दो देशभक्ति कवितायेँ


- डॉ. पुष्पेन्द्र कुमार अस्थाना * पुष्प निरंकारी * (वाराणसी)

है आज़ाद वतन पर देखो 

यूँ बदतर हालातों को।

कैसे भूल गये हैं सब

उन भक्तों की सौग़ातों को।

ऐसा कौन किया कब कैसे

क्यूँ रटते इन बातों को।

गर खुशहाल वतन चाहो तो

 दिखलाओ जज़्बातों को।

वैसे आज रही भी तो अब

तेरी पहरेदारी है।

केवल जश्न नहीं आज़ादी

यह तो ज़िम्मेदारी है।।1


सबसे हाथ मिला करके,

सबको अपनापन दिखलाते।

आज़ादी का यही है मतलब

दुर्गुण सब, हैं हट जाते।

जग में प्यार- अमन फैलाते

इस मानवता के नाते।

लेकिन यार सियासत करके

क्या हो आख़िर जतलाते।

है बाज़ार गरम नफ़रत का 

तेरी ये सरदारी है।

केवल जश्न नहीं आज़ादी

यह तो ज़िम्मेदारी है।।२||


प्यारी भूमि हमारी यारों

भारत माता कहलाती।

सारे धर्म व भाषा बोली

वालों को है अपनाती।

सालों-साल ग़ुलामी सहकर

 भी रहती है मुस्काती।

सन्तों पीर वली गुरुओं की

कायम रखती है थाती।

आओ *पुष्प* सजा के रक्खें

यह सुन्दर फुलवारी है।

केवल जश्न नहीं आज़ादी

यह तो ज़िम्मेदारी है।।

-----------------------------

-----------------------------------------

-----------------------------

- मदन शेखपुरी (यमुनानगर)

केवल जश्न नहीं आजादी...


केवल जश्न नहीं आजादी ये तो जिम्मेदारी है,

लाखों शीष चढ़ाए हैं तब जाकर हुई हमारी है। 


आज शहादत उन वीरों की चीख चीखकर कहती है,

उठो लिए अँगडाई तुम भी आज तुम्हारी बारी है। 


मोटर गाडी बंगले वालो हल्के में मत ले लेना,

मोल हमारी आजादी का हर इक शय पर भारी है।


क्यों हिंदू क्यों मुस्लिम को आपस में रोज लडा़ते हो?

आजादी की इस वेदी पर जान सभी ने वारी है।


देकर शीश वतन पे अपना आजादी वो सौंप गए,

उनकी इसी अमानत की अब करनी पहरेदारी है।