ग़ज़ल के विविध रंग...

जिन पर हमने जान लुटा दी परखा तो अनजाने निकले।

मुझकों धोखा देने वाले सब जाने - पहचाने निकले।             


समझ के अपने ही घर यारों जहाँ पे सारी रात गुजारी,

होश हमें आया तो देखा, सारे ही मयखाने निकले।

 

प्यार में जो भी मिली थी कसमें जो भी वादे पाये थे,

सच्चाई कौ लौ में देखा सब झूठे अफसाने निकले।

  

जो पीते हैं वो ही बोलें बुरी चीज है मत पीना तुम,

ऐसे कई बहाने लेकर वो हमको बहकाने निकले।

  

सब खुशियों को पाना चाहें और गम से बच जाना चाहें,

हम तो खुशी लुटाने निकले यूँ खुद ही गम खाने निकले।


खुदा भी यही चाहता था कि वो चेहरा देखें दोबारा,

कफन हवा से उड़ गया यारों जब अर्थी ले जाने निकले।


दिल को हमने खूब मनाया वो अपने ना हो पायेंगे,

लेकिन जब दिल की मानी तो ‘उदय‘ तेरे दीवाने निकले।

- राजकवि दीनदयाल ‘उदय’  (गाजि़्ायाबद, उ.प्र.)

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तू मेरे साथ न चल....

यूँ हुआ प्यार में बदनाम मिरे साथ न चल,

ये हुआ प्यार का अंजाम मिरे साथ न चल |


तू मेरे साथ है मैं हो गया मशहूर सनम,

हो न जाए तू बदनाम मिरे साथ न चल |


तू मेरे दिल में रहे इतना फ़क़त काफ़ी है,

क्यों करें जिक्र सरेआम मिरे साथ न चल  |


तू तो है कीमती अनमोल सभी कहते हैं,

मेरा क्या मैं तो हूँ बेदाम मिरे साथ न चल  |


यादें तेरी मुझे देती हैं तन्हाई में सकून,

अब तो यादों से चले काम मिरे साथ न चल |


तू है मशहूर और मसरूफ़ खुदा खैर करे,

मैं तो रह जाऊँगा गुमनाम मिरे साथ न चल |


सुर सजाये थे महब्बत में न ये सोचा मगर,

होगा यूं प्यार का अंजाम मिरे साथ न चल |

 

जो कहा अब तलक सच ही कहा है लेकिन,

है ये बस आखिरी पैगाम मिरे साथ न चल |

- सुरिन्दर कुमार भाटिया

(दिल्ली)