अत्याचारों का इतिहास बहुत लम्बा है |यदि पौराणिक और धर्मशास्त्रों में वर्णित अत्याचारों को छोड़ भी दें तो भी वर्तमान इतिहास के प्रमाण भी अत्याचारों की करूँ कहानी प्रमाणित करने के लिए काफी हैं |इतिहास की गहराई में उतरे बिना भी अत्याचारों के साक्षी हमें बनना पड़ता है चूंकि उनसे लड़ने की क्षमता हममें प्रायः नहीं होती |
कुछ ही वर्ष बीते हैं जब हमने निर्भया के प्रकरण पर चूहे -बिल्ली का खेल देखा |हमने वो दौर भी देखा जब अपराधियों का वकील पीड़ितों पर भारी पड़ रहा था और पीड़ित की माँ को धमका रहा था |ऐसे दुस्साहसी वकीलों के रहते अपराधी बेलगाम क्यों न हों |
परसों ही मुंबई में 34 वर्षीय महिला को वही यातनाएं दी गयी हैं जो निर्भया को दी गयी थीं |मुझे किसी कवि की यह पंक्ति याद आ रही है कि-जितने भी अत्याचार हैं ,सब सभ्य आदमी के आविष्कार हैं |
यह कितना बड़ा विरोधाभास है कि अत्याचारी भी है और सभ्य भी है |
इस सभ्यता के अस्तित्व पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए |
सिर्फ एक मामला नहीं है जो हमें हिलाकर रख देता है बीच में हैदराबाद की डॉक्टर पर हुए अत्याचारों का मामला भी सुर्ख़ियों में रहा |आजमगढ़ और हाथरस की पीड़िताएं भी दिमाग से ओझल नहीं हुई हैं लेकिन कानून की भूमिका पर विचार होना चाहिए कि बेशर्म लोगों को कानून कितना रोक सकता है |
वे छह आदमी थे ,जिन्होंने 18 दिसंबर 2019 को मानवता को शर्मसार किया |वह एक ऐसी घटना थी जिसने हमें यह सोचने पर विवश कर दिया था कि इंसान कहाँ तक गिर सकता है |लोग सडकों पर उतरे लोगों ने,विशेषकर लड़कियों ने मोमबत्ती जुलूस निकलकर न्याय की मांग की |लेकिन न्याय मिलना आसान नहीं है कठिनता का सामना करने के बावजूद न्याय मिलना कहाँ संभव हो जाता है |
सोचकर देखिये ,18 दिसंबर 2019 से एक दिन पहले तक वह दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज में मेडिकल की पढाई कर रही थी |
दिल्ली के किसी प्रतिष्ठित कॉलेज में मेडिकल के किसी विषय में प्रवेश मिलना आसान नहीं है |उसने अपने सपनो को सच करने के लिए कठिन परिश्रम किया होगा |
उन छह लोगों ने उसकी निजता को ख़त्म किया |एक स्त्री होने नाते जो उसकी प्रतिष्ठा थी उसे रोंद दिया |उसके बाद उनकी गिरावट थम नहीं गयी बल्कि उसका शरीर जो परमेश्वर की रचना है उसे क्षत-विक्षत कर दिया |
इन छह लोगों में एक तो कम उम्र के कारण बिलकुल छूट गया |एक ड्राइवर था रामसिंह,उसने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली |यदि उसने आत्मग्लानि के कारण आत्महत्या की तो हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है |
लेकिन बचे हुए चार अपराधियों को मौत तक पहुँचाने के लिए न्यायालय ने क्या-क्या जलवे नहीं देखे |अपराधियों का वकील अपराधियों को बचाने के लिए जी-जान से लगा था |वह निर्भया की माँ को धमकी दे रहा था कि अपराधियों को फांसी कभी नहीं होगी |
फांसी लगने से एक दिन पहले उसने एक अपराधी की पत्नी की ओर से यह प्रार्थना डाली कि उसके पति ने जो जघन्य अपराध किया है,उसके कारण मैं उसकी विधवा कहलाते हुए जीना नहीं चाहती इसलिए उसे फांसी न दी जाए |
कमाल का वकील था जिसे निर्भया अर्थात पीड़िता और उसके परिवार से जरा भी सहानुभूति नहीं थी |
छह लोगों में एक विनय कुमार शर्मा भी था |उसके पक्ष में सोशल मीडिया पर अभियान भी चलाया गया |तर्क था कि यदि विनय कुमार शर्मा को फांसी दी गयी तो ब्रह्महत्या का पाप हो जायेगा |न्यायालय को यह पाप नहीं करना चाहिए |
ब्रह्महत्या की दलील देने वाले लोगों की हमदर्दी अपराधी से थी क्यूंकि वह ब्राह्मण था |जबकि धर्म का मूल है दया और यदि अपराधी में दया का लेश मात्र भी रहा होता तो वह ऐसा जघन्य अपराध न करता जिसने देश की बदनामी पूरी दुनिया में करवा दी |
यह एक ऐसा कांड था जिसने क्रूरता का नया रिकॉर्ड बनाया |
उसके बाद 2 फरवरी 2020 को हैदराबाद में एक डॉक्टर के साथ भी ऐसी ही क्रूरता हुई |यद्यपि दिल्ली का उच्च न्यायलय निर्भया केस के अपराधियों को मृत्यु दंड दे चूका था लेकिन हैदराबाद की क्रूरता यह सिद्ध करती है कि मृत्युदंड का भी कोई भय उत्पन्न नहीं हुआ |अपराधियों के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ |
बीते 9 सितंबर को मुंबई के साकीनाका इलाके के खैरानी रोड पर कथित तौर पर बलात्कार के बाद बेहोश पड़ी मिली 30 वर्षीय महिला की शनिवार को शहर के एक अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई।इस महिला के साथ 'निर्भया' जैसी हैवानियत हुई थी। आरोपी ने रेप के बाद महिला का शरीर वैसे ही क्षत-विक्षत किया,जैसे कि निर्भया के साथ किया था |
तीनो केस पढ़कर दिमाग सुन्न पड़ जाता है कि हम कैसे समाज में रह रहे हैं जहाँ नारी को मात्र कामुकता प्रकट करने का माध्यम माना जाता है जबकि भारतीय शास्त्रों में नारी को पूजा का पात्र माना गया है |भारतीय शास्त्रों में कहा गया है-यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ,रमन्ते तत्र देवता |जहाँ नारियों की पूजा होती है,वहां देवताओं का वास होता है |
- रामकुमार 'सेवक'