प्रार्थना - प्रभु बुढ़ापा ऐसा देना..

गुरविंदर सिंह बॉबी (दिल्ली) द्वारा लिखा गया यह गीत लगभग हर इंसान की इच्छा से जुड़ा है | हास्य शैली में लिखा गया यह गीत लेखक की हार्दिक और यथार्थ अभिलाषा को  दर्शाता है |पाठकों के लाभार्थ यह गीत प्रस्तुत है सम्पादक

प्रभु,बुढ़ापा ऐसा देना,

प्रभु बुढ़ापा ऐसा देना

हलवा पूड़ी गटक सकूं 

और चबा सकूं चना-चबैना।।

प्रभु बुढ़ापा ऐसा देना।


मेरे तन की शुगर बढ़े ना, 

रहे मिठास जुबाँ की कायम।

तन का लोहा ठीक रहे 


और मन में हो,

लोहा लेने का दम।







चलूँ हमेशा ही मैं सीधा, 

कमर  कभी  भी  झुक ना जाये।

यारों के संग हंसी- ठिठौली, 

मिलना- जुलना ना रुक जाये।।


जियूं मस्त मौला बनकर मैं, 

काटूँ अपने दिन और रैना।

प्रभु बुढ़ापा ऐसा देना...







भले आँख पर चश्मा हो पर

टी.वी. व  अख़बार देख सकूं।

पास हों या फिर दूर हों जितने , 

मित्रों से मैं बात कर सकूँ।

चाट पकौड़ी, पानी पूरी 

खा पाऊं लेकर चटकारे।

बीमारी और कमजोरी 

फटके न कभी पास हमारे।

सावन सूखा, हरा न भादों, 

रहे हमेशा मन में चैना।

प्रभु बुढ़ापा ऐसा देना।


मेरे जीवन की शैली पर, 

नहींं कोई प्रतिबंध लगाये।

जीवन-साथी  साथ रहे, 

संग- संग हम दोनों मुस्कायें।

नहीं आत्म सम्मान से 

कभी करना पड़े मुझे समझौता।

बाकी तो जो, लिखा भाग्य में, 

जो होना है, वो ही होता |

करनी ऐसी करूँ मैं बॉबी , 

गर्व से मिला सकूं दो  नैना।

प्रभु बुढ़ापा ऐसा देना।

प्रभु बुढ़ापा ऐसा देना...