हास्य व्यंग्य - अंडरवर्ल्ड के भाई से भी ज्यादा ताक़तवर है मच्छर

से यूँ भी कह सकते हैं कि मच्छर हर किसी के लिए अंडरवर्ल्ड का सरगना यानी कि भाई है |और आजकल भाई होना सूर्पणखा के भाई से भी ज्यादा खतरनाक है |

भाई होना कितना भयानक है इसे तो वही बता सकता है जो (गलती से भी अगर )भाई के सामने पड़ गया |

 मुंबई में जो रहते हैं वे भली भाँति जानते हैं कि अंडरवर्ल्ड का  सरगना होना कितना खतरनाक  है |यह ख़तरा आजकल दिल्ली के आकाश पर भी मंडरा रहा है |दिल्ली तो भारत की राजधानी है फिर भाई के खतरे के मामले में भी पीछे क्यों रहे |

क्या अमीर क्या गरीब मच्छर ने हर एक की नींद खराब कर राखी है |गरीब आदमी को अक्सर दो वक़्त की रोटी का जुगाड़ करने से ही फुरसत नहीं मिलती |इसके बावजूद उसे आजकल डेंगू से  बचाव का भी जुगाड़ करना पड़ रहा है|

गर्मी का मौसम है और उस पर नीम के पत्तो का धुआ |सोना तो उसके पास कभी था ही नहीं लेकिन  अब रात को सोना भी उसके लिए आसान नहीं रहा|घर पहुंचकर चैन से बैठते ही सोने की सूझती है लेकिन जैसे ही आँख मूँदता है -मच्छर का अंतर्राष्ट्रीय गान शुरू और गरीब का सोना ख़त्म |

मच्छर वाकई बहुत खतरनाक है |सुबह का घूमना शुरू से ही मुफीद बताया जाता रहा है |हमारे पिताजी बहुत सुबह उठा करते थे और उठते ही  नए- नए किस्म के हुक्मनामे जारी किया करते थे |उनमें से एक यह भी होता था -ज्यादा देर सोया मत करो |सुबह सूरज निकलने से पहले घूमने जाया करो |

मोहल्ले के जितने लड़के थे सबके पिता जब ऐसे हुक्मनामे जारी करने में खूब परफेक्ट हो गए तो हम सब लड़कों को नींद का गला घोंटकर उठना पड़ा और किसी प्रकार  घूमने जाना ही पड़ा |

मगर सर मुंडाते ही ओले पड़े |मेरा  स्कूल सुबह का था और हम लेट होने शुरू हो गए |परिणाम यह हुआ कि प्रिंसिपल साहब रोज गेट पर खड़े मिलते और नित्य डंडों से मेरा स्वागत होता |यह अनुशासित गुंडागर्दी भी कई साल चली |

अब तो पिताजी को स्वर्गवासी  हुए वर्षों बीत चुके हैं |प्रिंसिपल साहब भी वहीं कहीं दंड बैठक लगवा रहे होंगे लेकिन पिता जी का रोज घूमने का हुकमनामा मुझे पिछले दिनों याद आ गया और मैंने सुबह की सैर करनी शुरू कर दी |

हमारे बचपन में हमारे कस्बे में बहुत सारे बाग़ थे लेकिन अब तो बाग दिल्ली के आराम बाग में ही हो सकता है |

मुसद्दी लाल जी मेरे बगल में ही खड़े थे -मुझ पर एहसान करते हुए बोले-तुमको सरकारी नौकरी किस लोफर ने दे दी |तुम्हें तो यह भी पता नहीं कि आरामबाग में कोई बाग नहीं सरकारी क्वार्टर हैं |     

मुसद्दी लाल जी की बात सुनकर मुझे अक्ल आयी कि दिल्ली में आजकल बाग तो कॉलोनियों के नामो के साथ ही पढ़ने -सुनने को मिलते हैं |जैसे हमारे  पड़ोस में एक गुलाबी बाग है |किसी साथी ने जब बताया -गुलाबी बाग तो जैसे दफ्तर की हर सीट पर गुलाबी रंग के फूल खिल गए लेकिन दफ्तर का चपरासी मांगेराम तीन बजते ही पीनी शुरू कर देता था |यह ध्यान आते ही ख्यालों के फूल तुरंत मुरझा जाते थे |

मैने अंदाज़ा लगाया कि वहां गुलाबो नाम की बुढ़िया जरूर रहती होगी लेकिन दिल्ली में बुड्ढे -बुढियों का कोई भविष्य नहीं |

सच्चाई यह है कि यहाँ तो नाम के ही बाग हैं |मुद्दे की बात यही है कि कुछ दिन पहले तक जहाँ मैं घूमने जाता था वहाँ भी सिर्फ मिटटी ही है |बाग तो क्या वहां  तो पेड़ भी नहीं है | 

हमारी कॉलोनी का बॉर्डर जहाँ ख़त्म होता है,वहां एक गन्दा नाला बहता है |उसका बहना बहुत जरूरी है चूंकि बदसूरत क्या खूबसूरत औरतें भी जो खाती -पीती हैं उनका मल भी उसी में विसर्जित होता है |

साथ ही कॉलोनी में जितने भी डॉक्टर ,कम्पाउण्डरऔर झोलाछाप हैं उनके कल्याण का मंत्रालय भी इसी नाले से संचालित होता है |

अन्य डॉक्टरों के कल्याण के लिए भी भगवान ने जिन मच्छरों की उत्पत्ति करनी होती है,वे भी इसी  नाले के किनारे पर अवतार लेते हैं |नतीजा यह होता है कि डेंगू मदमस्त होकर धींगामस्ती करता रहता है |वह अकेला ही मस्ती नहीं करता बल्कि उसके छोटे भाई मलेरिया और दूसरे छोटे- बड़े वायरल बुखार भी वहाँ मेरे जैसे निरीह नागरिकों के साथ गुंडई करते रहते हैं |

बॉर्डर पार करते ही जो शांति क्षेत्र है वहाँ दिन दहाड़े अपराध होने की परंपरा अभी  शुरू नहीं हुई है इसलिए सुबह के वक़्त पूर्ण शांति रहती है|

ऑक्सीजन का शांतिपूर्ण विस्फोट मौन स्वर में चलता रहता है |

उसके आवेगमें मच्छरों की तरफ जरा भी ध्यान नहीं रहता |यही कारण है कि सुबह होते ही कदम नाले का बॉर्डर पार करने को यूँ तत्पर हो जाते हैं जैसे वहाँ नयी राशन की दुकान खुली हो |भीड़ बिलकुल न हो और राशन मुफ्त बँट रहा हो |  

चूंकि उस समय घरवाली साथ नहीं होती तो किसी किस्म का खौफ भी नहीं होता इसलिए पिताजी का हुकमनामा कुछ ज्यादा ही अर्थपूर्ण नज़र आता है और कदम उस तरफ इस तरह गतिशील हो जाते हैं जैसे कोई फैशन परेड हो रही हो या नौटंकी का कोई नाच चल रहा हो |सुबह की सैर नए नए अर्थ देने लगती है |

चूंकि घरवाली साथ नहीं होती तो मोबाइल पर भी बेखौफ बात कर सकते हैं अन्यथा घंटी हमारे मोबाइल पर बजती है और घरवाली का पहला ही सवाल यह होता है कि किससे बात कर रहे हो ? दहाड़ सुनकर मेरी सिट्टी-पिट्टी यूँ गुम हो जाती है जैसे लाला की दुकान में सैंपल भरने वाले अफसर आ गए हों |

आजकल के पति उतने दिलेर नहीं होते जितने हम लोगों के पिताजी हुआ करते थे |शेरनी की दहाड़ सुनकर पति फ़ौरन मिमियाने लगता है |चरित्र की पूरी सुरक्षा करने के बावजूद ऐसा लगने लगता है कि कहीं कोई ऐसी हरकत तो नहीं हो गयी हो जो महोदया को नागवार गुजरी हो |खुद पर ही चरित्रहीन होने का शक गहराने लगता है |

ऐसे खतरनाक दौर में काली मिट्टी के खुले मैदान की खुली सैर बहुत राहत प्रदान करती है |

वक़्त वक़्त की बात है |रात को बारह बजे भी सरकार महंगाई  बढाती रहती है |वक़्त ऐसा आया कि शाम को जैसे ही दफ्तर से घर लौटा कि कंपकंपी शुरू हो गयी |शेर से मीलों दूर होने के बावजूद मैं यूँ कांपने लगा जैसे आस पास पालतू बाघ घूम रहा हो |

शरीर यूँ बेजान हो गया हो जैसे  दूर के किसी गांव में ट्रांसफर हो जाये | और अंततः बच्चों ने मुझे हस्पताल में ले जाने का फैसला कर लिया और तुरंत वहां पहुँचाया |

जान पर खतरा था क्यूंकि डॉक्टरों ने बताया कि डेंगू हो गया है |

मुझे मन में ख़ुशी भी हो रही थी कि सी. जी .एच .एस. की कटौती के तौर पर हर महीने तनख्वाह में से   लगभग एक  हज़ार रूपये कट जाते हैं जबकि शरीर स्वस्थ रहता है |अब मौका आया है उस कटौती को वसूल करने का |अस्पताल के प्राइवेट वार्ड के डॉक्टरों और नर्सों  की सेवाएं लेने का |

पैसे वसूलने का मौका तो आया ,यह संतोष था |तिमारदारी में लगी नर्स अगर खूबसूरत भी हुई तो और बढ़िया रहेगा |लेकिन हम खुद ही खूसट हैं तो नर्स खूबसूरत कैसे मिलती |

बहरहाल नर्सों और डॉक्टरों की सेवा और अपनी बीवी द्वारा रखे गए करवा चौथ के व्रत के प्रताप से पांचवे ही दिन हम अस्पताल  से घर लौट आये |

लेकिन घरवाले डरे हुए हैं कि सुबह का घूमना बंद |

शुक्र है बीमार हुए तो ठीक भी हो गए |मैं नाले के उस पार ऑक्सीजन के आकर्षण और मोबाइल फोन पर खुली बातचीत करने के लोभ में जाने वाले अन्य लोगों के बारे में सोच रहा हूँ कि वे तो मच्छर के कोपभाजन न बनें और स्वस्थ रहें |  

-औघड़नाथ