प्रगतिशील साहित्य पाठक मंच द्वारा तीन जुलाई 2022 को ऑनलाइन आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में पढ़ी गयीं कुछ कवितायेँ -
एक
चहुँ दिशाएं चीख रही हैं-
हमें बचाओ ,कोई बचाओ |
मानवता लाचार हुई है,इसको कोई धीर बंधाओ |
राम मुहम्मद ईसा नानक
चार नाम पर ,एक है शक्ति |
सब हैं अपने ,गैर कोई नहीं
इक - दूजे को सब समझाओ |
लेकिन पहले खुद यह समझो
प्रभु है हम में,हम सब प्रभु में |
एकत्व का एहसास तो कर लो
द्वैत की ऐनक जरा हटाओ |
देश को अपने दिल में भरकर
एक बनो और एक बनाओ |
देश के हम हैं ,देश हमारा ,
यहाँ कोई अलगाव नहीं है |
हम भारत के बेटी- बेटे ,
वैर का कोई भाव नहीं है |
इसको इक एहसास बनाकर
पथ को उज्जवल करना होगा |
दिल में जो खालीपन आया
उसे प्रेम से भरना होगा |
सत्गुरु से जो बात सुनी है
उसको जीवन में अपनाओ
एक को जानो ,एक को मानो
इक में मिलकर इक हो जाओ |
सिसक रही है धरती माता
इसको धैर्य बंधाना होगा |
पोंछ के पीड़ित जन के आंसू
असली धर्म बचाना होगा |
सबका दिल से भला सोचकर
मन को बड़ा बनाना होगा |
मिलवर्तन ही सदा सत्य है
भूलों को समझाना होगा |
मानव ही हम सबका परिचय
प्रेम और सत्कार से
न तीर न तलवार से
दिल जीतने हैं प्यार से |
कण -कण में,जन -जन में ईश्वर,
देखें जन -जन में परमेश्वर |
आँख की पट्टी जरा हटाओ
सुनो राम का दिल में ही स्वर |
दिल है मंदिर खास खुदा का,
इस मंदिर को कभी न तोड़ो |
नर सेवा ,नारायण पूजा
जोड़ो,जोड़ो सबको जोड़ो |
जोड़ो सांसों से जीवन को
खुशबू से महकाओ चमन को
दीन-धर्म और बोली -भाषा
से ऊपर समझो जीवन को |
सुखी बने संसार यह सारा
न तीर न तलवार से
दिल जीतने हैं प्यार से |
- रामकुमार 'सेवक'
दो
न तीर,न तलवार से, दिल जीतने हैं प्यार से
हर संत पुकारे,हर ग्रंथ पुकारे
यह सोच लो इकवार, चाहे सोचो सौ वार
वस एक ही चारा,मिलवर्तन प्यारा
हर संत पुकारे, हर ग्रंथ पुकारे
गले न काटो, गले लगाओ
मिलो तो वस सत्कार से
न तीर,न तलवार से
दिल जीतने हैं प्यार से
जो भी आया इस धरती पर
निश्चित उसका जाना है|
रिश्ते नाते इस धरती के,
संग एक न जाना है |
फिर क्यों? नफ़रत के कांटे बोए
बोलों से न,विष फ़ैलाऐं
धर्म ध्वजा को हाथ में ले
न तकरीर करें अहंकार से |
न तीर से,न तलवार से,दिल जीतने हैं प्यार से |
मन में कटुता, दिल में नफ़रत
धर्म के ठेकेदार कहाये
दया -धरम का मूल है भाई
पर ये सीख समझ न आए |
वाणी में विष वमन,बैर में मगन
सोचो तुम क्या बोते हो,
अपने नित के व्यवहार से
न तीर न तलवार से,
दिल जीतने हैं प्यार से
एक कथन सबका है भाई }
ना हमने ना आग लगाई |
जो बैठा है मेरे सामने
असल आग इसने सुलगाई |
हम रसूल के प्यारे हैं |
हम तो वस राम दुलारे हैं |
यदि राम पर आंच जो आई
पैगम्बर की हुई बुराई |
धर्म की रक्षा तो करनी है
बैर या तकरार से न तीर,न तलवार से |
दिल जीतने हैं प्यार से
हर चैनल ने कसम है खाई;
ना मिल जाये भाई-भाई |
पैनल में जो आ बैठे हैं
उनमें जमकर बजे लड़ाई |
शंखनाद, हल्लाबोल
और दंगल को समझो भाई |
पैनल के आगे चैनल ने
दी पेट्रोल और दियासलाई
केवल सदव्यवहार से
न तीर, न तलवार से दिल जीतने हैं प्यार से
- देवेंद्र कुमार 'देव'
तीन
कहीं पर झगड़ा कहीं पर रगड़ा, कहीं मची तकरार है।
मानव मानव की कद्र न करता,यह कैसा व्यवहार है।
ईर्ष्या वैर व नफरत वाली, दिल में खड़ी दीवार है।
कहां गई वो प्यार की बातें,दिल में बसा अहंकार है।
मानव मानव से जुड़ सकता है,आदर व सत्कार से।
न तीर न तलवार से,दिल जीतने हैं प्यार से।
प्रेम नम्रता सहनशीलता , क्षमाशीलता भी अपनाएं।
जीत सकेंगे हर एक दिल को, दिल में यदि प्यार बसायें।
एक खुदा का नूर सभी में, कोई पराया नजर न आए।
प्रेम का फूल खिले हर दिल में, हर मानव मानव को भाए।
जीवन का आदर्श दिखाएं , अपने सदव्यवहार से।
न तीर न तलवार से, दिल जीतने हैं प्यार से।
विजय दिलों पर पा जाएं तो, फिर न कोई युद्ध रहेगा।
हर दिल दिल से मिल जायेगा, सुंदर घर संसार लगेगा।
कोई पराया नजर न आए, अपनेपन का भाव जगेगा।मानवता खिल उठेगी फिर से, जग का सुंदर रूप सजेगा।प्रेम की गंगा बहे दिलों में,शुरू हो हर परिवार से।
न तीर न तलवार से, दिल जीतने हैं प्यार से।