मैंने कहा कि जीते रहो, ख़ुश रहो मियाँ
उसने कहा- दुआएँ नहीं, सिर्फ़ रोटियाँ
इतना धुआँ कि साँस भी लेना हुआ मुहाल
ऐसे सुलग रही हैं कुछ इस बार लकड़ियाँ
करती रहीं गुलों से बहुत देर बातचीत
बच्चों के इंतज़ार में बैठी थीं तितलियाँ
तू है बड़ा, तो अपने बड़प्पन का ध्यान रख
क़दमों में आ ही जाती हैं मग़रूर पगड़ियाँ
ईंटें रँगी थीं जिनकी ग़रीबों के ख़ून से
वीरान हो गई हैं सब ऐसी हवेलियाँ
पोखर की मछलियों को है इस बात का मलाल
क्योंकर सुकून में हैं समंदर की मछलियाँ
होंठों पे है हँसी की लिपस्टिक सजी हुई
आँखों से फिर भी झाँक रही हैं उदासियाँ
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ज़हन की आवारगी को इस क़दर प्यारा हूँ मैं
साथ चलती है मेरे, इक ऐसा बंजारा हूँ मैं
राख ने मेरी ही ढक रक्खा है मुझको आजकल
वरना तो ख़ुद में सुलगता एक अंगारा हूँ मैं
ज़िंदगी की कशमकश ने सोख ली सारी मिठास
मैं समंदर हूँ मगर, बेइंतिहा खारा हूँ मैं
अपनेपन के रेशमी धागों से मुझको बाँध ले
तू मेरा आकाश है, तेरा ही ध्रुवतारा हूँ मैं
आपकी साँसें मिलीं तो खिल उठा पूरा वजूद
वरना मेरा क्या है, इक छोटा-सा ग़ुब्बारा हूँ मैं
मैं वो बादल हूँ कि जिसके दम से ख़ुशहाली है 'नाज़'
फिर भी ये इल्ज़ाम लगते हैं कि आवारा हूँ मैं