निरंकारी बाबा हरदेव सिंह जी का मूल स्वर यही रहता था कि एक परम पिता परमात्मा की प्राप्ति होनी चाहिए और हर युग में इसके लिए एक ही ढंग रहा है कि सत्गुरु का सान्निध्य प्राप्त किया जाये |जैसे मीराबाई ने जब भक्त रैदास से यह दिव्य बोध प्राप्त किया तो कह उठी-
पायो री मैंने राम रतन धन पायो
वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरू कर किरपा अपनायो |
बाबा जी अनेक बार मीराबाई के इस काव्यांश का उपयोग करके मानव मात्र को प्रेरित करते थे |हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में आयोजित विशाल सत्संग समारोह में ब्रह्म की प्राप्ति का आह्वान करते हुए उन्होंने कहा-मानव जन्म प्राप्ति के बाद यह बहुत जरूरी काम है कि इस मालिक निरंकार प्रभु से नाता जोड़ा जाये |संसार के बड़े-बड़े काम करके यह न मान बैठो कि बड़े बड़े काम कर लिये हैं |बड़ी बड़ी उपलब्धियाँ हासिल करने के बावजूद बुल्ले शाह जैसे सन्त तुझे कहेंगे कि-
अभी एड्डा तेरा कम कूड़े
की कर लेना उस दम कूड़े
जब घर आये मेहमान कूड़े
अभी तो तुझे बहुत काम करना है |बहुत महत्वपूर्ण काम अभी बाकी है |जब यमदूत आ जायेंगे तो तब वह काम हो न सकेगा |तब तो तेरी आत्मा का निर्णय होना है |उस समय कोई अतिरिक्त समय नहीं मिलेगा,कोई दलीलें नहीं चलेंगी इसलिए इस काम को अभी कर ले | महात्मा कहते हैं-
काल करेंदे हज नू , चिंता बाज पये
अचानक ही जैसे बाज झपट्टा मारता है,यमदूत आकर खड़े हो जायेंगे |इसलिए इस मालिक-खालिक की पहचान करना बहुत जरूरी है | इसीलिए महात्मा कहते हैं-
करूँ बिनंती सुन मेरे मीता सन्त टहल की बेला
इहाँ खाट चलो हरी लाहा आगे वसन सुहेला |
आगे का सामान अर्थात परलोक को संवारने का इंतजाम भी इसी लोक में करना होगा |
लोक-परलोक को संवारने की दोहरी जिम्मेदारी
परलोक संवारना है तो उसके लिए भी कदम इसी लोक में उठाने पड़ेंगे |इसी लोक में यह कदम उठा ले ताकि परलोक भी सुहेला हो जाए |इसी के लिए आगाह करते हुए महात्मा कहते हैं-
जे दाज विहूनि जाएगी तो पी को किवें रिझाएगी
कुझ लै फकीरां दी मत कुड़े
की कर लैणा उस दम कुड़े
जब घर आये मेहमान कुड़े |
दाज यानी सच्ची दौलत की बात हो रही है कि यदि इसके बिना गयी तो इसलिए तू सन्तों-महात्माओं की मत ले ले |सन्तों के पैग़ाम को सुना-अनसुना मत कर |
लापरवाही का परिणाम
सन्तों-महात्माओं की बातों को,पैग़ाम को नज़रअंदाज़ करना बहुत भारी पड़ेगा इसलिए प्रभु से नाता जोड़ने का यह काम कर ले |इस कदम को उठा ले |जब इस प्रभु की प्राप्ति हो जाती है तो धन्य हो जाते हैं |तब वास्तव में भाग्य खिल उठते हैं कि जिस काम के लिए आये थे,वह काम हो गया | इस मक़सद को पूरा कर लिया गया |आत्मा को इस मालिक की पहचान हो गयी |आत्मा ने अपने मूल को जान लिया |इस प्रकार जहाँ आत्मा का कल्याण हुआ वहां लोक की यात्रा जो हम तय कर रहे हैं ,उसका भी महत्व बन जाता है क्यूंकि अब यह यात्रा जाग्रति के अंतर्गत तय होगी |
ब्रह्मज्ञान से जीवन में जाग्रति
कोई व्यक्ति अंधकार में चल रहा हो,और दूसरा व्यक्ति उजाले में चल रहा हो तो अंधकार में चलने वाला ठोकरें भी खाता है और भ्रम में भी रहता है |इसके विपरीत जो उजाले में चलता है उसको सब कुछ ठीक -ठीक नज़र आता है |जब ज्ञान उजाला मिल गया तो बाकी सफर ज्ञान के उजाले में तय होगा |अब इसने जीवन को सही रूप दे दिया |अब हम सही ढंग से सही दिशा में जा रहे हैं |अब हमारी जीवन यात्रा प्रेम और भाईचारे से तय हो रही है |
जाग्रति का कारण
जीवन में जो ज्ञान की ज्योति जली तो उसने केवल आत्मा के भ्रम को ही नहीं मिटाया बल्कि इसने मन के भ्रमो को भी मिटा दिया |मन के भ्रम ऐसे मिटे कि दीवारें गिर गयीं |जाति- पाँति ,मज़हब-ओ-मिल्लत की दीवारें गिर गयीं |तेरे-मेरे का भाव मिट गया |इस प्रकार मानवता की डगर पर चलते हुए अपने लिए और औरों के लिए भी सुखदायी होते चले गए |यह उजाला प्राप्त कर लेने से जीवन यात्रा सुखद होती चली जाती है |
जीवन में बेहतरी के लिए क्रांति
दुनिया में अनेकों क्रांतियां घटित हुई हैं-उनके बाद कितने ही कार्य आसान होते चले गए |जब औद्योगिक क्रांति हुई तो इसके कारण कितनी ही मशीनरी,संचार (communication ) और transportation (यातायात )के साधन |कृषि में क्रांति हुई तो खेती में इजाफा हुआ |कितने ही ऐसे पहलू हैं जिन्होंने हमें सुविधाएँ दीं |कहीं Green Revolution (हरित क्रांति)तो कहीं White Revolution (दुग्ध क्रांति )कितनी ही क्रांतियां हुईं जिन्होंने हमारे जीवन के काम कुछ आसान कर दिये |
ऐसी क्रांति घटित हो जाने के बाद जीवन में कुछ सरलता हुई लेकिन अंधकार से उजाले में आने की क्रांति जब हमारे जीवन में घटित होती है तो अज्ञानता का अंधकार ज्ञान के उजाले में परिवर्तित हो जाता है |नफरत का स्थान प्यार ले लेता है |हृदय में प्रेम बसता है तो हम नफरत की आग में नहीं जलते हैं |फिर जाती-पाँति की,मजहब-ओ-मिल्लत दीवारें गिर जाती हैं | अब रंग-नस्ल के आधार पर कोई घृणा का भाव नहीं रहा |
इतिहास में रंग-नस्ल के आधार पर घृणा का अस्तित्व
इतिहास में हमने रंग-नस्ल के आधार पर घृणा का व्यवहार होते देखा है |किस प्रकार गोरी चमड़ी वाले काली चमड़ी वालों के साथ दुर्व्यवहार करते रहे |दक्षिण अफ्रीका की मिसाल ,जहाँ नेल्सन मंडेला का नाम बार-बार आता है |कितना भेदभाव वहां रहा है जहाँ महात्मा गाँधी जी के साथ भी उनकी चमड़ी के आधार पर दुर्व्यवहार किया गया |उन्हें east (पूरब ) से आया जानकर दुर्व्यवहार किया गया और उनके मन में प्रतिवाद का भाव पैदा हुआ और फिर आज़ादी का आंदोलन भी पनपा |उसके लिए तप -त्याग -जतन आरम्भ हो गये | रंग-नस्ल के आधार पर भेदभावों को देखकर यहाँ जाग्रति की ज़रुरत महसूस की जा रही है |
कैसी क्रांति चाहिए
प्रेम की क्रांति की बात यहाँ की जा रही है |जब अंधकार रोशनी में परिवर्तित हो जाता है तो नफरत प्रेम में परिवर्तित हो जाती है | फिर-
ना कोई वैरी ना ही बेगाना
सगल संग हमको बनि आयी |
फिर कोई पराया या बेगाना नहीं रहता |जब सब अपने ही हैं तो उनके साथ तो फिर उनके साथ बदसुलूकी करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता |जैसे किसी शायर ने कहा है-
किसको कैसे पत्थर मारूं कौन पराया है,
शीशमहल में हर इक चेहरा अपना लगता है |
जब कोई पराया ही नहीं तो हमारी सबके साथ बन आती है |इस स्थिति में अपनत्व का भाव मजबूत हो जाता है |एकत्व में स्थापित हो जाते हैं |इसी एकत्व के कारण अपनत्व बढ़ जाता है |
इस स्थिति में किसे दुत्कारा जाये सबके साथ अपनेपन के व्यवहार की ही गुंजाईश बचती है |पहले हर किसी के नुकसान की ही कामना करते थे |अपने मजहब और जाति को ऊंची और दूसरे के मजहब और जाति को नीची समझते थे अर्थात अभिमान भी करते थे और नफरत भी |इस प्रकार यह क्रांति घटित हो गयी,बदलाव आ गया |यह बदलाव बेहतरी के लिए है |जैसे वो पंक्ति भी है-Change for betterment .
बेहतरी के लिए परिवर्तन जरूरी
परिवर्तन अच्छाई के लिए होना चाहिए |ऐसा नहीं कि उजाला ,अन्धकार में तब्दील हो जाये |अगर थोड़ी बहुत सहनशीलता है तो वह भी ख़त्म हो जाये |यह परिवर्तन बेहतरी के लिए नहीं है |परिवर्तन हो भलाई के लिए |इसी के लिए सन्त-महापुरुष प्रेरणा देते आ रहे हैं |ऐसे परिवर्तनों से ही जीवन में निखार आता है |फिर हम औरों के लिए भी सुखदायी हो जाते हैं |फिर हम किसी के भी लिए दुखदायी नहीं होते |फिर हम दूसरों को आँसू नहीं देते | फिर हम दूसरों के होंटों को हँसी प्रदान करते हैं |हम औरों के चेहरों पर मुस्कुराहट लाते हैं | आज हम दूसरे को धक्का देकर गिराने में यकीन नहीं रख रहे हैं |अब हम गिरे हुए को उठाने में महत्व महसूस करते हैं |इस प्रकार परिवर्तन आ गया |कहाँ दूसरे को छलनी करने में यकीन रखते थे और अब सोचते हैं मरहम का रूप बन जाएँ |जख्मो को भरते चले जाएँ |
क्या यह बदलाव बुरा है ?
ज़रा सोचें कि क्या यह बदलाव बुरा है ?क्या यह गलत है ?
हाँ,वे लोग जरूर इसे बुरा मानते हैं,जो अंधकार से प्यार करते हैं | जो अज्ञानता में विचरण करते हैं,उनको यह बदलाव पसन्द नहीं आता इसलिए उन्होंने ईसा मसीह जी को सूली पर चढ़ाया |हजरत मुहम्मद साहब के परिवार को प्यासा मारने की कोशिश की |कइयों को गर्म तवे पर बिठाया |मीराबाई के पास ज़हर का प्याला भेजा |उनको यह प्रिय नहीं है |जैसे कहते भी हैं कि-
पापी भगत न भावै, हरी पूजा न सुहाय
माखी चन्दन पर हरे जहाँ विगंध तहाँ जाय
उनको यह बदलाव पसन्द नहीं आता |इसके विपरीत जो सज्जन प्रवृत्ति वाले हैं ,वे ऐसे बदलाव का हमेशा स्वागत करते हैं |ज़रुरत इसी की है |
दुनिया में जो हो रहा है,क्या इससे किसी को राहत मिल रही है ?सुकून-ओ-चैन मिल रहा है ? मासूमो की जाने ली जाती हैं |जिस तरह विस्फोटों का इस्तेमाल किया जाता है,जंगें होती हैं -
जंग मगरिब में हो या मशरिक में--जंग east (पूरब ) में हो या west (पश्चिम )में ,अमन-ओ-आलम का नुक्सान तो है ही |संसार का अमन नष्ट हो ता है |इस प्रकार अशांति से संसार का अमन नष्ट हो रहा है |इस प्रकार हम जो कुछ भी संसार में देख रहे हैं ,हिंसक प्रवृत्तियां कितनी हमें देखने को मिल रही हैं |इंसान ज़रा सी बात पर हिंसक हो जाता है |वाणी के द्वारा भी और व्यवहार में भी हिंसक हो जाता है |इस तरह का वातावरण जब संसार में हम देखते हैं उसके परिपेक्ष्य में अपनत्व का व्यवहार मुबारक है |इसके अंतर्गत हिंसक की बजाय अहिंसक हो रहे हैं |दिलों को दुखाने की बजाय दूसरों को राहत दे रहे हैं |उजाड़ने की बजाय बसाने का योगदान दे रहे हैं |दीवारें खड़ी करने की बजाय पुल बना रहे हैं |
दीवारें नहीं पुल ज्यादा जरूरी
लोगों के बीच जाति-पाँति ,धर्म-मजहब,अमीर -गरीब आदि अनेक प्रकार की दीवारें हैं,जिनके कारण दूरियां हैं |बीच में जैसे ही ब्रह्मज्ञान आ जाता है तो दूरियां ख़त्म हो जातीं हैं,दीवारें गिर जातीं हैं |पुल के द्वारा लोग एक-दूसरे के निकट आते जा रहे हैं |जो कल तक दीवारें बना रहे थे,आज पुल बना रहे हैं | यही शुभ लक्षण है |
मिशन के जो अनेकों नारे हैं उनमें से एक यह भी है-World ,without walls (वैर-घृणा की तोड़ दीवारें ,प्यार के पुल बनाते जाएँ )दो और तीन जुलाई को जब दास कनाडा के कैलगरी में था ,तो वहाँ यूथ कॉनफेरेन्स में यही theme (केंद्रीय विचार )ली गयी थी ,वहाँ जन्मे -पले नौजवान इसी पहलू को सामने ला रहे थे कि इस धरती पर दीवारों की नहीं विशालता की ज़रुरत है |पुल बनते हैं तो इधर वाला उधर जाता है और उधर वाला इधर आता है |बीच में जाकर दोनों मिल जाते हैं |अगर पुल न हो तो पहला -एक किनारे पर दूसरा -दूसरे किनारे पर |दीवार खड़ी होगी तो एक-दूसरे को देख भी नहीं पाएंगे |
कल तक दीवारें खड़ी करने में यकीन रखते थे लेकिन अब पुल बनाने में लगे हैं |यही क्रांति आज दुनिया को चाहिए |जो यह कार्य करते हैं,वाकई इस धरती के लिए वरदान हैं |वही सच्चे धर्म की पहचान बनते हैं |
सच्चा धर्म क्या है ?
यही तो है सच्चे धर्म की पहचान कि सब एक-दूसरे के निकट आएं |अगर वो इसके विपरीत देन दे रहा है तो धर्म कहलाने का हक़दार नहीं है |सच्चा धर्म तो वही है जो हमें हकीकत में स्थित कर दे |जो एक इंसान को दूसरे से मिला दे |आत्मा को परमात्मा में स्थित कर दे |लेकिन धर्म आज जो रूप धारण कर चुके हैं ,उनकी लगातार हम चर्चा भी करते हैं,देख भी रहे हैं और उनकी तपिश हम महसूस भी करते हैं कि किस प्रकार धर्म के नाम पर आज प्रेम की बजाय नफरत दिलों में भरी जा रही है |जो दूरियाँ पैदा करता चला जा रहा है वो धर्म हरगिज नहीं हो सकता |जो दिलों में नफरत भरते हैं वे धार्मिक हो ही नहीं सकते |दशकों से,शताब्दियों से लोग गलतफहमियों में जी रहे हैं,जो इस तरह का व्यवहार करके भी अपने आपको धार्मिक मान रहे हैं |जो छोटे -छोटे मासूम बच्चों की जाने लेकर भी खुद को धार्मिक समझ रहे हैं वे बहुत बड़ी गलतफहमियों में जीते चले जा रहे हैं |जानते नहीं हैं कि ज़न्नत मिलनी है या दोज़ख की आग में जलना पड़ेगा | जो सच्चा धर्मी होता है उसकी पहचान ही है Positive Aspect (सकारात्मक दृष्टिकोण )|प्यार वाले ,भाईचारे वाले, मिलवर्तन वाले पहलुओं को अपनाना |
धर्म का नकारात्मक पहलू
वही पहलू जीवन में मजबूत हो-प्यार वाला,हलीमी वाला,अपनत्व वाला |यही गुण जीवन में सच्चे धर्म की पहचान बनते हैं |संसार में धर्म जो रूप ले चुके हैं,वे तो हमें कहीं का भी नहीं छोड़ रहे |वो और ज्यादा अंधकार में धकेलते जा रहे हैं |उनकी देन के सन्दर्भ में तो पंजाबी की ये पंक्तियाँ दास कई बार पहले भी दोहरा चुका है|
एक इंसान दरी के ऊपर बैठा हुआ और ऊपर से लोई ओढ़ी हुई |एक इंसान आया और उसके नीचे से दरी खींचने लगा |वह ऊपर से उसकी लोई उतार रहा है तो वह इंसान दरी और लोई को पकड़ रहा है,और कह रहा है-
एह की करी जान्ना ए ,
एह की करी जान्ना ए ,
लाई लोई जान्ना ए,खिच्ची दरी जान्ना ए
जिसकी दरी और लोई है वो परेशान होकर कह रहा है कि धर्म यह कर क्या रहा है |
धर्म का काम इंसान को इंसान से मिलाना था लेकिन उन्होंने मजहब-ओ-मिल्लत ,जाति-पाँति की दीवारें खडी कर दीं |इस प्रकार इस धरती को पलीत करने के लिए इंसानो को प्रेरित किया |जैसे सच्ची दौलत की बात हुई,सच्चे धर्म की बात हुई |हमें सच्चे धर्मी होने की पहचान बनानी है यह तब होगा जब हम प्रेम-करुणा-दया के भाव से युक्त हो जायेंगे |हम इस धरती को स्वर्ग का रूप बनाने में जुट जायेंगे |