लघुकथा - ऐसे दुश्मनो से कौन उलझे?

दिन शुक्रवार का था लेकिन शुक्र की कोई बात नहीं थी |बेटे को कहीं काम जाना पड़ गया इसलिए वह मुझे दफ्तर तक छोड़ने नहीं जा पाया |मुझे लगा कि मैं अभी इतना बूढा तो नहीं हूँ कि बस पकड़कर दफ्तर न जा सकूं और कुछ साल पहले की तरह मैं घर से निकल लिया |

मुझे दो बस बदलनी थी चूंकि सीधी बस मिलने की संभावना इसलिए नहीं थी क्यूंकि कोरोना अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है इसलिए बसें चल तो रही हैं लेकिन सवारियां आधी हैं |खड़ी सवारी ले जाने की अनुमति नहीं है |

पहले वाहन से उतरा और दूसरे स्टैंड पर आ गया |  

बसें पर्याप्त थीं और मैं चढ़ भी गया लेकिन उस बस का रूट परिवर्तित था |बस उस स्टैंड से आगे बढ़ चुकी थी और मुझे उतरना था |

गर्मी इतनी ज्यादा थी कि शरीर शिथिल हो रहा था |मेरे कंधे पर लटका बैग मुझे भारी लग रहा था चूंकि एक लीटर पानी की बोतल भी उसमें थी |

खालसा कॉलेज के पास मैं खड़ा था |वहां कोई स्टैंड नहीं था |नियमानुसार बस ने यहाँ रुकना ही नहीं था लेकिन ट्रैफिक लाइट की वजह से अस्सी प्रतिशत बसें वहां रुक रही थीं |कोई ड्राइवर कंडक्टर यदि दयालु हुआ तो मेरा सफर आसान हो सकता था |

दया -प्रेम-शांति आदि का यह ज़माना नहीं है मुझे पता था लेकिन मुझे आशा थी चूंकि अन्य कोई विकल्प न था |ऐसे में परमात्मा बहुत याद आता है |

बसें रुकतीं लेकिन जैसे ही मैं गेट तक पहुँचता ड्राइवर गेट बंद कर देता |

रहमदिली कहीं दिख नहीं रही थी और आकाश से सूरज दादा पूरी दादागिरी के मूड में थे |

बहरहाल एक बस में चढ़ने में मैं सफल हो गया |

सुरक्षा कर्मचारी ,जो एक स्त्री थी और इस नाते अब तक उससे अब तक सभ्यता की आशा रखी जाती है| उसने सख्ती से कहा-नीचे उतर जाइये ,बस में सीट नहीं है | नियमानुसार वह गलत नहीं थी |

मुझे थकान बहुत ज्यादा थी चूंकि पसीना बहुत टपक रहा था |उस सुरक्षाकर्मी के पीछे से एक बेटी खड़ी हुई और बोली-मैडम,इन्हें बैठ जाने दीजिए ,मैं उतर जाती हूँ |

गाड़ी चल पडी थी और सुरक्षाकर्मी उस बेटी को कह रही थी ,जल्दी नीचे उतरो |

मेरे हृदय से उस बेटी के लिए प्रार्थना निकल रही थी लेकिन मुझे पता नहीं था कि मास्क मेरी नाक से नीचे सरक गया था |

वरिष्ठ नागरिक के लिए आरक्षित सीट पर बैठे एक बूढ़े ने मुझे यूँ घूरा जैसे मैंने कोई महापाप कर दिया हो और डपटते हुए बोला-तेरी उम्र मुझसे कम नहीं है ,फिर भी मास्क ठीक से पहनना नहीं जानता | 

ऐसे -ऐसे लोग सरकार को कसूरवार ठहराते हैं |इनका चालान तो जरूर कटना चाहिए ,वह ऐसे बोल रहा था जैसे उसकी मुझसे कोई पुरानी दुश्मनी हो |

कुछ ही समय बाद उसे उतरना पड़ा चूंकि उसका स्टैंड आ गया था | दस मिनट बाद---   फिर--- मेरा भी स्टैंड आ गया |मुझे बहुत सुकून था कि मात्र पंद्रह मिनट में परमात्मा के चार बन्दे मैंने देख लिये थे ,जिनकी सूरतें भी अलग थीं ,लिंग भी और चरित्र भी लेकिन मैं मन की बात जुबान तक नहीं ला पाया चूंकि मौन की महिमा से परिचित था और ऐसे दुश्मनो से कौन उलझे ,जो मुझे जानते तक नहीं |    

रामकुमार सेवक