डॉ .अम्बेडकर द्वारा किये गए कानूनी प्रावधानों के कारण -दबे-पिछड़े-अस्पृश्य माने जाने वाले वर्गों तक भी शिक्षा की किरणे पहुँची और उन वर्गों के लिए भी उज्जवल संभावनाओं के द्वार खुले |
यह एक बड़ी क्रांति थी चूंकि कुछ ही वर्ष पहले इन वर्गों को वही व्यवसाय करना पड़ता था जो उनके पूर्वज करते आये थे |
ब्राह्मण,क्षत्रिय ,वैश्य शूद्र के जातिगत बंटवारे ने मानव को ऐसा विभाजित कर रखा था कि ये लोग मनुष्य कभी बन ही नहीं पाते थे |बाबा अवतार सिंह जी ने अपनी काव्य पुस्तक सम्पूर्ण अवतार बाणी की रचना की तथा मनुष्य के समस्त भ्रमो को ख़त्म कर दिया |उन्होंने कहा -
एक नूर है सबके अंदर, नर है चाहे नारी है |ब्राह्मण-खत्री -वैश्य-शूद्र ,भगवान की रचना सारी है |
हिन्दू-मुस्लिम -सिख -ईसाई -एक प्रभु की हैं संतान |
मानव समझ के प्रेम है करना हमने सबसे एक समान |
आगे उन्होंने कहा-
कहे अवतार ये दूजा प्रण है वर्ण-जात नहीं मनणी तू |
इस प्रकार उन्होंने मानवता की अलख जगाई |अपने अनुयाईयों से उन्होंने कहा कि वे अपनी पहचान मानव के रूप में बनाएं |
सन्त निरंकारी सेवादल के मार्चिंग गीत में आज भी गाया जाता है-
ना हिन्दू ,ना सिख-ईसाई ,ना हम मुसलमान हैं,
मानवता है धर्म हमारा हम केवल इंसान हैं |
निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी कहा करते थे कि-
कुछ भी बनो मुबारक है,पहले बस इंसान बनो |
इस भाव की उन्होंने कई बार व्याख्या की और अपने अनुयाइयों को कहा-
कोई खिलाड़ी बनते हो,मुबारक है |एक कलाकार बनते हो,बड़े अधिकारी बनते हो,यह सब कुछ बनना मुबारक है लेकिन और कुछ भी बनने से पहले इंसान बनना जरूरी है |
सुनने में यह बात बहुत आसान और प्राकृतिक लगती है कि इंसान बनने की बात कहना बिलकुल अनावश्यक है क्यूंकि हम इंसान ही तो हैं,पशु-पक्षी तो नहीं हैं |हमारे सिर पर सींग तो निकले हुए नहीं हैं |पीछे से पूँछ भी नहीं निकली हुई है |फिर तो हम इंसान ही हैं |
निरंकारी राजमाता कुलवंत कौर जी का कहना था कि जब भी दो इंसानो का विवाद होता है तो अक्सर यह बात सुनी जाती है कि पहला इंसान दूसरे को बोलता है कि -तू इंसान बन जा |
इसका अर्थ है कि इंसानो वाला शरीर होने के बावजूद वह इंसान नहीं है |
बहुत सारे निरंकारी अनुयाइयों को मैं देखता हूँ कि जाति- धर्म-वर्ग आदि के नाम पर वे एकजुट हो जाते हैं शेष सब लोगों की तरह जबकि निरंकारी मिशन में धार्मिक या जातिगत आधार पर खुद को इंसानीयत को ही एक मात्र धर्म मानने का आग्रह किया गया था बल्कि पांच प्रण भी कराये गए थे लेकिन एक धर्म विशेष के विरोध की हवा में उनमें से भी कुछ को उड़ते देखा गया है जबकि बाबा अवतार सिंह जी ने जिन सिद्धांतों का प्रतिपादन किया था उनमें साम्प्रदायिकता की लहर में बहने की रत्ती भर भी संभावना नहीं थी |
यह सिद्धांत और व्यवहार का फासला है ,जो किसी भी भक्ति आंदोलन को पर्याप्त सफल नहीं होने देता |मालिक कृपा करे कि निरंकारी मिशन ने जिस परम पिता परमात्मा को कण-कण में देखने का तत्व प्रदान किया ,उसके परिपेक्ष्य में हर अनुयाई स्वयं को मनुष्य समझे और मनुर्भव होने का लक्ष्य हासिल करे |
डॉ.अम्बेडकर द्वारा किये गए संवैधानिक प्रावधानों के कारण हर भारतीय मनुष्य को मानवीय अधिकार मिले |संवैधानिक अधिकार स्वयं में बहुत बड़ा सम्बल है जो मनुष्य को आत्मविश्वास से भरता है लेकिन बाबा अवतार सिंह जी द्वारा दिया गया अध्यात्मिक मार्गदर्शन इंसान को ज्ञान का आलोक प्रदान करके मानसिक गुलामी से मुक्त करता है |
इंसान के भीतर वर्चस्व जमाकर गुलाम बनाने की प्रवृति अमानवीय है |इस सत्य को जितनी जल्दी स्वीकार कर लिया जाये,बेहतर है |धन्यवाद..
- आर.के.प्रिय