगड़ तो
रही हैं
मेरे
हिन्दुस्तान की तस्बीर
ना कोई हिन्दू
मरता है
ना कोई
मुस्लमान मरता है
जब भी मरता है
तो,
मेरा
हिन्दुस्तान मरता है
जब तुम मुझे
फहराते हो
तो ये क्यों भूल
जाते हो
मेरा एक रंग
सफेद भी है
जो शांति का
प्रतीक दर्शाता है
बतलाओ फिर मुझे,
एक भाई दूसरे
भाई पर
गोली क्यों
चलाता हैं,
एक वो नेता थे,
जो वतन के लिए
राजनीति करते थे,
जरुरत पड़े तो
जान भी, Conti....
अपनी न्योंछावर करते थे,
आज जब कोई लाल
भारत माँ का मरता हैं
आज का नेता
हिन्दू,मुस्लिम की
राजनीति करता है
बेशक मत फहराओ
तुम मुझे,
मगर ये वैर
-नफरत की दीवारे तोड़ दो,
गर करना है
सम्मान तिरंगे का,
तो आपस में खून
बहाना छोड़ दो,
मेरी रचना की
थी पिंघली वेंकैया ने
उनके सपने को
सजाये रखना
मैं हिंदुस्तान
का राष्टीय ध्वज हूँ
मेरी गरिमा
निष्ठा को बनाये रखना,
देकर प्राण भी
अपने, ऊँची चोटी पर,
तिरंगा
उन्होंने लहराया था,
हवलदार अब्दुल
हमीद हो या कैप्टन विक्रम बत्रा
जिन्होंने शान
को मेरी बढ़ाया था
मैं राष्ट्रीय
ध्वज तिरंगा,
हर भारतीय को
यह विश्बास दिलाता हूँ
जिस दिन मुल्क
में, जातपात और धर्म मजहब से
ऊपर उठकर मुझे
फहराया जाएगा
उस दिन मेरा
हिन्दुस्तान
बिश्व का नंबर
वन मुल्क कहलाएगा,,
दो
कवि - जगन्नाथ
(पटोदी)
जाति वर्ण के झगड़े छोड़े
नाहक क्यों हम रार
बढ़ाएं ।
भेदभाव सब दूर हटा
के
आज़ादी का पर्व
मनाएं।
तप त्याग और बलिदानों से
यह सुबह सुहानी आई है ।
मिलजुल कर के रहना
हमने
यही संदेशा लाई है ।
एकता के सूत्र में
यारों
अब क्यों ना सारे
बंध जाएं ।
अमर प्रेरणा लेकर
दिल में,
आज़ादी का पर्व मनाएं ।
मंथन से यूं कतरा करके
अंधभक्ति में यूं मत डूबों
अफवाहों का विष पी
कर के
बुनियादो से यूं मत रूठो ।
हरिक ईंट का योगदान
है
तथ्य नहीं यह
बिसराएं
सहज प्रेरणा लेकर दिल में
आजादी का पर्व मनाए।
महापुरुषों में भेदभाव !
कैसा उल्टा चलन
चला।
किसी को रखा सर आंखों पर
किसी से देखा सदा गिला
शहीदों तक को बांट
रहे अब
इस चलन को बंद
कराएं
अमर प्रेरणा दिल
में रखकर
आजादी का पर्व मनाए।
तीन
कवि - देवेंद्र कुमार देव (फरीदाबाद)
जो ज़ंजीरें तोड़ चुके हैं,उनमें फिर से न उलझायें
अमर प्रेरणा दिल
में भरकर,आजादी का पर्व
मनायें
फ़िरकापरस्ती,तंग नज़री बढ़ रही है देश में
आवरण बदला है केवल,भटकें न हम आवेश में
फिर भिड़ाया जा रहा,मीठे -मधुर सन्देश में
चेतना की है ज़रूरत, फस न जायें वेष में
मिटे गरीबी और बेकारी,जन-जन को सम्मान दिलायें
अमर प्रेरणा दिल में भरकर,आजादी का पर्व मनायें
केवल झूठे बादों से,कल्याण कभी नहीं हो सकता
रोटी की हो चर्चा
केवल पेट कभी नहीं भर
सकता
खाली पेट जो करे
मजूरी रोटी की कीमत
जानेगा
जन्मा चांदी की
चम्मच ले भूख को वो क्या
मानेंगा
ना मौत भूख से हो
कोई भोजन दो जून करा
पायें
अमर प्रेरणा.....
अभी देश में बहुत
गरीबी और लाचारी फैली है
दिख रहे आंकड़े
समृद्धि के यह सरकारी शैली है
गर मौके का सही
आंकलन सरकार हमारी कर
पाती
अमृत महोत्सव के
मौके पर ना भुखमरी सुनी
जाती
बेघर झंडा लिए
पूंछता कहो कहां इसको
फहरायें
अमर प्रेरणा.....
यह सच है,अब भी भय है ना कोई झूठी बातें हैं
मेरे देश में अब भी सबकी चढ़ती नहीं बरातें है
सांझ ढले पर बहिन, बेटियां डर कर बाहर जाती हैं
अटकी सांस रहे
परिजन की जब तक ना वापस आतीं
हैं
भय को खत्म करें
सरकारें हर इक को सम्मान
दिलायें
अमर प्रेरणा.....
इन परिस्थितियों से
लड़कर प्रजातंत्र मज़बूत
खड़ा है
जितने बाहर, उतनें अन्दर हर दुश्मन से खूब लड़ा है
कृषि और विज्ञान
में हमने दुनिया को दिखलाया
है
देश की रक्षा करने
में वीरों ने नाम कमाया
है
अन्धकार मिट जाये,जग से ऐसी अलख जगाते जायें
अमर
प्रेरणा.....
राह दिखायें युवा - शक्ति को यह कुछ भी कर सकते हैं
चाहे कितनी विषम
घड़ी हो यह सब उससे लड़
सकते हैं
कोविड टीके का
विकास कर कठिन लक्ष हमने
पाया
एक साथ सब खड़े हो
गए हर घर राशन
पहुंचाया
सर्व - धरम समभाव
रहे मन की कटुता सब
बिसरायें
अमर प्रेरणा दिल में भरकर आजादी का पर्व मनायें