रक्षा बंधन पर सूनी कलाई
क्यों है भाई ?
पूछा मैंने किसी मित्र से -
बोला मित्र-कुछ सकुचाकर
कि-हम भला कर सकते हैं -किसकी सुरक्षा ,
जीवन की रक्षा ,
कमजोर हो चुकी है -कलाई
शुगर और ब्लड प्रेशर के कारण
मैंने कहा-क्या कलाई का होना ही काफी नहीं ?
इतनी खूबसूरत परम्परा के हिस्से बनने का आखिर नुक्सान ही क्या है ?
सब प्रभु की दया है -
वह बोला -जो काम कर ही नहीं सकते उसकी गारंटी लेना
मुझे अनैतिक लगता है-
बोला मैं इस सशक्त तर्क को दरकिनार करके
कि -अब से पहले भी हम
सिकंदर या हरक्यूलिस तो नहीं ही थे
और जो राखी बांध रही है ,उसे भी पता है -कि-भैया सर्वशक्तिमान नहीं है
जीवन से तो खुद ही निबटना पड़ेगा
आटे-दाल की महंगाई से
अपने परिवार को साथ लेकर लड़ना पड़ेगा -लेकिन
एक परम्परा है इस एहसास की,
कि-ज़रुरत पड़ने पर भैया -मेरा साथ देंगे ,रुकेंगे नहीं
वे आयेंगे और मेरा मनोबल बढ़ाएंगे
हर समस्या से -मुझे बचाएंगे
देंगे मेरी डूबती किश्ती को सहारा
मझधार में भी नज़र आ जायेगा किनारा |
सुखी हो जायेगा संसार
जब नाव लग जाएगी पार
इस यकीन की रक्षा ही बहन की सुरक्षा है
सिर्फ एक बहन नहीं बल्कि बहनो का समूह
जो कठिनाई में है ,जिसके सपनो के मुरझा गए हैं-फूल
बंद हो गए हैं स्कूल
वे बेशक भारत में नहीं हैं लेकिन
वसुधैव कुटुंबकम-जो भारतीय परंपरा है
उन्हें हम में मिलाती है,
मिलजुलकर जीना सिखाती है |
सुनो -हम परमेश्वर के बच्चे हैं,परमेश्वर नहीं हैं |
समय आता है,समय चला जाता है,
कुछ अपरिवर्तित रहता है और कुछ बदल जाता है -
समय को हम सिर्फ देख सकते हैं ,पकड़ नहीं पाते
हम उसकी रफ़्तार के साथ ,दौड़ने की कोशिश तो करते हैं
लेकिन इतनी जल्दी स्वयं को बदल नहीं पाते,
जीवन में अक्सर संभल नहीं पाते |
सुनो मित्र ,अपनी रक्षा क्या हम खुद करते हैं ?
यदि खुद कर पाते तो -लाचार होकर -एक दिन मर क्यों जाते ?
सुनो-मैं हूँ ना ,
इस शब्द में बहुत सार है-हमारे मनोबल का यही आधार है |
उसे हमारा सहारा हो और हमें उसका
एक दूसरे के मन में गूंजे-मेरा भैया -सब संभाल लेगा
या- मेरी बहना सब संभाल लेगी |
ये शब्द -जो कभी किसी ने प्रत्यक्ष नहीं कहे
लेकिन मन के किसी तल पर -निर्बाध बहते रहे -
यही हमारी जीवन शक्ति है
परमात्मा अनंत ऊर्जा स्रोत है-
नहीं कोई व्यक्ति है
जिसने जन्म दिया है ,वही हम सबका खालीपन भरता है
एक परमपिता सदैव हमारी रक्षा करता है-
इसी को अपना आधार बना लो
और -बहन -भाई के खूबसूरत रिश्ते की,मंगल बेला को सजा लो |
गौरवशाली परंपरा को बचा लो ,
रक्षा बंधन को बचा लो |
- रामकुमार सेवक