कुछ क्षणिकाएं
(1)
आज
चाँद उदास था
ओर चाँदनी फीकी
मैने कारण पूछा ?
बोला
दंगों के बाद
धरती पुत्रों की करतूतें देख
धरती की रोती सूरतें देख ।
(2)
आज
चौराहे पर
बिखरे हुए
रक्त को देख
सिसकती सड़कोँ से पूछा
कल क्या हुआ था ?
रोते हुए बोली
दीन,धर्म,और राष्ट्र प्रेमियों ने किया
इंसानियत पर वार
अपना अपना धर्मप्रचार ।
(3)
आज
व्यथित
न्याय देवी से पूछा
आधी रात
न्यायाधीश के तबादले ं पर
कुछ कहना है ?
वो बोली
नहीं
मुझे मौन रहना है
तुम
देखते जाओं
अभी " केस " (मुकदमा)
वापसी अभियान भी
सहना है ।
(4)
(विडंबना)
आज
एक मीडियाकर्मियों के
माईक ओर कैमरें से मिला
जो जड़ होकर भी
वर्षों से की जा रही
अपनी जहरीली रिपोर्टिंग पर
पश्चाताप से रो रहे थे ।
लेकिन
टी. आर. पी. वाले
निरन्तर अब भी
जहर बो रहे थे ।
(5)
आज
सड़क पर पड़े
खुन से सने
पत्थरों
ने पूछा
एक इंसान से
जरा गौर से देखकर बताओं
हमें समझाओं
हम पर गिरा ये खुन
राम को मानने वालों का है
या
अल्लाह को ।
वो बोला नहीं बता सकता
हूँ
मै अंधा ,
केवल खून बहा सकता हूँ