कर्तव्य व अधिकार

मानव बनकर जन्म लिया है मानव बनकर ही जी पाए।
अधिकार स्वयं मिल जायेंगे , पहले हम कर्तव्य निभाए।
शक्ल सूरत मानव की पाकर कोई मानव नहीं हो जाता।
मानव बन पाता है जब मानवता के गुण अपनाता।
प्यार विनम्रता क्षमा दया से अपना जीवन आप सजाता।
दूजो के दुख हरने को परोपकार के गुण अपनाता
गुण ऐसे जीवन में जिसके वो मानव मानव कहलाए।
मानव बनकर जन्म लिया है
मानव बनकर ......
जन्म से लेकर मृत्यु तक इंसा रिश्ते कई बनाता
कीमत इनकी तब है पड़ती
जब सबको सहर्ष निभाता
अधिकारों से केवल उलझन कर्तव्य रिश्ता दृढ़ बनाता
अच्छाई की याद जो रखे कड़वाहट को भूल है जाता।
गाठ कोई पड़ने ना दे, पड़े गांठ उसको सुलझाए।
मानव बनकर जन्म लिया है
मानव बनकर ......
सबका प्यारा बन जाता है मीठी बोली जो अपनाता
घाव सभी भर जाते है
घाव जुबा का भर नहीं पाता
चापलूस भी मीठा बोले पर वो अपना काम बनाता
मन को लेकिन उसका मीठा बोला, मित्रो बहुत सुहाता।
चेतन होकर फ़र्क रखे क्या सुने ओर क्या अपनाए
मानव बनकर जन्म लिया है
मानव बनकर ......
सरल बहुत है लगा के धक्का चाहे कोई हमें गिराना
ताकत दो हाथो की लगती गिरते को है यदि बचाना
मानव जैसा दिखना आंसा मुश्किल मानव सा जी पाना
बाते करना सहज बहुत है मुश्किल है उनको अपनाना।
अच्छाई की ताकत समझे मानवता के गुण अपनाए।
मानव बनकर जन्म लिया है
मानव बनकर .....