प्रगतिशील विचारक - डॉ.सर मुहम्मद इक़बाल

 -रामकुमार 'सेवक'

डॉ.मुहम्मद इक़बाल महान शायर थे |यह शेअर,जिसका मैंने अनेकों बुजुर्गों के सम्मान में इस्तेमाल किया है -

हज़ारों साल नरगिस अपनी बेनूरी पे रोती है ,

बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा  |

उन्हीं का लिखा हुआ है |

उनका एक और शेअर देखें-

मस्जिद तो बना दी शब् भर में ,ईमान की हसरत वालों ने

मन अपना पुराना पापी है ,बरसों में नमाजी बन सका |

तथा   

इक़बाल बड़ा उपदेशक है मन बातों से मोह लेता है

गुफ़्तार का यह ग़ाज़ी तो बना ,किरदार  का ग़ाज़ी बन सका |

अध्यात्म के पूर्वी और पश्चिमी रूप का समन्वय करते हुए उन्होंने फ़रमाया-

जीवन दृष्टि के बतौर तो यूरोप का भौतिकतावादी दर्शन पूरब की आध्यात्मिक ऊंचाई का मुक़ाबला नहीं कर सकता लेकिन जो आधुनिक दृष्टि पश्चिम के पास है उसे अपनाये बिना पूरब के लोग अपनी जड़ताओं से नहीं उबर सकते |

मातृभूमि के प्रति उन्हें इतना प्रेम था कि गौरव से लिखा-

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा 

हम बुलबुलें हैं इसकी ,ये गुलिस्तां हमारा |

वर्ष 1938  में वे इन्तेकाल फरमा गए जबकि विभाजन उनके इन्तेकाल के नौ वर्ष बाद अस्तित्व में आया |राम जी पर भी उनकी ग़ज़ल है और गुरु नानक देव जी पर भी |इस हिसाब से मुझे लगता है कि वे धर्मो-सम्प्रदायों की सीमाओं से बहुत ऊपर थे |वे एक प्रगतिशील विचारक थे जैसा कि दुनिया भर के विद्वान उन्हें मानते हैं |