ग़ज़ल
जो पत्थर हाथ में सबके मिलेंगे
तो घर शीशे के कल टूटे मिलेंगे
बड़ों को देखकर बच्चे हमारे
नशे की आग में जलते मिलेंगे
बिकेंगी लाशें कल , ले आओ घर में
तराज़ू उस समय महँगे मिलेंगे
कटेंगे पेड़ यूँ , तो पुस्तकों में
परिंदे शाख़ पर बैठे मिलेंगे
उसी शमशान में कल भीड़ होगी
जहाँ पर मुफ़्त में काँधे मिलेंगे
अभी मत हौसले को छोड़ बेटी
अभी तो और भी भूखे मिलेंगे
न जाने किस अवस्था में यहाँ कल
सड़क पर लड़कियाँ लड़के मिलेंगे
कहेगा कब-तलक हाकिम बता दे
ग़रीबों को मकाँ सस्ते मिलेंगे
जहाँ होगा शरीफ़ों का ठिकाना
वहाँ कल ख़ून और छर्रे मिलेंगे
ये दुख की बात है बच्चों ! तुम्हे कल
अनाथालय बहुत महँगे मिलेंगे
जो हमने हाथ से ख़ंजर न छोड़ा
तो कल इस मुल्क के टुकड़े मिलेंगे
- सुरेश भारती (दिल्ली)