धर्म के इतिहास में भाई कन्हैया जी को उनकी सेवाओं के लिए बहुत सम्मान से याद किया जाता है |वे गुरुगोबिंद सिंह जी के गुरसिख थे और सैनिकों को पानी पिलाते थे |
कुछ गुरसिखों ने एक बार गुरु साहब से शिकायत की कि-
कन्हैया दुश्मन के सैनिकों भी पानी पिलाता है |गुरु साहब ने कारण पूछा तो भाई कन्हैया जी ने बताया-हुजूर ,आपकी सर्वसांझीवलता की शिक्षाओं को मैं खुद से अलग नहीं कर पाता |आपकी शिक्षाएं मुझे यह देखने ही नहीं देतीं कि-कौन अपना है और कौन पराया ?
रक्षाकर्मियों की दृष्टि से सचमुच यह बहुत बड़ी गलती थी लेकिन गुरु साहब ने भाई कन्हैया को अपराधी नहीं माना बल्कि उन्हें आदेश दिया कि-उनके ज़ख्मो पर मरहम भी लगा दिया करो |
सिख धर्म कहता है -
ना कोई बैरी ,ना ही बेगाना
सगल संग हमको बनि आई |
धर्म की वास्तविकता यही है लेकिन इस समय धर्म का जो रूप है,सचमुच बहुत खतरनाक है |गुरु गोबिंद सिंह जी शरीर में थे तो उन्होंने धर्म की वास्तविकता को सुरक्षित रखने का आदेश दे दिया लेकिन ऐसा बड़े दिल का सतगुरु जब शरीर में नहीं होता तो धर्म राजनीति के मैदान की फुटबॉल बन सकता है |
श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं-
संत ह्रदय नवनीत समाना अर्थात
संतों का हृदय मक्खन के समान होता है|
लेकिन दुर्भाग्य देखिये कि आज एकदम विपरीत अवस्था है |सन्तों के ऊपर जैसे राजनीति हावी हो गयी है |यह किसी एक धर्म की विडंबना नहीं है |
कुछ महीने पहले दिल्ली में ,जहाँ किसान कृषि कानूनों के विरोध में अहिंसक प्रदर्शन कर रहे थे (जैसा मुझे ध्यान आता है)वहां भी एक युवक की धर्म की बेअदबी के सवाल पर हत्या हो गयी थी |
कोई भी इंसान एक परमेश्वर की ही रचना है और यह रचना जब खंडित कर दी जाये तो उसे जोड़ने की क्षमता किसी में नहीं है |
मुझे एक लोकप्रिय गीत की पंक्ति याद आ रही है,जिसमें नायक कहता है -
लेकिन जो पापी न हो वो पहला पत्थर मारे |
भगवान राम पम्पासरोवर पर जब शबरी की कुटिया में गये तो आस-पास रह रहे ऋषि -मुनियों को लगा कि यह धर्म की बेअदबी है ,जो भगवान राम उनके आश्रमों से पहले नीच जाति की स्त्री की कुटिया में जा रहे हैं लेकिन गुरु-पीर,पैगंबर-अवतारों की सोच जनमानस से भिन्न होती है ,इसलिए श्रीराम जी शबरी की कुटिया में न सिर्फ गये बल्कि उसे नवधा भक्ति का ऐतिहासिक उपदेश भी दिया |
धर्मप्रेमियों को सोचना चाहिए कि क्या वे गुरु साहब के सच्चे अनुयाई हैं ?
- रामकुमार सेवक