सत्यमेव जयते शीर्षक पर 24/10/2020 को आयोजित प्रगतिशील साहित्य मंच के कवि सम्मेलन में पढ़ी गयी रचनाएँ (आठ )
आज से/हज़ारों वर्ष पूर्व/त्रेता युग में

भगवान श्रीराम ने/संहार किया

आतातायी रावण का

और स्थापना की रामराज्य की

हम/प्रत्येक वर्ष इसको

विजय दशमी पर्व के रूप में मनाते हैं !

स्वयं ही /कागज़ के रावण/कुंभ करण/मेघनाथ के विशालकाय पुतले

कर देते हैं/अग्नि के सुपुर्द

और

आश्वस्त हो लेते हैं कि मर गया रावण

जबकि

हमारे आसपास कितने ही रावण घूम रहे हैं

 


 

 

हम

कोई शिक्षा नहीं लेते रावण चरित्र से

जिसने /सीता को/लंका में होते हुए भी छुआ तक नहीं

और कलियुगी रावण को देखो

हवस का पुजारी

न देखता अबोध बालिका या फिर दादी की उम्र की महिला

समूचे वर्ष चलता है/उसका यह घृणित कार्य

और हम प्रतीक्षारत रहते हैं

आगामी विजय दशमी पर्व की

ताकि

फूंक सकें/फिर रावण

और 

इस तरह कर लेते हैं

इतिश्री

अपने धार्मिक कर्त्तव्य का !

           -प्रकाश 'सूना'