आज से/हज़ारों वर्ष पूर्व/त्रेता युग में
भगवान श्रीराम ने/संहार किया
आतातायी रावण का
और स्थापना की रामराज्य की
हम/प्रत्येक वर्ष इसको
विजय दशमी पर्व के रूप में मनाते हैं !
स्वयं ही /कागज़ के रावण/कुंभ करण/मेघनाथ के विशालकाय पुतले
कर देते हैं/अग्नि के सुपुर्द
और
आश्वस्त हो लेते हैं कि मर गया रावण
जबकि
हमारे आसपास कितने ही रावण घूम रहे हैं
हम
कोई शिक्षा नहीं लेते रावण चरित्र से
जिसने /सीता को/लंका में होते हुए भी छुआ तक नहीं
और कलियुगी रावण को देखो
हवस का पुजारी
न देखता अबोध बालिका या फिर दादी की उम्र की महिला
समूचे वर्ष चलता है/उसका यह घृणित कार्य
और हम प्रतीक्षारत रहते हैं
आगामी विजय दशमी पर्व की
ताकि
फूंक सकें/फिर रावण
और
इस तरह कर लेते हैं
इतिश्री
अपने धार्मिक कर्त्तव्य का !
-प्रकाश 'सूना'