मानव अधिकार दिवस के उपलक्ष्य में 12 दिसंबर 2020 (शनिवार) को आयोजित ऑनलाइन कवि सम्मेलन पर पढ़ी गयी कवितायेँ (दो)

कविता

जियो और जीने दो समझें, कर्तव्य भी अधिकार भी।

 त्रिभुवन (मुंबई)

1) मानव की दुनिया में मानव, मानवता विसराया है।                              अहंकार में पड़कर मानव ,मानव को ही सताया है।
    प्रेम,नम्रता, क्षमाशीलता, दिल से आज मिटाया है।
    ईर्ष्या,वैर व नफ़रत वाली, जग में आग लगाया है।
    सुंदर हों अब कर्म हमारे,सुंदर हो व्यवहार भी।
    जियो और जीने दो समझें, कर्तव्य भी अधिकार भी।

2) जीवन के इस रंग मंच पर, मानव  का किरदार निभाए।
    जाति,धर्म का भेद मिटाकर, हर मानव को गले लगाए।
    परोपकार से भरा हो जीवन,
    दिल में करुणा भाव जगाएं।
    प्रीति, प्यार  के खुशबू  से हम,
    जीवन का हर पल महकाएं l
    गैर किसी को कभी न समझें,
    सबका हो सत्कार भी।
    जियो और जीने दो समझें, कर्तव्य भी अधिकार भी।

3) दिव्य गुणों से सजकर मानव,
    जब मानव बन जाएगा।
    जीने का अधिकार सभी  को,
    अपने आप मिल पाएगा।
    शांति होगी हर एक घर में,
    हर चेहरा मुस्काएगा।
    फिर अदालत का दरवाजा,
    कोई नहीं खटखटाएगा।
    जीवन की बगिया में हर पल,
    होगा सदाबहार भी।
    जियो और जीने दो समझें, कर्तव्य भी अधिकार भी।।